Last Updated:
बागेश्वर: उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की पारंपरिक रसोई का अहम हिस्सा भट्ट की दाल है. इसे काले भट्ट (सोयाबीन जैसी काले दाने वाली फलियां) से बनाया जाता है. यह न केवल स्वादिष्ट होती है बल्कि सेहत के लिए भी बेहद लाभकारी मानी जाती है, क्योंकि इसमें प्रोटीन, फाइबर और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.

बागेश्वर: भट्ट की दाल उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की रसोई की पहचान है. यह दाल काले रंग के भट्ट (सोयाबीन जैसी फलियां) से बनाई जाती है. पहाड़ के घरों में इसे खास तौर पर सर्दियों में पकाया जाता है. इसका स्वाद देसी मसालों और सरसों के तेल के तड़के से और भी निखर जाता है. यह व्यंजन न केवल पारंपरिक है, बल्कि पौष्टिकता से भरपूर भी माना जाता है. ग्रामीण इलाकों में आज भी भट्ट की दाल हर त्यौहार और पारिवारिक भोज में जरूर परोसी जाती है.

भट्ट की दाल में प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं. यही वजह है कि यह शरीर को ऊर्जा देती है और ठंड के मौसम में गर्माहट बनाए रखती है. आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ ऐजल पटेल ने Bharat.one को बताया कि यह दाल पाचन में सहायक और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाली होती है. पहाड़ों में यह किसानों और मेहनतकश लोगों का प्रमुख आहार रही है क्योंकि यह लंबे समय तक तृप्ति देती है और ताकत बनाए रखती है.

भट्ट की दाल बनाने की प्रक्रिया जितनी सरल है, उतनी ही सावधानी भी मांगती है. सबसे पहले भट्ट के दानों को रातभर पानी में भिगोया जाता है, ताकि वे मुलायम हो जाएं. अगले दिन इन्हें धीमी आंच पर पकाया जाता है. देसी तड़के के लिए सरसों के तेल में जीरा, हींग, प्याज और लहसुन का उपयोग किया जाता है. इस मिश्रण से उठती खुशबू पहाड़ की असली रसोई का अहसास कराती है.

भट्ट की दाल में हल्दी, धनिया, लाल मिर्च और टमाटर का प्रयोग स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है. इन मसालों से दाल को न केवल रंग मिलता है, बल्कि इसका जायका भी गाढ़ा और लाजवाब हो जाता है. पारंपरिक घरों में इसे लोहे की कढ़ाई में पकाया जाता है, जिससे इसका स्वाद और पौष्टिकता दोनों बढ़ते हैं. लोहे की कढ़ाई से दाल में आयरन भी स्वाभाविक रूप से शामिल हो जाता है, जो सेहत के लिए लाभदायक है.

कुमाऊं में दाल पकाने का तरीका खास होता है, इसे तेज आंच पर नहीं, बल्कि धीरे-धीरे पकाया जाता है. यह तकनीक दाल को गाढ़ापन देती है और उसके स्वाद को प्राकृतिक रूप से निखारती है. लोग कहते हैं कि भट्ट की दाल तभी परफेक्ट बनती है. जब उसे दम देकर तैयार किया जाए. धीमी आंच पर पकने से इसका हर दाना मसालों में अच्छी तरह घुल जाता है और स्वाद का एक अलग ही अनुभव देता है.

भट्ट की दाल की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे चावल और रोटी दोनों के साथ परोसा जा सकता है. पहाड़ों में अक्सर लोग इसे मंडुवे की रोटी या भात के साथ खाते हैं. इसका स्वाद दोनों के साथ अलग-अलग आनंद देता है. साथ में घी की कुछ बूंदें डालने से इसका जायका दोगुना हो जाता है. यह संयोजन न केवल स्वादिष्ट बल्कि शरीर के लिए बेहद पौष्टिक भी होता है.

भट्ट की दाल पहाड़ी सर्दियों में ऊर्जा और गर्माहट देने वाली डिश मानी जाती है. इसमें मौजूद पोषक तत्व शरीर को ठंड से बचाने और ताकत बनाए रखने में मदद करते हैं. यही कारण है कि अक्टूबर से फरवरी तक यह लगभग हर घर में जरूर बनती है. बुजुर्ग कहते हैं कि ठंड के मौसम में भट्ट की दाल और भात से बेहतर कोई भोजन नहीं. यह शरीर को अंदर से मजबूत बनाती है.

कुमाऊं के हर पर्व और खास अवसर पर भट्ट की दाल जरूर बनाई जाती है. चाहे होली का त्यौहार हो या पारिवारिक भोज, यह व्यंजन थाली में अपनी जगह बनाए रखता है. इसे अक्सर आलू के गुटके, भात और नींबू के अचार के साथ परोसा जाता है. इसका स्वाद घर की मिट्टी और परंपरा दोनों से जुड़ा है. यही कारण है कि पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इस रेसिपी को गर्व से आगे बढ़ा रहे हैं.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
https://hindi.news18.com/photogallery/lifestyle/recipe-bhatt-ki-dal-pahadi-recipe-uttarakhandi-style-local18-9700413.html