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सिर्फ पैसे की बर्बादी.. आर्टिफिशियल रेन से प्रदूषण नहीं होता है कम, दिल्ली की जहरीली हवा पर एनवायरनमेंटलिस्ट सुनील दहिया


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Delhi Air Pollution: देश के टॉप एनवायरमेंटलिस्ट सुनील ने कहा कि आर्टिफिशियल रेन पॉल्यूशन कंट्रोल करने का एक परमानेंट सॉल्यूशन नहीं है. यह सिर्फ पैसों का खर्च है और सरकार के पास आर्टिफिशियल रेन करवाने के बाद भी यह बड़ी समस्या खड़ी है.

दिल्ली: हर साल की तरह दिल्ली-NCR में एक बार फिर से प्रदूषण ने हवा में जहर घोल दिया है और लोगों का जीना मुश्किल हो चुका है. दिवाली के बाद प्रदूषण अब पिछले कई सालों के रिकॉर्ड भी तोड़ता जा रहा है. हर दिन दिल्ली-NCR के किसी न किसी इलाके में AQI 500 से ऊपर ही होता है. इसी समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार आर्टिफिशियल बारिश की कोशिश कर रही है. जिसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. वहीं कहां जा रहा है कि यह आर्टिफिशियल रेन अक्टूबर 29 को पहली बार दिल्ली में करवाई जाएगी.

इसी आर्टिफिशियल रेन से जुड़ेगी कुछ चीजों पर जब न्यूज़18 की टीम ने दिल्ली-NCR के Enviro Catalysts संस्था के संस्थापक सुनील दहिया से बात की तो उन्होंने आर्टिफिशियल रेन से जुड़ी कुछ गंभीर बातें बताई. हम आपको यह भी बता दें कि सुनील इस वक्त देश के टॉप एनवायरमेंटलिस्ट हैं और इनके पास पर्यावरण संबंधी मुद्दों के स्ट्रैटेजिक और रिसर्च एनालिस्ट के रूप में 14 वर्षों से अधिक का अनुभव है और इससे पहले वह सेंटर फॉर रिसर्च ओं एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) सह-संस्थापक सदस्य भी थे.

इस तरह करवाई जाती है आर्टिफिशियल रेन
सुनील ने बताया कि आर्टिफिशियल रेन एक साइंटिफिक तरीका है, जिसमें मौजूद बादलों में खास रसायन डाले जाते हैं ताकि बारिश हो जाए. ये रसायन पानी की बूंदों या बर्फ के कणों को जोड़ने में मदद करते हैं. मुख्य रसायन हैं सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस (ठंडा कार्बन डाइऑक्साइड) या नमक (जैसे आयोडाइज्ड सॉल्ट). ये तरीका 1940 के दशक से इस्तेमाल हो रहा है. अमेरिका, चीन और यूएई जैसे देश पानी की कमी को कम करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करते हैं. इस परियोजना का नाम है ‘टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेशन एंड इवैल्यूएशन ऑफ क्लाउड सीडिंग फॉर दिल्ली-NCR पॉल्यूशन मिटिगेशन’. इसकी आमतौर में लागत ₹3.21 करोड़ है. अगर और आसान भाषा में कहें तो इस तकनीक और तरीके के माध्यम से बादलों में एक झटका दिया जाता है जिससे बादलों में बन पानी बारिश के रूप में निकलना शुरू हो जाता है.

कुछ घंटों के बाद फिर से हो जाएगा पॉल्यूशन
सुनील ने इस तकनीक और तरीके के बारे में सब कुछ बताने के बाद ही कहा कि आर्टिफिशियल रेन में काफी ज्यादा पैसे खर्च होते हैं और यह एक परमानेंट सॉल्यूशन भी नहीं है. सरकार को यह भी देखना है कि उन्हें यह आर्टिफिशियल रेन सिर्फ दिल्ली पर करवानी है या दिल्ली-NCR के बाकी इलाकों पर भी करवानी है. जैसे कि नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद क्योंकि पॉल्यूशन वहां पर भी होता है और हवा से पॉल्यूशन यह मुख्य रूप से दिल्ली में भी आता है.

उनका कहना था कि यह सब सवाल सरकार के लिए मुश्किल हैं और इससे दिल्ली-NCR में हवा में बड़ा प्रदूषण कम होना काफी मुश्किल है. वहीं इसके बाद उन्होंने यह भी कहा कि सबसे बड़ी बात तो यह है कि यदि आप आर्टिफिशियल रेन करवा भी लेते हैं तो भी आर्टिफिशियल रेन होने के 4 से 5 घंटे के बाद फिर से पॉल्यूशन लेवल उतना ही हो जाएगा, क्योंकि वह पॉल्यूशन थोड़ी देर के लिए नीचे बैठ जाएगा यहां फिर वॉश आउट हो जाएगा. लेकिन उसके बाद फिर से हालात पहले के जैसे ही हो जाएंगे.

परमानेंट समाधान की जरूरत
अंत में उनका कहना था कि सरकार को पॉल्यूशन पर अगर कंट्रोल करना है तो उन्हें परमानेंट समाधान की ओर जाना होगा और नेचुरल तरीके से जिन चीजों से पॉल्यूशन बढ़ रहा है उन चीजों को काम करके पॉल्यूशन काम करना होगा और इसी तरह से लंबे समय के लिए पॉल्यूशन लेवल को कंट्रोल किया जा सकता है.

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Mohd Majid

with more than more than 5 years of experience in journalism. It has been two and half year to associated with Network 18 Since 2023. Currently Working as a Senior content Editor at Network 18. Here, I am cover…और पढ़ें

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Delhi AQI: सिर्फ पैसे की बर्बादी.. आर्टिफिशियल रेन से प्रदूषण नहीं होता है कम


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