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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ओक्युलोमिक्स जैसी तकनीकें रेटिना इमेजिंग से डायबिटीज, हार्ट, किडनी रोग की पहचान आसान बना रही हैं, लेकिन डेटा और पारदर्शिता चुनौतियां बनी हुई हैं.

Down To Earth में छपी रिपोर्ट के अनुसार, रिसर्च से साबित हुआ है कि रेटिना की छोटी रक्त वाहिनियों का सिकुड़ना लंबे समय में हाई ब्लड प्रेशर का संकेत देता है, जबकि बड़ी नसों का चौड़ा होना टाइप-1 डायबिटीज में किडनी की समस्या से जुड़ा हो सकता है. इसके अलावा आर्टेरियोल-टू-वेन्यूलर डायमीटर रेशियो स्ट्रोक और हार्ट डिजीज का अहम बायोमार्कर है. ऐसे में रेटिना की नियमित जांच डायबिटीज, किडनी रोग, हार्ट की समस्या और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर तक के खतरे को समय रहते पहचानने में मदद करती है.
हाल ही में ओक्युलोमिक्स नामक तकनीक ने रेटिनल माइक्रोवास्कुलर बायोमार्कर्स को समझने में नई उम्मीद जगाई है. एआई अब प्री और पोस्ट-ऑपरेटिव इमेजेस से सीखकर मैक्युलर होल सर्जरी के नतीजों का अनुमान भी लगा रहा है, जिससे सर्जरी की योजना और मरीज को परामर्श देना आसान हो जाता है. भारत जैसे देश में जहां डायबिटीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, एआई आधारित नॉन-इनवेसिव डायबिटीज स्क्रीनिंग बेहद कारगर हो सकती है. मौजूदा HbA1c टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल की जरूरत होती है, जबकि रिसर्च टीमें एक डीप लर्निंग फ्रेमवर्क तैयार कर रही हैं जो केवल रेटिना की फोटो से ही ब्लड शुगर लेवल (HbA1c) को सटीकता से आंक सके.
विविधा सिंह न्यूज18 हिंदी (NEWS18) में पत्रकार हैं. इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में बैचलर और मास्टर्स की डिग्री हासिल की है. पत्रकारिता के क्षेत्र में ये 3 वर्षों से काम कर रही हैं. फिलहाल न्यूज18…और पढ़ें
विविधा सिंह न्यूज18 हिंदी (NEWS18) में पत्रकार हैं. इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में बैचलर और मास्टर्स की डिग्री हासिल की है. पत्रकारिता के क्षेत्र में ये 3 वर्षों से काम कर रही हैं. फिलहाल न्यूज18… और पढ़ें
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