कैसे काम करता है यह खास स्टेंट
यह डिवाइस एक कैथेटर के जरिए ब्रेन की उस नस तक पहुंचाया जाता है, जहां ब्लड क्लॉट फंसा होता है. वहां जाकर इसका जाल जैसा स्ट्रक्चर फैलता है और पूरे थक्के को कैप्चर कर लेता है. इसके बाद जब स्टेंट को वापस खींचा जाता है तो क्लॉट भी साथ में बाहर आ जाता है. इस तरह ब्रेन की नसों में ब्लड फ्लो दोबारा शुरू हो जाता है और स्ट्रोक का असर कम हो जाता है. मेडिकल साइंस की भाषा में यह टेक्नोलॉजी बेहद एडवांस और सेफ मानी जा रही है.
इस डिवाइस को मंजूरी मिलने से पहले देशभर में इसका मल्टीसेंट्रिक ट्रायल किया गया. इसमें AIIMS दिल्ली, JIPMER पांडिचेरी और CK बिर्ला हॉस्पिटल- CMRI कोलकाता जैसे बड़े अस्पताल शामिल रहे. खास बात यह रही कि ईस्टर्न इंडिया से केवल CMRI कोलकाता ने हिस्सा लिया. इस रिसर्च के बाद साबित हुआ कि यह डिवाइस भारतीय पॉपुलेशन के लिए भी पूरी तरह कारगर और सेफ है. यही वजह है कि अब इसे रेगुलेटरी अप्रूवल मिल गया है.
कोलकाता के CMRI के न्यूरोलॉजी प्रोफेसर और ट्रायल इन्वेस्टिगेटर डीप दास ने कहा कि यह डिवाइस भारत के स्ट्रोक केयर प्रोग्राम में क्रांति ला देगा. उन्होंने बताया कि इस ट्रायल से भारत की मेडिकल रिसर्च और डिवाइस वैलिडेशन कैपेबिलिटी भी साबित हुई है. वहीं, बिमन कांति राय, जो आईपीजीएमईआर के न्यूरोसाइंसेज इंस्टीट्यूट से जुड़े हैं, उन्होंने कहा कि इस डिवाइस की खासियत यह है कि इसे भारतीय मरीजों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है.
कीमत होगी आधी
शुरुआत में इस डिवाइस की कीमत करीब 3.5 लाख रुपये बताई जा रही है और यह सिर्फ एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन राहत की बात यह है कि अगले दो महीनों में इसका प्रोडक्शन भारत में शुरू हो जाएगा. इससे इसकी कीमत 50% तक कम हो जाएगी. यानी ज्यादा मरीज इसे अफोर्ड कर पाएंगे और हेल्थकेयर सिस्टम पर भी पॉजिटिव असर पड़ेगा.
इस डिवाइस को डेवलप करने में US-बेस्ड कंपनी और भारतीय स्टार्टअप ग्रैविटी मेडिकल टेक्नोलॉजी ने अहम रोल निभाया है. इसके को-फाउंडर और CTO शश्वत देसाई ने कहा कि यह डिवाइस भारत में एडवांस स्ट्रोक केयर की बड़ी जरूरत को पूरा करेगा. वहीं, ट्रायल के ग्लोबल प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर दिलीप यवगल का मानना है कि इससे लाइफ सेविंग प्रोसिजर अब और ज्यादा किफायती और सुलभ होंगे.
राज्य स्वास्थ्य विभाग के टेली-स्ट्रोक प्रोग्राम से जुड़े बिमन कांति राय ने कहा कि इस डिवाइस से न सिर्फ मेट्रो सिटीज बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों में भी एडवांस स्ट्रोक ट्रीटमेंट पहुंच पाएगा. इससे हेल्थकेयर में असमानता कम होगी और गांव-कस्बों के मरीजों को भी टाइम पर मदद मिल सकेगी.
भारत में सुपरनोवा स्टेंट रिट्रीवर का आना हेल्थ सेक्टर के लिए एक बड़ा कदम है. इससे न सिर्फ मरीजों की जान बचाई जा सकेगी बल्कि यह स्ट्रोक मैनेजमेंट में नई उम्मीद लेकर आया है. जल्द ही भारत में इसका प्रोडक्शन शुरू होने के बाद यह और भी किफायती और सुलभ होगा. यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में यह डिवाइस भारत के स्ट्रोक प्रोग्राम को नई ऊंचाई देने वाला है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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