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पिथौरागढ़: हरड़, जिसे आयुर्वेद में हरितकी कहा जाता है, मुख्य रूप से पहाड़ी और वन क्षेत्रों में पाई जाती है. शुद्ध वातावरण में उगी यह औषधीय गुणों से भरपूर है और आयुर्वेद में इसे तीनों दोष वात, पित्त और कफ को संतुलित करने वाली माना जाता है. हरड़ पाचन सुधारती है, इम्यूनिटी बढ़ाती है और शरीर को अंदर से शुद्ध रखने में मदद करती है.

हरड़, जिसे संस्कृत में हरितकी कहा जाता है, आयुर्वेद की सबसे महत्वपूर्ण औषधियों में से एक मानी जाती है. यह मुख्य रूप से भारत के पर्वतीय और वन क्षेत्रों में पाई जाती है. उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के वन क्षेत्रों में हरड़ के पेड़ प्राकृतिक रूप से उगते हैं. पहाड़ों की शुद्ध हवा, स्वच्छ जल और जैविक मिट्टी में उगने वाली हरड़ औषधीय गुणों से भरपूर होती है, और इसी कारण आयुर्वेद में पहाड़ी हरड़ को विशेष महत्व दिया गया है.

हरड़ का वानस्पतिक नाम Terminalia chebula है. इसका फल कच्चा होने पर हरा और पकने पर हल्का पीला या भूरा हो जाता है. सूखने के बाद यही फल औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. पहाड़ी इलाकों में स्थानीय लोग इसे सदियों से घरेलू इलाज में प्रयोग करते आ रहे हैं.

आयुर्वेद में हरड़ को “औषधियों की माता” कहा गया है. चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में हरितकी के गुणों का विस्तार से वर्णन मिलता है. आयुर्वेद के अनुसार हरड़ तीनों दोष वात, पित्त और कफ को संतुलित करने की क्षमता रखती है और खासकर वात दोष को शांत करने में अत्यंत प्रभावी मानी जाती है.
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हरड़ में कसैला, कड़वा, मधुर और हल्का तीखा स्वाद पाया जाता है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और सूजनरोधी गुण मौजूद होते हैं, और इसी कारण यह शरीर के कई रोगों में लाभकारी मानी जाती है.

पर्वतीय क्षेत्रों में हरड़ केवल औषधि नहीं, बल्कि आजीविका का भी साधन है. कई ग्रामीण परिवार हरड़ के फल इकट्ठा कर सुखाते हैं और बाजार में बेचते हैं, जिससे उन्हें आर्थिक सहायता मिलती है. पहाड़ों में उगने वाली हरड़ पूरी तरह प्राकृतिक और रासायनिक मुक्त होती है, इसलिए इसकी औषधीय गुणवत्ता अधिक मानी जाती है.

हरड़ का सबसे बड़ा लाभ पाचन से जुड़ा है. यह कब्ज, गैस, अपच और एसिडिटी में अत्यंत लाभकारी है और मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाती है. हरड़ शरीर में जमा अतिरिक्त वसा को धीरे-धीरे कम करने में भी मदद करती है. इसके अलावा, हरड़ इम्यूनिटी को मजबूत करती है और बदलते मौसम में सर्दी-जुकाम, खांसी व संक्रमण से बचाव में उपयोगी होती है. यह खून को साफ करके त्वचा को साफ और चमकदार बनाती है और फोड़े-फुंसी, दाग-धब्बे और एलर्जी जैसी समस्याओं में भी लाभ देती है.

हालांकि हरड़ एक प्राकृतिक औषधि है, फिर भी इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए. अत्यधिक सेवन से कमजोरी या पेट में जलन हो सकती है. गर्भवती महिलाओं और गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों को आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के बाद ही इसका उपयोग करना चाहिए.

हरड़ वास्तव में पहाड़ों की अमूल्य देन है और आयुर्वेद में इसका स्थान अत्यंत ऊंचा है. पाचन से लेकर त्वचा, बाल, आंखें और इम्यूनिटी तक हरड़ संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है. आधुनिक जीवन में जहां लोग रासायनिक दवाओं पर निर्भर हो रहे हैं, वहां हरड़ जैसी प्राकृतिक और आयुर्वेदिक औषधि हमें प्रकृति की ओर लौटने का संदेश देती है. सही मात्रा और सही तरीके से सेवन करने पर हरड़ स्वस्थ और संतुलित जीवन का मजबूत आधार बन सकती है.
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https://hindi.news18.com/photogallery/lifestyle/health-harad-ayurvedic-health-benefits-digestion-immunity-local18-9987263.html







