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Type 5 Diabetes: हममें से ज्यादातर लोगों ने टाइप 5 डायबिटीज का नाम नहीं सुना होगा. यह दशकों पहले होती थी लेकिन दोबारा से यह लोगों को शिकार बना रही है. आखिर यह क्या बीमारी है, किन लोगों को यह बीमारी होती है, आइए…और पढ़ें

टाइप 5 डायबिटीज.
Type 5 Diabetes: दशकों पहले जिस बीमारी की पहचान की गई थी वह अब दोबारा से आने लगी है. बीच में यह बीमारी एक तरह से गायब ही हो गई थी लेकिन हाल में इंटरनेशनल डायबेट्स फेडरेशन की सालाना बैठक में इस बीमारी को टाइप 5 डायबिटीज नाम दिया गया है. इसके लिए वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ डायबेट्स 2025 में एक ग्लोबल टास्क फोर्स का गठन भी किया गया है. पहले यह बीमारी गरीब देशों में ज्यादा होती थी. लेकिन अब यह कई देशों में हो रही है. इंटरनेशनल डायबेट्स फेडरेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर पीटर श्वार्ज ने टाइप 5 डायबिटीज नाम दिया है. दरअसल इसे अंडरवेट डायबिटीज भी कहा जाता है. लगभग 75 साल पहले पहली बार इस बीमारी का जिक्र हुआ था लेकिन तब इसे ठीक से समझा नहीं गया था. अब हाल ही में थाईलैंड के बैंकॉक में हुई इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) की बैठक में इसे औपचारिक रूप से टाइप-5 डायबिटीज नाम दिया गया है.
क्या होती है टाइप 5 डायबिटीज
टाइप 5 डायबिटीज कुपोषण के कारण होती है. जो व्यक्ति ज्यादा कुपोषित होता है यानी उनके भोजन में पोषक तत्वों का अभाव होता है, वह दुबला पता होता है उसमें एक जीन में म्यूटेशन के कारण यह बीमारी होती है. इस कारण पैंक्रियाज के बीटा सेल्स का फंक्शन खराब हो जाता है. इससे इंसुलिन को प्रोडक्शन कम हो जाता है. टाइप 2 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन तो रिलीज करता है लेकिन यह रेजिस्ट हो जाता है. टाइप 5 डायबिटीज में प्रोडक्शन ही कम हो जाता है. यह बीमारी अक्सर दुबले-पतले और कमजोर युवाओं में पाई जाती है.
इस बीमारी की पहचान
रिपोर्ट के मुताबिक सबसे पहले इसका ज़िक्र 1955 में जमैका में हुआ था और तब इसे जे-टाइप डायबिटीज कहा गया था. 1960 के दशक में भारत, पाकिस्तान और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में कुपोषित लोगों में भी यह बीमारी देखी गई. 1985 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे डायबिटीज की एक अलग किस्म के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन 1999 में यह मान्यता वापस ले ली गई, क्योंकि उस समय इसके बारे में पर्याप्त शोध और प्रमाण नहीं थे. सात दशक बाद अब इसका नाम टाइप 5 डायबिटीज दिया गया है. यह बीमारी खासकर गरीब और मध्यम आय वाले देशों में होती है. इस बीमारी से दुनिया भर में लगभग 2 से 2.5 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जिनमें ज्यादातर लोग एशिया और अफ्रीका में रहते हैं. पहले यह माना जाता था कि यह बीमारी इंसुलिन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया कम होने (इंसुलिन रेजिस्टेंस) के कारण होती है. लेकिन अब पता चला है कि इन लोगों के शरीर में इंसुलिन बन ही नहीं पाता, जो पहले ध्यान नहीं दिया गया था.
इलाज के बारे में सही से पता नहीं
न्यूयॉर्क स्थित ‘अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन’ में प्रोफेसर मेरीडिथ हॉकिंस, कहती हैं, यह खोज हमारे इस बीमारी को समझने के तरीके को पूरी तरह बदल देती है और इसके इलाज को लेकर नया रास्ता दिखाती है. 2022 में ‘डायबिटीज केयर’ नामक जर्नल में छपे एक अध्ययन में, डॉ. हॉकिंस और उनके सहयोगियों (वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से) ने यह साबित किया कि यह बीमारी टाइप-2 डायबिटीज (जो मोटापे के कारण होती है) और टाइप-1 डायबिटीज (जो एक ऑटोइम्यून बीमारी है) से बिल्कुल अलग है.हालांकि डॉक्टरों को अब भी यह ठीक से समझ नहीं आ पाया है कि टाइप-5 डायबिटीज के मरीजों का इलाज कैसे किया जाए, क्योंकि कई मरीज बीमारी का पता चलने के एक साल के भीतर ही नहीं बच पाते.
अगले दो साल में बीमारी का इलाज
हॉकिन्स के अनुसार, इस बीमारी को “पहले ठीक से पहचाना नहीं गया और न ही इसे अच्छे से समझा गया. कुपोषण से होने वाली डायबिटीज टीबी से ज्यादा है और लगभग एचआईवी/एड्स जितनी ही आम है. कोई आधिकारिक नाम न होने के कारण मरीजों की पहचान करने या असरदार इलाज ढूंढने में दिक्कत आ रही थी. इस बीमारी को अच्छे से समझने और इसका इलाज ढूंढने के लिए, आईडीएफ ने एक टीम बनाई है. इस टीम को अगले दो सालों में टाइप 5 डायबिटीज के लिए औपचारिक पहचान और इलाज के नियम बनाने का काम सौंपा गया है. यह टीम बीमारी की पहचान के मापदंड तय करेगी और इसके इलाज के लिए नियम बनाएगी. यह रिसर्च में मदद के लिए एक ग्लोबल रजिस्ट्री भी बनाएगी और दुनिया भर के स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए अध्ययन सामग्री तैयार करेगी. इनपुट-आईएएनएस
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