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ये डिजिटल डिमेंशिया है क्या बला? दुनिया में क्यों है इतनी चिंता? कैसे युवाओं के दिमाग को बना रहा खोखला? जानें उत्तर


What is Digital Dementia: डिजिटल डिमेंशिया के बारे में क्या आपने सुना है. आजकल यह शब्द हर कोई जानना चाहता है कि डिजिटल डिमेंशिया आखिर है क्या बला. यदि आप युवा है तो आपको डिजिटल डिमेंशिया के बारे में जरूर जानना चाहिए क्योंकि युवा ही डिजिटल डिमेंशिया के असली शिकार है. सीधे शब्दों में कहें तो डिजिटल डिमेंशिया आपके दिमाग की बौद्धिक क्षमता को खोखला कर रहा है. मेडिकल भाषा में डिमेंशिया भूलने वाली बीमारी को कहते हैं. आमतौर पर डिमेंशिया बुजुर्गों को होने वाली बीमारी है जिसमें व्यक्ति को भूलने की ऐसी बीमारी होती है कि खुद का नाम भी याद नहीं रहता. डिमेंशिया से पहले डिजिटल लगा देने से आप समझ गए होंगे कि मोबाइल, लेपटॉप, गैजेट्स आदि का ज्यादा इस्तेमाल इस भूलने की बीमारी को जन्म दे रहा है. हालांकि डिजिटल डिमेंशिया डिमेंशिया की तुलना में ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इसमें दिमाग के साथ-साथ शरीर में भी कई तरह की बीमारियां हो जाती है.

क्या है डिजिटल डिमेंशिया
टीओआई की खबर के मुताबिक डिजिटल डिमेंशिया शब्द न्यूरोसाइंसटिस्ट का दिया हुआ हालिया शब्द है. चूंकि आजकल का जमाना स्मार्ट फोन, लेपटॉप, ब्लूटूथ जैसे गैजेट्स का है तो लोग इसके बिना रह नहीं सकते. लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल डिमेंशिया की तरह ही दिमाग को पंगु बना रहा है. मसलन लोगों की दिमागी क्षमता कमजोर हो रही है. अगर साधारण गिनती पूछी जाती है तो लोग इसके लिए मोबाइल पर कैलकुलेटर खोलकर जवाब देते हैं. लोगों को आज की तारीख के बारे में पता नहीं रहता. ये सब डिजिटल डिमेंशिया के लक्षण है. इसके साथ ही मेमोरी लॉस, किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी और सीखने की क्षमता में अपंगता डिजिटल डिमेंशिया के लक्षण हैं. इस शब्द को जर्मनी के न्यूरोसाइंस्टिस्ट डॉ. मेनफ्रेज स्प्लिटजर ने लोकप्रिय बना दिया है. डॉ. स्प्लिटजर ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इन डिजिटल चीजों पर ज्यादा निर्भरता हुई तो इससे डिमेंशिया की तरह ही मरीज बन जाएंगे.

ज्यादा इस्तेमाल से बेचैनी, डिप्रेशन की समस्या
हाल ही में प्रकाशित जर्नल फ्रंटियर की एक स्टडी में इस बात को पुख्ता किया गया है. खासकर बच्चे डिजिटल डिमेंशिया के शिकार ज्यादा हो रहे हैं. दिमाग को बेहतर ढंग से काम करने के लिए अन्य अंगों की तरह ही स्टीमुलेशन यानी उद्दीपन की जरूरत होती है. जब हम इन डिजिटल चीजों पर ज्यादा निर्भर हो जाएंगे तो हम अपने दिमाग को इस तरह से उपयोग नहीं कर पाएंगे और इससे संज्ञानात्मक क्षमता पर असर पड़ेगा. यही कारण है कि डिजिटल उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल हमारी मानसिक क्षमता को प्रभावित कर रहा है. इससे रात में नींद की समस्या, एंग्जाइटी, बेचैनी, डिप्रेशन और इस तरह के कई भावनात्मक समस्याओं का सामना कर पड़ सकता है. हाल ही में जामा पेडएट्रिक्स में प्रकाशित एक स्टडी में कहा गया था कि जो बच्चे में दिन में 2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर अपना समय बिताते हैं, उनमें कई तरह के मनोवैज्ञानिक समस्याएं हो जाती है.

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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-what-is-digital-dementia-why-young-brain-decline-know-steps-to-prevent-8621973.html

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