सबसे खास बात है कि डायबिटीज मरीजों में बढ़ रही डीएमई बीमारी के लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते हैं, जब तक कि यह रेटिना को नुकसान नहीं पहुंचा देती, हालांकि इसका पता जरूर लगाया जा सकता है. इसी को लेकर विश्व रेटिना दिवस पर एबवी के राष्ट्रीय कॉन्क्लेव में इकठ्ठा हुए जाने-माने रेटिना स्पेशलिस्ट और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट ने भारत पर लगातार बढ़ रहे डीएमई के बोझ को लेकर चिंता जताई, साथ ही शुगर के मरीजों की हर हाल में आई स्क्रीनिंग को जरूरी बताया.
डायबिटिक मैक्युलर एडिमा (डीएमई) आंख में धीरे-धीरे बढ़ता है. समय के साथ हाई ब्लड ग्लूकोज रेटिना की छोटी रक्त वाहिकाओं को कमजोर कर देता है, जिससे उनमें से तरल पदार्थ मैक्युला में रिसने लगता है. यह आंख का वह हिस्सा होता है जो हमें बारीक चीजें देखने में मदद करता है. धीरे-धीरे, यह सूजन दृष्टि को धुंधला और खराब कर देती है, और अगर इसका इलाज न किया जाए, तो यह स्थायी अंधेपन का कारण बन सकती है.
डीएमई को लेकर डॉ. महिपाल सचदेव ने कहा, अगर डीएमई का पता लगाना है, तो इससे होने वाले गंभीर नुकसान से पहले ही नियमित रेटिना जांच को मधुमेह देखभाल में शामिल करना जरूरी है, क्योंकि यह नुकसान एक बार हो जाने पर उसे वापस ठीक कर पाना मुश्किल है.
वहीं डॉ. ललित वर्मा ने कहा कि डीएमई कामकाजी उम्र के भारतीयों में रोके जा सकने योग्य अंधेपन के प्रमुख कारणों में से एक है. दृष्टि की रक्षा और क्वालिटी लाइफ में सुधार के लिए समस्या की जल्द से जल्द पहचान को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है.
वहीं इस पर एंडोक्राइनोलॉजी के दृष्टिकोण को सामने रखते हुए डॉ. शशांक जोशी ने कहा कि डीएमई जैसी जटिलताओं को रोकने के लिए मधुमेह का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना पहला सबसे महत्वपूर्ण कदम है. आंखों के विशेषज्ञों और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट को मरीजों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मिलकर काम करना चाहिए.
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