क्या आपने नेति क्रिया का नाम सुना है. नहीं, तो आज जान लीजिए. नेति नाक, आंख, गले, कान वगैरह को सेहदमंद रखने वाला कर्म है. इसकी प्रक्रिया ये है कि सूत से बनी या फिर रबर की किसी पलती नली को नाक में डाल कर उसे मुंह से निकाला जाता है. रबर की पाइप उतनी ही मोटी या पतली हो चाहिए जितनी साइकिल के ट्यूब में लगने वाले वाल्ब में लगे रबर की होती है.
इसे नाक से डाल कर मुंह से निकाला जाता है. ये क्रिया दोनों नासिका छिद्रों से एक के बाद एक की जाती है. लंबे समय तक अभ्यास करने के बाद बहुत से लोग नेति के सूत्र की मोटाई बढ़ा लेते हैं. लेकिन शुरुआत पतले सूतों से बनी एक रस्सी से की जाती है. कई जानकार इस पर मोम का लेप भी लगाते हैं. ये शुद्ध कॉटन सूत से बनी होती है. नेति अष्टांग योग का हिस्सा है. बल्कि कहें कि योग के कर्म से पहले ये शुद्धि का एक तरीका है. जैसे दांतों पर मंजन करके दांत साफ किए जाते हैं, वैसे ही नेति नाक और उससे जुड़े चेहरे के दूसरे हिस्सों को साफ करता है. नेति सूत्र तकरीबन 9 इंच का होना चाहिए.
नेति कर्म का उल्लेख योग प्रदीपिका में आता है –
सूत्रं वितस्ति सुस्निग्धं नासानाले प्रवेशयेत्,
मुखत्रिर्गमयेच्चैशा नेतिः सिद्धैर्निगद्यते.
नेति का कर्म योग के छह कर्मों का हिस्सा है. इन्हें ही षटकर्म कहते हैं. षटकर्मों में वस्ती, धौती, नौली, नेती, कपालभाति और त्राटक . इन छहों के जरिए मनुष्य अपने शरीर की सफाई करके, उसे योग की और उच्च साधना के लिए योग्य बना सकता है. इसमें वस्ति बड़ी आंत की सफाई करती है, तो धौती और नौली से छोटी आंत और पेट की सफाई होती है. नेति नाक और मुंह समेत कान की सफाई करती है. जबकि कपालभाति फेफड़ों की शुद्धि और त्राटक नेत्रों की ज्योति बढ़ाने का काम करती है. यहां ये भी जान लेना जरुरी है कि इसमें से हरेक कर्म एक दूसरे को मदद करता है.
खैर, चर्चा नेति की चल रही है. नेति करने से बहुत सारी बीमारियों से हम बच सकते हैं. सेहतमंद रह सकते हैं. नेति के दो प्रकार हैं. एक सूत्र नेति जिसकी चर्चा ऊपर की गई. जबकि जल नेति भी नेति का एक हिस्सा है. जैसा नाम से साफ है जल नेति में जल का प्रयोग होता है. जल नेति से बहुत से आधुनिक डॉक्टर भी खूब सहमत होते हैं.
नाक के एक छेद पानी डालने से वो दूसरे नासिका छेद से गिरने लगता है. इसे ही जल नेति कहते हैं. अपनी किताब ‘स्वर योग’ में योगी राजबली मिश्र लिखते हैं- ‘सूत्र नेती के बाद जल नेति करना जरूरी है. ये उसी तरह है कि किसी नाली की सफाई के लिए सिर्फ झाडू लगा कर उसमें पानी न डाला जाय. या फिर पानी डाल के उस पर झाडू न फेरी जाय तो सफाई पूरी नहीं हो सकती.’ वैसे सूत्र नेति के अंतिम छोर पर धागों को इस तरह से खुला रखा जाता है जिससे वे झाडू जैसा ही जैसा काम करे. धागों का ये गुच्छा सारी गंदगी बाहर निकालने में मदद करता है.
सूत्र नेति और जल नेति के अलावा दूध नेति, घी नेति और मधु नेति के भी विधान बताए गए हैं. इन तत्वों के अलग-अलग असर होते हैं. हालांकि एलोपैथी के डॉक्टर इसके असर को लेकर एकमत नहीं है. लेकिन जल नेति को लेकर कोई विरोध नहीं है. उल्टी जल नेति, यानि व्युत्क्रम नेति के तहत मुंह में पानी भर कर उसे नाक के रास्ते बाहर निकालना होता है. इससे भी बहुत लाभ होता है.
खास बात ये है कि नेति नाक में की जाती है, लेकिन इसका असर नाक, कान, आंख और सिरदर्द वगैरह तक में होता है. योगाचार्यों और अभ्यास करने वालों का दावा हैं कि नेति करने वाले को सिरदर्द नहीं होता. अगर ये समस्या है भी तो चली जाती है. सर्दी जुकाम होना कम हो जाता है. आंखों की रोशनी पर भी इसका प्रर्याप्त असर पड़ता है. लेकिन सबसे अहम ये है कि इसे किसी योग्य योगाचार्य से ही सीखना चाहिए. अपने से ही या कोई वीडियो देख कर इसका अभ्यास शुरु कर देना खतरनाक हो सकता है. साथ ही योग की सारी क्रियाएं स्वस्थ व्यक्ति के लिए ही है. अगर किसी को नाक में कोई समस्या हो, खून वगैरह आने की दिक्कत हो तो इसकी शुरुआत बिल्कुल नहीं करनी चाहिए. उसे अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
(डिसक्लेमर- योग की क्रियाएं सामान्य व्यक्ति के लिए होती हैं. यदि शरीर में किसी तरह का रोग पहले से हो तो योग की किसी भी क्रिया को करने से पहले योगाचार्य और अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर करना चाहिए. अपने मन से कोई योगिक क्रिया करने से नुकसान हो सकता है.)
FIRST PUBLISHED : September 5, 2024, 17:36 IST
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