गाजीपुर: बच्चों की देखभाल में काजल और दूध से जुड़े मिथक सालों से भारतीय परंपरा का हिस्सा रहे हैं. ऐसे में बच्चों की देखभाल विशेषज्ञ डॉक्टर नेहा मौर्या बताती हैं कि माता-पिता को इन प्रथाओं पर फिर से विचार करना चाहिए.
जानें काजल से बच्चों की आंखों को नुकसान
कई परिवारों में बच्चों की आंखों में काजल लगाने की प्रथा यह सोचकर निभाई जाती है कि इससे आंखें बड़ी और सुंदर बनती हैं, लेकिन नेहा मौर्या बताती हैं कि यह एक मिथ्या है. काजल लगाने से बच्चों की आंखों में जलन, लालपन और पानी आ सकता है. बाजार में बिकने वाले काजल, खासकर लोहे की डिबिया (कजरौटा) में रखे काजल, हानिकारक हो सकते हैं. ये धूल और बैक्टीरिया के संपर्क में आते हैं.
महिलाएं अक्सर बिना हाथ धोए बच्चों की आंखों में काजल लगाती हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. नेहा कहती हैं कि काजल की मान्यता को अपनाना है, तो इसे आंखों में लगाने के बजाय माथे या सिर के कोने पर लगाएं.
सिर्फ दूध नहीं, बच्चों के लिए जरूरी है पूरक आहार
दूध को हमेशा ‘संपूर्ण आहार’ माना गया है, लेकिन नेहा बताती हैं कि 6 महीने के बाद बच्चों को केवल दूध देना पर्याप्त नहीं है. इस उम्र में बच्चों का डाइजेस्टिव सिस्टम भोजन पचाने के लिए तैयार हो जाता है. गांवों में यह मिथ्या है कि भोजन देने से बच्चों का पेट बाहर निकल जाएगा या उन्हें नमक का स्वाद लग जाएगा, जिससे वह दूध पीना बंद कर देंगे. यह पूरी तरह गलत है.
परंपरा और विज्ञान की टक्कर
दूध में आयरन और विटामिन-C नहीं होते हैं, जो बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी हैं. 6 महीने के बाद बच्चों को दूध के साथ-साथ पूरक आहार देना चाहिए, जैसे दाल, खिचड़ी, सब्जी का सूप आदि. यह बच्चों की सेहत को मजबूत बनाता है और उन्हें कुपोषण से बचाता है. ऐसे में माता-पिता को बच्चों की देखभाल में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. परंपराओं और मिथकों से सावधान रहते हुए बच्चों की सेहत को प्राथमिकता दें.
FIRST PUBLISHED : December 10, 2024, 07:06 IST
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-ghazipur-baby-expert-dr-neha-maurya-said-applying-kagal-eyes-children-wrong-health-tip-local18-8886628.html