पलामू: एलोपैथी में किसी भी गंभीर बीमारी को ठीक करने की ताकत है. मशीनों और दवा के दम पर असाध्य रोग भी काबू किए जा सकते हैं. लेकिन, ऐसे इलाज में खूब पैसा भी खर्च होता है. खासकर झारखंड में आदिवासी तो आधुनिक इलाज पद्धति की सुविधा से अब भी कोसों दूर हैं. ऐसे में प्राचीन नुस्खे ही उनकी जान बचाते आ रहे हैं. एक ऐसा ही आदिवासी नुस्खा जो टूटी हड्डियों को जोड़ने में बेहद कारगर है.
जंगल में रहने वाले आदिवासी अपनी पुरानी परंपरा और जंगलों में मिलने वाली जड़ी-बूटी के आधार पर तमाम बीमारियों पर काबू पाने का दावा आज भी करते हैं. वहीं, आज के समय में हड्डियों का टूटना आम बात है. सामान्य रूप से गिरने पर ही हेयरलाइन फ्रैक्चर जैसी समस्या आ जाती है. ऐसे में हम अस्पताल जाते हैं. लेकिन, आदिवासी ऐसी समस्या को दूसरी तरह से ठीक करते हैं. आइए जानते हैं उनका ‘जादुई’ इलाज…
जानें क्या है हड़जोड़वा
पलामू के आदिवासी समुदाय के अर्जुन सिंह ने Bharat.one को बताया कि हड्डियां टूटने पर आज भी हम लोग ‘हड़जोड़वा’ जड़ी बूटी का इस्तेमाल करते हैं. ये कोई खास नहीं, बल्कि आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाला गिलोय का पौधा है. आगे बताया, गिलोय हड्डी जोड़ने से लेकर डायबिटीज तक को ठीक करने में कारगर है. इसमें इतने गुण हैं कि 32 बीमारी को ठीक कर सकता है.
ऐसे करते हैं इस्तेमाल
आगे बताया, आदिवासी समुदाय के लोग हड्डी के टूटने पर गिलोय का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए गिलोय को हड़जोड़वा भी कहा जाता है. सबसे पहले टूटे स्थान को साफ किया जाता है. इसके बाद गिलोय को पीसकर उसे जगह पर लगाकर कपड़े से बांध दिया जाता है. जिसे हर दो-चार दिन पर बदला जाता है. यही काम महीने भर किया जाता है. साथ ही गिलोय को पीसकर खाली पेट सेवन किया जाता है, जिससे टूटी हड्डी तेजी से जुड़ जाती है.
पूर्वजों के समय से इस्तेमाल
अर्जुन ने बताया, ये नुस्खा पूर्वजों के काल से इस्तेमाल होते आ रहा है. बुखार और शुगर जैसी बीमारी के लिए भी गिलोया यानी हड़जोड़वा बेहद लाभदायक है. इसे रोजाना खाली पेट सेवन करने से शुगर में आराम मिलता है. वहीं, काला बुखार हो तो इसे काटकर पीसा जाता है, जिसका रस निकालकर पीड़ित को पिलाया जाता है. बुखार ठीक हो जाता है.
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-hadjodwa-infallible-medicine-for-joining-broken-bones-tribals-using-for-years-not-go-hospital-local18-8833979.html