Early and premature menopause symptoms: मेनोपॉज महिलाओं के जीवन का एक ऐसा फेज है जिसमें पीरियड्स स्थाई रूप से बंद हो जाते हैं, जिससे ओवरी में एग्स बनना बंद हो जाता है, एस्ट्रोजन-प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोनों का प्रोडक्शन कम होने लगता है. क्लीवलैंड क्लिनिक के मुताबिक, आमतौर पर मेनोपॉज 45 से 55 साल की उम्र के बीच होता है, लेकिन कई बार यह 40 की उम्र के आसपास भी हो सकता है. दरअसल, मेनोपॉज एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन इसके प्रभावों को कम करने के लिए सही खानपान, नियमित व्यायाम और मेडिकल गाइडेंस काफी महत्वपूर्ण है. इस तरह आप प्रीमैच्योर मेनोपॉज और अर्ली मेनोपॉज, दोनों लक्षणों से बच सकती हैं जो अक्सर महिलाओं में मेनोपॉज के शुरुआती स्टेज हैं.
क्या है प्रीमैच्योर मेनोपॉज
प्रीमैच्योर मेनोपॉज मेनोपॉज का वह स्टेज है, जिसके लक्षण आमतौर पर 40 साल की उम्र से पहले ही दिखने लगते हैं. इसकी वजहों की बात करें तो यह जेनेटिक कारणों, ऑटोइम्यून बीमारियां, कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी जैसे मेडिकल ट्रीटमेंट्स, सर्जरी और लाइफस्टाइल फैक्टर जैसे धूम्रपान और अत्यधिक स्ट्रेस से हो सकता है. इसके लक्षणों की बात करें तो अनियमित पीरियड्स, हॉट फ्लैशेज, नाइट स्वेट्स, मूड स्विंग्स और बांझपन का होना है. ऐसा होने पर महिलाओं में हड्डियों की कमजोरी, हृदय रोग का जोखिम और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं.
क्या है अर्ली मेनोपॉज?
अक्सर महिलाओं में अर्ली मेनोपॉज के लक्षण 40 से 45 साल की उम्र के बीच दिखने लगते हैं. यह जेनेटिक फैक्टर्स, स्वास्थ्य समस्याएं, लाइफस्टाइल फैक्टर्स और कभी-कभी बिना किसी सही वजह के भी हो सकता है. इसके लक्षणों की बात करें तो ये प्रीमेच्योर मेनोपॉज के लक्षणों से मिलते-जुलते होते हैं, जैसे अनियमित पीरियड्स, हॉट फ्लैशेज, नाइट स्वेट्स, और मूड स्विंग्स. इसके होने पर महिलाओं में हड्डियों की कमजोरी, हृदय रोग का जोखिम और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ने लगती है. हालांकि, प्रीमैच्योर मेनोपॉज की तुलना में यह कम खतरनाक हो सकता है.
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महिलाओं की सेहत पर मेनोपॉज का असर
-मेनोपॉज के दौरान हार्मोनल परिवर्तन तेजी से होते हैं जिससे शरीर का तापमान अचानक बढ़ जाता है और हॉट फ्लैशेज, नाइट स्वेट्स हो सकते हैं.
-हार्मोनल बदलाव महिलाओं के मेंटल हेल्थ पर भी बुरा असर डालता है, जिससे मूड स्विंग्स, डिप्रेशन, और एंग्जायटी हो सकती है.
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-इससे एस्ट्रोजन का स्तर कम होने लगता है और हड्डियों की डेंसिटी घटने लगती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का जोखिम बढ़ जाता है.
-मेनोपॉज के बाद महिलाओं में महिलाओं में हार्ट से जुड़ी बीमारियों के होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
-मेनोपॉज के बाद मेटाबॉलिज्म धीमा हो सकता है, जिससे वजन बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है.
-मेनोपॉज के बाद मूत्राशय की समस्याएं भी हो सकती हैं. यूरीनरी इनकॉन्टिनेंस की समस्या काफी कॉमन है.
-हार्मोनल असंतुलन के कारण अनिद्रा (इनसोम्निया) जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं और इसका असर यौन जीवन पर भी असर पड़ सकता है.
-मेनोपॉज के दौरान हार्मोनल बदलाव से त्वचा की इलास्टिसिटी कम हो सकती है और बाल पतले कमजोर हो सकते हैं.
FIRST PUBLISHED : August 4, 2024, 08:50 IST
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