हरिकांत शर्मा/ आगरा: कौशाम्बी फाउंडेशन और डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स के संयुक्त तत्वावधान में जेपी सभागार में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इंटरनेशनल कांफ्रेंस इन मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च एंड प्रैक्टिस फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड इनोवेशन कार्यशाला में देशभर के 350 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया. कार्यशाला के दूसरे दिन कई शोधकर्ताओं ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए. इनमें डीईआई विश्वविद्यालय की डॉ. आंचल ने मिलावटी दूध के कारण हो रहे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक नुकसान पर अपना शोध प्रस्तुत किया.
मिलावटी दूध से बढ़ रही बीमारियां
डॉ. आंचल ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 319 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन हो रहा है, जबकि जरूरत 426 लाख मीट्रिक टन की है . इस अंतर को पूरा करने के लिए दूध में डिटर्जेंट, यूरिया और स्टार्च जैसे हानिकारक पदार्थ मिलाए जा रहे हैं. डिटर्जेंट से चक्कर आना, उल्टी और पेट दर्द जैसे लक्षण सामने आते हैं. स्टार्च से किडनी खराब होने की संभावना बढ़ती है.
यूरिया के कारण किडनी फेल होने के मामलों में तेजी आई है
इसके अलावा, नकली दूध का सेवन मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है. यह याद्दाश्त कमजोर करता है और बोलने की क्षमता को प्रभावित करता है. साथ ही इससे किडनी फेल हो सकती है.
मिलावटी दूध की ऐसे करें पहचान जरूरी
डॉ. आंचल ने बताया कि लेबोरेटरी में फिजिकल डिडक्शन मेथड के जरिए दूध में मिलावट का पता लगाया जा सकता है. उदाहरण के लिए, दूध में चावल के पानी या यूरिया की मिलावट होने पर उसका रंग बदल जाता है. उन्होंने सुझाव दिया कि आम उपभोक्ताओं को जागरूक करने और एक ऐसा उपकरण विकसित करने की जरूरत है, जिससे आसानी से दूध में मिलावट की पहचान की जा सके. इससे मिलावटी दूध के सेवन से बचाव संभव हो सकेगा.
FIRST PUBLISHED : December 29, 2024, 10:13 IST
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