एम्स के पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी विभाग की प्रोफेसर, डॉ.रचना सेठ ने बताया कि करीब दस साल पहले कैंसर से पीड़ित बच्चों में से 50 फीसदी से भी कम को बचा पाना संभव हो पाता था लेकिन आज हर चार में से तीन बच्चे ठीक हो रहे हैं. यानि 75 फीसदी बच्चों को कैंसर के बाद इलाज से बचाया जा सकता है. यह आंकड़ा बताता है कि आज भारत में कैंसर के इलाज ने कितनी तरक्की कर ली है.
वहीं बच्चों के आंखों में कैंसर यानि रेटिनोब्लास्टोमा में करीब 90 फीसदी बच्चों को ठीक किया जा सकता है. बता दें कि एम्स में हर साल 450 से 500 नए कैंसर के बच्चे आते हैं. इनमें सबसे कॉमन कैंसर हैं, ल्यूकेमिया यानि ब्लड कैंसर, लिम्फोमा, रेटिनोब्लास्टोमा, ब्रेन ट्यूमर और हड्डियों का कैंसर.
प्रो. सेठ ने बताया कि बच्चों में सबसे ज्यादा मामले ल्यूकेमिया और लिम्फोमा के आते हैं, ये दोनों मिलाकर करीब एक-तिहाई मामलों में होते हैं, जबकि रेटिनोब्लास्टोमा करीब एक-चौथाई में होता है.इसके बाद ब्रेन और बोन कैंसर के मामले आते हैं.
जेनेटिक होता है कैंसर
डॉ. सेठ ने कहा कि बहुत सारे मामलों में कैंसर का कारण आनुवंशिक (जीन से जुड़ा) होता है लेकिन कैंसर के ज्यादातर मामलों का स्पष्ट कारण अब भी पता नहीं चल पाया है. यहां तक कि इलाज होने के बाद करीब 15 फीसदी मामलों में बीमारी दोबारा लौट आती है और इसके लिए और भी ज्यादा क्रिटिकल इलाज की जरूरत होती है.
डॉ. सेठ ने बताया कि एम्स नई दिल्ली में ज्यादातर कैंसर के बच्चे उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य से इलाज कराने के लिए आते हैं. इससे यह पता चलता है कि देशभर में बच्चों में कैंसर के इलाज की सुविधा समान रूप से उपलब्ध नहीं है.
हालांकि बीमारी की जल्दी पहचान होने और इलाज मिलने से इसकी रिकवरी दर बढ़ जाती है.आजकल कैंसर की आधुनिक दवाएं और मजबूत सहायक सेवाएं भी मौजूद हैं जो कैंसर के इलाज में कारगर साबित हो रही हैं.
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-70-thousand-children-get-cancer-every-year-in-india-how-many-get-treated-well-aiims-delhi-pediatric-oncology-data-reveals-ws-kl-9658582.html