शोधकर्ताओं, जिनमें वाधवानी स्कूल ऑफ डेटा साइंस एंड एआई (डब्ल्यूएसएआई) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ता शामिल हैं, ने बहु विषयक दृष्टिकोण (एक ऐसा तरीका है जिसमें किसी समस्या या विषय को समझने और हल करने के लिए विभिन्न विषयों के ज्ञान और कौशल का एक साथ उपयोग किया जाता है) से कुछ महत्वपूर्ण मेटाबॉलिक पाथवे (रासायनिक अभिक्रियाओं का एक क्रम ) की पहचान की जिन्हें टारगेट कर पैथोजन को नियंत्रित किया जा सकता है.
टीम ने सीएएल में अज्ञात चयापचय कमजोरियों की पहचान करने के लिए बड़े पैमाने पर कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग और एक्सपेरिमेंटल वैलिडेशन (प्रायोगिक सत्यापन) को संयोजित किया. इस रिसर्च की प्रमुख अन्वेषक और मुंबई स्थित आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच की वैज्ञानिक डॉ. सुसान थॉमस ने कहा, “अन्य अध्ययनों के विपरीत, सीएएल मॉडल आईआरवी781 जैसे अनूठे इंटीग्रेटेड होस्ट-फंगल मेटाबॉलिक मॉडल का ह्यूमन मेटाबॉलिक मॉडल रेकन3डी के साथ विलय किया गया.”

सीएएल मेटाबोलिज्म कैसे करता रिएक्ट जानने में मिली मदद
आईआईटी मद्रास स्थित डब्ल्यूएसएआई के आईबीएसई संकाय के प्रो. कार्तिक रमन ने कहा, “प्रतिरोधक क्षमता को दरकिनार करने के लिए एंटीफंगल दवाओं में विविधता लाने और उन्हें बेहतर बनाने के लिए यह अभूतपूर्व नवीन शोध अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, इसका उद्देश्य रोगी की जीवन दर में सुधार, मृत्यु दर में कमी और उपचार लागत को कम करना है.”
कैंडिडा एल्बिकेंस कवक (यीस्ट) की एक प्रजाति है जो सामान्यतः मानव शरीर में सामान्य माइक्रोबायोटा के हिस्से के रूप में रहती है. यह स्वस्थ व्यक्तियों को नुकसान पहुंचाए बिना मुंह, गले, आंत, योनि और त्वचा पर आमतौर पर पाया जाता है.
भारत में आक्रामक कैंडिडिआसिस की वार्षिक घटना लगभग 4 लाख 70 हजार है. विश्व स्तर पर, हर साल लगभग 15,65,000 लोगों को कैंडिडा रक्तप्रवाह संक्रमण या आक्रामक कैंडिडिआसिस होता है, जिससे 9,95,000 मौतें (63·6 प्रतिशत) होती हैं.
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