Symptoms of Diabetic neuropathy: युवाओं में तेजी से डायबिटीज का खतरा बढ़ता जा रहा है. पहले के जमाने में 50-60 साल की उम्र के बाद ही डायबिटीज की बीमारी होती थी लेकिन आजकल 25-30 साल की उम्र में ही ऐसा होने लगा है. डायबिटीज क्यों होता है और कैसे होता है, इसका सटीक कारण तो अभी नहीं पता लेकिन माना जाता है कि खराब लाइफस्टाइल और गलत खान-पान की वजह से डायबिटीज की बीमारी हो रही है.आज ज्यादातर काम कंप्यूटर से होने लगा है. इसमें डेस्क वर्क बढ़ गया है. समय के अभाव लोग फिजिकल एक्टिविटी बहुत कम करते हैं. इन सब वजहों से भी डायबिटीज बढ़ गया है. दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश को मालूम भी नहीं कि उन्हें डायबिटीज है. डॉक्टरों का कहना है कि यदि किसी को पहले से मालूम नहीं है और डायबिटीज की दवा भी नहीं ले रहा है और उसका ब्लड शुगर लेवल फास्टिंग में 300 से ज्यादा हो गया है तो उसमें नसें फटने का खतरा बढ़ जाता है. इसमें नर्व डैमेज होने लगता है. डायबिटीज के मरीजों में जब नसें डैमेज होने लगे तो इसे डायबेटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) कहते हैं. आमतौर पर इसमें शरीर के किसी भी हिस्से में नर्व डैमेज होने लगता है.कुल डायबेटिक मरीजों में से करीब 50 प्रतिशत को डायबेटिक न्यूरोपैथी से जूझना पड़ता है.
नर्व डैमेज से पहले शरीर में मिलने लगते हैं ये संकेत
मायो क्लिनिक के मुताबिक डायबेटिक न्यूरोपैथी चार तरह की होती है जिनमें कमोबेश एक ही तरह के लक्षण दिखते हैं.डायबेटिक न्यूरोपैथी के लक्षण सबसे पहले हाथ और पैर की नसों में देखने को मिलता है.इसके शुरुआती लक्षणों में हाथ-पैर सुन्न होने लगते हैं.अगर शुगर लेवल बढ़ता है तो खून की छोटी-छोटी नलिकाओं की दीवार कमजोर होने लगती है. इससे खून के रिसने का डर रहता है. इस स्थिति में शरीर के उस हिस्से में ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों का पहुंचना मुश्किल हो जाता है.
डायबेटिक न्यूरोपैथी के लक्षण
अगर किसी को डायबेटिक न्यूरोपैथी है तो शुरुआत में हाथ-पैर में सुन्नापन्न आने लगता है या इन जगहों पर दर्द का एहसास कम होने लगता है. वहीं शरीर में झुनझुनी या जलन महसूस होने लगता है. मांसपेशियों में तेज दर्द या ऐंठन या कमजोरी होने लगती है. डायबेटिक न्यूरोपैथी में कुछ लोगों में छूने पर अत्यधिक संवेदनशीलता,यहां तक कि चादर भी छू जाए तो दर्द होने लगता है.इस बीमारी में पैरों में गंभीर समस्याएं, जैसे अल्सर, संक्रमण, फोड़े, छाले, हड्डी और जोड़ों में फ्रेक्चर का खतरा बढ़ जाता है. वहीं ऑटोइम्यून न्यूरोपैथी में पेट संबंधी दिक्कतें होने लगती है.खाना निकलने में परेशानी होती है.फिजिकल रिलेशन में भी कबी-कबी परेशानी हो सकती है. इस बीमारी में जांघ और बैक में बहुत अधिक दर्द होने लगता है.मांसपेशियों में बहुत कमजोरी आ जाती है.किसी-किसी को दिखाई देने में एक ही चीज दो दिखती हैं. कुछ व्यक्तियों में पैरालाइसिस भी हो सकता है.
कैसे इससे मुक्ति पाएं
डायबेटिक न्यूरोपैथी हो ही नहीं, इसके लिए सबसे बेहतर है साल में एक बार शुगर टेस्ट जरूर कराएं और यदि बढ़ गया तो सबसे पहले डॉक्टर से दिखाएं. रेगुलर दवाई खाएं और रेगुलर एक्सरसाइज करें. खान-पान का विशेष ख्याल रखें.बाजार की चीजें एकदम कम कर दें. फास्ट फूड, जंक फूड, ज्यादा तली-भुनी चीजें, पैकेज्ड चीजें, मीठी चीजें, शराब, तंबाकू आदि का सेवन न करें. हरी पत्तीदार सब्जियां, ताजे फल, साबुत अनाज, सीड्स, ड्राई फ्रूट्स आदि का सेवन करें. पर्याप्त नींद लें और तनाव न लें.
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FIRST PUBLISHED : September 29, 2024, 12:52 IST
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