नागौर. द्रोणपुष्पी आयुर्वेद में एक अत्यंत गुणकारी औषधीय पौधा है, जो प्राचीन काल से पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. यह पौधा खेतों, बंजर भूमि और गांवों में सहज रूप से उग जाता है, लेकिन इसके औषधीय गुण असाधारण माने जाते हैं. द्रोणपुष्पी अपने कफनाशक, ज्वरनाशक और रोग प्रतिरोधक गुणों के कारण खांसी, जुकाम, बुखार, दमा और पाचन संबंधी समस्याओं को समाप्त करने के लिए प्रयोग की जाती रही है.
यह आसानी से मिलने वाला और प्राकृतिक पौधा होने के कारण एक भरोसेमंद औषधि के रूप में पहचाना जाता है. द्रोणपुष्पी एक छोटी ऊंचाई वाला, सीधा खड़ा होने वाला पौधा है. इसके पत्ते हरे और दांतेदार होते हैं, जबकि सफ़ेद रंग के फूल गोलाकार समूह में खिलते हैं. आधुनिक जीवनशैली में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं के बीच द्रोणपुष्पी जैसी जड़ी-बूटियां प्राकृतिक और सुरक्षित उपचार का सशक्त माध्यम बनकर उभर रही हैं.
द्रोणपुष्पी के स्वास्थ्य लाभ
आयुर्वेद के अनुसार, द्रोणपुष्पी शरीर को भीतर से शुद्ध करने वाली तथा संतुलन प्रदान करने वाली वनस्पति है. इसके पत्ते, फूल और जड़—तीनों ही औषधीय दृष्टि से उपयोगी माने जाते हैं. यह न केवल शारीरिक रोगों में लाभकारी है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सुदृढ़ बनाकर व्यक्ति को मौसमी संक्रमणों से भी बचाती है. द्रोणपुष्पी में कफनाशक, ज्वरनाशक, जीवाणुरोधी (एंटीसेप्टिक) और सूजनरोधी (एंटी-इन्फ्लेमेटरी) गुण पाए जाते हैं. हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. अंजू चौधरी के अनुसार, द्रोणपुष्पी का सेवन श्वसन संबंधी समस्याओं को जड़ से खत्म करता है. खांसी, जुकाम, कफ, दमा और अस्थमा जैसी समस्याओं में द्रोणपुष्पी बहुत लाभकारी मानी जाती है. यह बलगम को बाहर निकालकर सांस लेने में राहत प्रदान करती है, इसके साथ ही यह पाचन तंत्र के लिए भी लाभकारी है. गैस, अपच, पेट फूलना और दस्त जैसी समस्याओं में यह पाचन अग्नि को मजबूत करती है और भूख बढ़ाती है.
बुखार, वायरल फीवर, मलेरिया और टाइफॉइड जैसी स्थितियों में इसके काढ़े का सेवन शरीर को ठंडक और आराम प्रदान करता है. यह त्वचा रोगों में भी असरदार है. दाद, खुजली, घाव, सूजन और फुंसियों पर इसके पत्तों का लेप लगाने से लाभ मिलता है. इसके एंटीसेप्टिक गुण संक्रमण को रोकने में मदद करते हैं. हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार, द्रोणपुष्पी शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायक है और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाती है. आयुर्वेद के अनुसार यह यकृत (लिवर) को स्वस्थ रखने में मदद करती है और पीलिया जैसी स्थिति में जड़ का चूर्ण विशेष लाभकारी होता है.
ग्रामीण सीमा देवी के अनुसार, द्रोणपुष्पी को काढ़ा बनाकर उपयोग में लिया जाता है. ताज़े पत्तों को पानी में उबालकर चाय की तरह पिएं, चाहें तो इसमें शहद या अदरक मिलाया जा सकता है. इसे लेप/रस के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है, पत्तों का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाएं. रस निकालकर बाहरी रूप से लगाया जा सकता है, इसकी जड़ का सूखा चूर्ण आयुर्वेदिक सलाह के अनुसार सेवन किया जाता है. द्रोणपुष्पी एक साधारण दिखने वाला, लेकिन असाधारण गुणों वाला औषधीय पौधा है. सही मात्रा और सही विधि से उपयोग करने पर यह अनेक रोगों में प्राकृतिक रूप से राहत प्रदान करता है. आधुनिक जीवनशैली में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का यह ज्ञान स्वस्थ जीवन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-health-benefits-and-ayurvedic-medicine-dronpushpi-local18-ws-kl-9949945.html







