बिलासपुर. छत्तीसगढ़ की पारंपरिक रसोई में कुछ ऐसे स्वाद हैं जो न केवल जीभ को तृप्त करते हैं, बल्कि शरीर और आत्मा को भी सुकून देते हैं. इन्हीं में से एक है तिंवरा भाजी—जिसे ‘छोटा चना भाजी’ भी कहा जाता है. यह भाजी कोई जंगली पौधा नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के किसान इसे खेतों में बोते हैं और परंपरागत तरीके से उगाते हैं. इस भाजी को खास तरीके से सुखाकर सालभर ‘शुष्का भाजी’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. जब इसे दाल में मिलाया जाता है, तो इसका स्वाद और पौष्टिकता दोनों ही बढ़ जाते हैं. आइए जानते हैं इस अनोखी भाजी की खासियत, परंपरा और स्वादभरी रेसिपी के बारे में.
खेतों में उगती है खास तिंवरा भाजी
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में तिंवरा भाजी को छोटे चने की तरह खेतों में उगाया जाता है. यह ठंड के समय के अच्छी तरह तैयार होती है और इसकी पत्तियां काफी हद तक घास जैसी दिखाई देती हैं. स्वाद में यह हल्की कसैली होती है लेकिन सेहत के लिए बेहद लाभकारी मानी जाती है. यह खेती किसानों के लिए एक अतिरिक्त आमदनी का स्रोत भी बन चुकी है.
पारंपरिक तरीके से तैयार होती है शुष्का भाजी
जब यह भाजी खेतों में तैयार हो जाती है, तो महिलाएं इसे तोड़कर साफ करती हैं और धूप में सुखाकर इसका शुष्का रूप बना देती हैं. यह प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक होती है और किसी भी केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता. इस सूखी भाजी को वर्षभर इस्तेमाल किया जा सकता है.
स्वाद और सेहत दोनों का मेल
डॉक्टर अनुज कुमार ने बताया कि शुष्का तिंवरा भाजी में फाइबर, आयरन, कैल्शियम और जरूरी खनिज भरपूर होते हैं. यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और पाचन क्रिया को भी मजबूत बनाती है. जब इसे दाल में पकाया जाता है, तो इसका स्वाद गहराई और देसीपन से भर जाता है, जो हर उम्र के लोगों को पसंद आता है.
दाल में तिंवरा भाजी कैसे डालें, जानिए बिलासपुर की भाग्यवती से
बिलासपुर की गृहिणी भाग्यवती बताती हैं कि शुष्का भाजी को थोड़ी देर पानी में भिगोकर रखें. फिर दाल (मसूर या तुअर) को कुकर में उबालें. कढ़ाही में तेल गरम कर राई, जीरा, लहसुन और प्याज का तड़का लगाएं. भिगोई हुई भाजी और हरी मिर्च डालें, भूनें और फिर उबली दाल मिलाकर 5-7 मिनट पकाएं. यह दाल रोटी और चावल दोनों के साथ बेहतरीन लगती है.
सामग्री: शुष्का तिंवरा भाजी – 1 मुट्ठी (भीगी हुई), दाल (तुअर/मसूर) – 1 कप, प्याज – 1 बारीक कटा, लहसुन – 5-6 कलियां, हरी मिर्च – 1-2, राई, जीरा – 1/2 चम्मच, हल्दी, नमक – स्वादानुसार, तेल – 1 चम्मच.
बदलते दौर में फिर लौटी देसी परंपरा
शहरीकरण और फास्ट फूड के बीच छत्तीसगढ़ की यह परंपरा एक बार फिर ग्रामीण इलाकों में जीवित हो रही है. महिलाएं शुष्का भाजी तैयार कर हाट-बाजार में बेच रही हैं, जिससे उन्हें घर बैठे आय का स्रोत भी मिल रहा है. यह बदलाव सिर्फ स्वाद नहीं, आत्मनिर्भरता भी ला रहा है.
बुजुर्गों की थाली से आज की जरूरत तक
पुराने समय में जब स्टोरेज के आधुनिक साधन नहीं थे, तब ऐसी सूखी भाजी सालभर का सहारा होती थी. यह सस्ती, टिकाऊ और स्वास्थ्यवर्धक थी. आज भी गांवों में बुजुर्ग इसे भोजन का जरूरी हिस्सा मानते हैं और इसे आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने की बात करते हैं.
परंपरागत स्वाद और पोषण से भरपूर तिंवरा भाजी
छत्तीसगढ़ की तिंवरा भाजी न केवल एक व्यंजन है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत, ग्रामीण जीवनशैली और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रतीक भी है. ज़रूरत है कि हम इन परंपरागत खाद्य उत्पादों को संरक्षित करें और आधुनिक दुनिया में इसका महत्व बनाए रखें.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
https://hindi.news18.com/news/lifestyle/recipe-dal-gives-amazing-taste-with-chhattisgarhs-tinwara-bhaji-know-the-special-recipe-local18-ws-kl-9192341.html