Benefits of Slow Living: पैसे कमाने की चाह और जिंदगी में सफलता पाने की होड़ ने लोगों को मशीन की तरह बना दिया है. रोज सुबह से लेकर रात तक भागदौड़ करना और ज्यादा से ज्यादा काम करने की आदत लोगों की शारीरिक और मानसिक हालत बिगाड़ रही है. तेजी से बढ़ती लाइफस्टाइल और कामकाजी दबाव के बीच भारत में अब एक नया ट्रेंड सामने आ रहा है. सभी उम्र के लोग रफ्तार भरी जिंदगी के बजाय स्लो लिविंग (Slow Living) को अपनाने की ओर बढ़ रहे हैं. बड़ी संख्या में लोग बड़े शहरों की भीड़भाड़ से दूर गांव में शांति की जिंदगी जीना चाह रहे हैं.
कोविड-19 महामारी में लाखों लोगों को शहर छोड़कर गांवों की तरफ जाना पड़ा था और उस दौर ने लोगों को उनके जीवन की प्रायरिटीज पर दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया था. लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग ने लोगों को अपने व्यस्त जीवन से बाहर निकलने और अपने पर्सनल टाइम को दोबारा निर्धारित करने का मौका दिया था. अब कई भारतीय ज्यादा तनाव और लगातार भागदौड़ से छुटकारा पाने के लिए धीमी जिंदगी यानी स्लो लिविंग की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. ध्यान और योग से लेकर ग्रामीण इलाकों में शांति और सादगी से लोग अपने जीवन को संतुलित और स्थिर बनाने की कोशिशों में लगे हुए हैं.
सोशल मीडिया से पॉप्युलर हो रहा यह ट्रेंड
आजकल युवा अपने करियर और पर्सनल लाइफ के बीच एक हेल्दी बैलेंस बनाने की कोशिश कर रहे हैं. यह बदलाव केवल सेल्फ सेटिस्फेक्शन ही नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि लोग अब फिजिकल और मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता दे रहे हैं. धीमी जीवनशैली अपनाने वालों में लेखक, योग ट्रेनर और विशेष रूप से छोटे कारोबारी शामिल हैं. आर्थिक और सामाजिक लाभ के साथ-साथ यह जिंदगी लोगों को मानसिक शांति और संतोष देने में सक्षम साबित हो रही है. सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्म्स पर इस नए ट्रेंड की बढ़ती लोकप्रियता इसे एक महत्वपूर्ण जीवनशैली के रूप में प्रस्तुत कर रही है.
अरबपति बिजनेसमैन ने भी चुनी यह राह
भारतीय अरबपति बिजनेसमैन और टेक कंपनी ज़ोहो के फाउंडर श्रीधर वेम्बू इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण हैं. साल 2019 में वह अमेरिका में अपनी हाई-प्रोफाइल नौकरी छोड़कर तमिलनाडु के तेनकासी जिले के एक गांव में चले गए. उन्होंने मेट्रो सिटी के बजाय मथालमपराई गांव में एक फैक्ट्री को अपना ऑफिस बनाया. श्रीधर एक सफल टेक कंपनी चलाते हुए गांव के जीवन की शांति का आनंद लेते हैं. यह बदलाव एक सकारात्मक संकेत है कि भारतीय समाज अपने जीवन की गुणवत्ता को सुधारने और एक संतुलित जीवन जीने की ओर कदम बढ़ा रहा है.
मानसिक समस्याएं बढ़ाती है तेज रफ्तार जिंदगी
नई दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर और साइकेट्रिस्ट डॉ. प्रेरणा कुकरेती ने Bharat.one को बताया कि हद से ज्यादा भागदौड़ भरी जिंदगी सेहत के लिए नुकसानदायक होती है. इससे कई शारीरिक समस्याओं के साथ मानसिक समस्याएं पैदा होने लगती हैं. इससे तनाव, एंजाइटी और डिप्रेशन समेत कई मेंटल डिसऑर्डर की नौबत आ सकती है. इससे लाइफ की क्वालिटी बुरी तरह प्रभावित होती है और लोग परेशान रहते हैं. अत्यधिक बिजी शेड्यूल में लोग आसपास रहने वाले लोगों से भी नहीं मिल पाते हैं और मेंटल हेल्थ बिगड़ती रहती है.
एक्सपर्ट की मानें तो खराब मेंटल हेल्थ से लोगों की क्रिएटिविटी खत्म हो सकती है और इससे फैसले लेने की क्षमता कम हो सकती है. इससे लोग भावनात्मक रूप से थका हुआ और अलग-थलग महसूस कर सकते हैं. भले ही लोग इस भागदौड़ में पैसे कमाने में कामयाब हो जाएं, लेकिन लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. यंग एज में लोगों को ये समस्याएं ज्यादा परेशान नहीं करती हैं, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे ये प्रॉब्लम विकराल होती जाती हैं. ऐसे में जरूरी है कि अपने करियर के साथ मेंटल हेल्थ का भी खास खयाल रखा जाए.
शहरों में रहकर कैसे स्लो लिविंग कर सकते हैं फॉलो
डॉक्टर प्रेरणा कुकरेती ने बताया कि शहरों में रहकर भी कुछ हद तक स्लो लिविंग को फॉलो किया जा सकता है. इसके लिए आप अपने लिए रोज कुछ वक्त निकालें और अपना पसंदीदा काम करें. ज्यादा भागदौड़ के बजाया पर्याप्त आराम करें और रोजाना अपनी नींद जरूर पूरी करें. समय-समय पर ऑफिस के काम से छुट्टी लेकर कहीं शांत जगह पर घूमने जाएं और शहरों की भीड़भाड़ से दूर वक्त बिताएं.
प्रतिदिन एक्सरसाइज, योग और मेडिटेशन के लिए समय निकालें और हेल्दी खाना खाने की कोशिश करें. अपनी लाइफस्टाइल को सुधारें और दोस्तों से मिलना-जुलना शुरू करें. एक्सपर्ट की मानें तो अपने जीवन को सरल बनाकर और अनावश्यक चीजों को हटाकर आप अपनी मेंटल हेल्थ सुधार सकते हैं और स्लो लिविंग फॉलो कर सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 4, 2024, 10:33 IST
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