New Drugs Clinical Trial: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने विदेशी दवाओं को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है. अब अगर कोई दवा यूएस, यूके, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा और यूरोपियन यूनियन में किए गए क्लीनिक ट्रायल में सफल होती है और वहां ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी से इस्तेमाल की मंजूरी मिल जाती है, तो यह दवा सीधे भारतीय बाजार में आ सकेगी. इसके लिए भारत में अलग से ट्रायल नहीं करना होगा. इसके लिए न्यू ड्रग एंड क्लिनिकल ट्रायल रूल 2019 के नियम 101 में बदलाव किया गया है. सरकार के इस फैसले से गंभीर बीमारियों की दवाएं भारत में जल्द आ सकेंगी.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि देसी कंपनियों को सरकार के इस फैसले का बेसब्री से इंतजार था. साथ ही इससे गंभीर बीमारियों की दवा की आसानी से उपलब्धता हो पाएगी. स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का दावा है कि सरकार के इस फैसले से दवाओं के रेगुलेटरी प्रोसेस में जो रिसोर्स खर्च होते थे, उनमें बचत होगी और इनका उपयोग किसी और काम में किया जा सकता है. दावा यह भी किया जा रहा है कि भारतीय दवा उद्योग वॉल्यूम से वैल्यू की ओर बढ़ रहा है, जिसके लिए सरकार का यह कदम मील का पत्थर साबित होगा.
सरकार ने दावा किया है कि जो कोई भी दवा विदेश से भारत आएगी, वो भारतीय भौगोलिक परिस्थितियों के अनूकूल होगी. इसके साथ ही जो भी नई बेहतर दवा बन रही है उसको तत्काल प्रभाव से भारत में मंजूरी मिल जाएगी. स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक यूके, यूएस, आस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा और ईयू के देशों से आने वाली दवाओं को देसी क्लिनिकल ट्रायल से नहीं गुजरना होगा. वहां के देश में कोई भी दवा अगर क्लीनिकल ट्रायल से गुजर चुकी है तो उसे भारत में फिर ट्रायल करने की जरूरत नहीं होगी. दावा है कि ऐसा करने से दवाओं के उपयोग और रिसोर्स में काफी सुगमता आएगी.
कई बीमारियों में होगा फायदा
स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि केन्द्र सरकार के इस फैसले से दुर्लभ बीमारियों के लिए औषधियां (Orphan Drugs for rare diseases), जीन और सेलुलर थेरेपी उत्पाद (Gene and cellular therapy products), महामारी की स्थिति में उपयोग की जाने वाली नई दवाएं (New drugs used in pandemic situation), विशेष रक्षा उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली नई दवाओं (New drugs having significant therapeutic advance over the current standard care) को लेकर फायदा हो सकता है.
रिसर्च में भी होगी सुविधा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सरकार के इस फैसले से भारत में दवाओं पर हो रही रिसर्च में काफी मदद मिलेगी. दावा इस बात का किया जा रहा है कि कई दवाओं के लिए भारतीय कंपनियों को विदेशी दवाओं का इंतजार करना पड़ता था. खासकर गंभीर बीमारियों की दवा का इंतजार करना पड़ता था, जिनमें कैंसर और रेयर डिजीज शामिल हैं. अगर इस तरह की दवा भारत में आसानी से उपलब्ध होगी तो रिसर्च में आसानी होगी और इसका देसी वर्जन जल्द से जल्द बनाया जा सकेगा.
सस्ती भी होंगी दवाएं
सूत्रों के अनुसार इस फैसले से दवाओं की सुगमता से उपलब्धता भी होगी. खासकर गंभीर बीमारियों की दवाओं को भारत में इस्तेमाल करने के लिए स्पेशल परमिशन लेनी पड़ती है. ऐसी दवाएं भारत में आसानी से उपलब्धता हो पाएंगी. इसके साथ ही विदेश की कंपनियों के साथ भारत का अगर करार होता है, तो दवाओं का भारतीय कंपनियों के साथ विदेशी कम्पनी का करार होगा और उसका उत्पादन भी भारत में ही होगा. इससे यह दवाएं काफी सस्ती हो सकती हैं.
कम समय में आएगी दवा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पहले किसी भी पेटेंट दवा को जब भारत में लाया जाता था, तब यहां उस दवा का क्लिनिक ट्रायल होता था. इस प्रोसेस से दवा को गुजरने में लगभग 5 से 20 साल का समय लग जाता था. अब लंबे इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है. अब इन देशों में यदि कोई नई दवा को मंजूरी मिलती है तो वह सीधे भारतीय बाजार में भी उपलब्ध हो पाएगी.
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FIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 14:46 IST
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