Friday, September 26, 2025
30 C
Surat

Condom History first discovery | How Condoms Evolved Since Ancient Times| कंडोम का आविष्कार कैसे हुआ


Story of Condoms: कंडोम एक ऐसा शब्द है जिसका उच्चारण सुनते ही मन में गुदगुदी सी होने लगती है. चाहे कोई भी हो कंडोम को लेकर जिज्ञासा हर किसी के मन में रहता है. वर्तमान में जिस कंडोम ने पूरी दुनिया में यौन स्वच्छंदता की परिभाषा बदल दी उस कंडोम की कहानी 3000 साल से भी ज्यादा पुरानी है. आज का कंडोम बेहद सॉफ्ट, पतला, फ्लेवर्ड, डॉटेड और क्लाइमेक्स डिले फॉर्म में है लेकिन कल्पना कीजिए उस समय की जब कंडोम को भेड़ या बकरी की आंतों के चमड़े से बनाया जाता था. यह कितना हार्ड होता होगा और इसका यूज किस तरह से हुआ होगा. अगर आप कंडोम को लेकर जानकारी रखने की इच्छा रखते हैं तो हम यहां आपको इसकी पूरी कहानी बता रहे हैं जो गंभीर रिसर्च पर आधारित है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

जानवरों की आंतों से बनाया जाता था कंडोम

पब मेड सेंट्रल जर्नल के मुताबिक चाहे तकनीकी का कितना भी विकास हो गया हो लेकिन कंडोम का सिद्धांत हजारों साल से वही है, बस डिजाइन बदल जाता है. कंडोम का मुख्य मकसद यौन जनित बीमारियों को रोकना और वीर्य को महिला के शरीर में जाने से रोकना है ताकि प्रजनन से बच्चे का जन्म न हो. बहरहाल कंडोम का जो पहला साक्ष्य मिलता है वह होमर की इलियट में है. इसमें एक लोककथा है कि क्रीट के एक राजा मिनोस थे जिनके वीर्य से सांप, विच्छू निकलते थे. ऐसा कहा जाता है कि राजा मिनोस जब उप पत्नियों के साथ संभोग करते थे, तो वे उप पत्नियां मर जाती थी. इन मौतों को बचाने के लिए सलाहकारों से सलाह लेकर इसकी तरकीब खोजी गई. फिर इसके लिए बकरी की आंत या मूत्राशय को निकाल लिया जाता है और उससे संकरी थैली की तरह का लिंग में पहनाने वाला एक आवरण बनाया जाता था. इस आवरण को पहनकर राजा अपनी पत्नी के साथ जब संबंध बनाए थे तो फिर उस पत्नी ने 8 बच्चों को जन्म दिया. हालांकि इसमें वीर्य से सांप-बिच्छू निकलने की बात अतिरंजित लगती है लेकिन जानवरों के ब्लैडर से कंडोम बनाने की यह कला निकल पड़ी और पूरी सोसायटी में इस तरह के कंडोम का प्रचलन बढ़ता गया. धीरे-धीरे यह व्यवसाय बन गया. इन्हें कसाई तैयार करते थे क्योंकि वे आंतों की मजबूत तन्यता से भली-भांति परिचित थे.

न्यू गिनी में बना पहला महिला कंडोम

1000 साल पुराने साक्ष्यों से पता चलता है कि मिस्र की संस्कृति में पुरुष यौन संबंध के समय प्रायः एक शीथ का उपयोग किया करते थे. इस शीथ के लिए लिनन के कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था. सामाजिक श्रेष्ठता में आगे बढ़ने के लिए पुरुष रंगीन लिनन का इस्तेमाल करते थे. माना जाता है कि मिस्र में ट्रॉपिकल बीमारियों बिल्हार्जिया का बहुत खतरा था. इससे बचने के लिए उन्होंने लिंग के अगले भाग में पहनने वाली शीथ का आविष्कार किया. वहीं न्यू गिनी में रहने वाली प्राचीन जुकास जनजाति के लोग संभवतः सबसे पहले महिला कंडोम बनाया. यह कंडोम एक खास पौधे से बनाया जाता था जिसका एक सिरा खुला और दूसरा सिरा बंद होता था. प्याले के आकार का यह कंडोम लगभग 6 इंच लंबा होता था जिसे महिला के प्राइवेट पार्ट में घुसा दिया जाता था. यह इस तरह से फिट हो जाता था कि संबंध बनाने के दौरान जो दबाव पड़ता था उसे यह आसानी से झेल लेता था.कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एसिसटेंड डायरेक्टर डोना ड्रकर कहती है कि पुराने जमाने में पुरुषों से ज्यादा महिला कंडोम ज्यादा पॉपुलर था.

चीन और जापान का कंडोम

चीनी सभ्यता रेशमी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था और इसी के अनुरुप प्राचीन चीन में रेशमी कागज से कंडोम बनाया जाता था जिन पर तेल लगाकर उन्हें चिकना किया जाता था. जैसे-जैसे बीमारियां और महामारी मध्य यूरोप से पूर्व की ओर फैलीं ये कंडोम या आवरण और अधिक प्रचलित हो गए. जापानी सभ्यता ने काबुता-गाटा (Kabuta-Gata) का उपयोग किया, जो लिंग के अग्रभाग (ग्लान्स) को ढकने वाला एक खोल था. यह सामान्यतः कछुए के खोल से बनाया जाता था, लेकिन कभी-कभी चमड़े से भी बनाया जाता था. काबुता-गाटा का उपयोग उन लोगों के लिए भी किया जाता था जो स्तंभन दोष (erectile dysfunction) से पीड़ित थे.

Generated

रिसर्च से शुरू हुई मॉडर्न कंडोम

आधुनिक कंडोम के विकास में सबसे बड़ा शुरुआती योगदान यूरोपियन वैज्ञानिकों का था. मशहूर इतालवी शरीररचनाविद गैब्रिएले फैलोपियो (जिनके नाम पर फैलोपियन ट्यूब का नाम रखा गया) ने 1564 में कंडोम के विकास में अहम योगदान दिया. उन्होंने यौन जनित बीमारी सिफलिस से बचाव के लिए लिनन से बने एक आवरण का वर्णन किया. यह आवरण केवल लिंग के अग्रभाग को ढकता था, जिसे एक रिबन से बांधा जाता था और लार से चिकना किया जाता था.यह कंडोम सिंगल यूज के लिए नहीं था बल्कि इसे दोबारा से साफ कर इस्तेमाल किया जाता था. उन्होंने इसके लिए 1100 पुरुषों पर अध्ययन किया जिसमें शानदार सफलता मिली. फैलोपियो की रिसर्च ने आधुनिक कंडोम को सरलीकृत करने में अहम योगदान दिया. 17 वीं शताब्दी के दौरान रिबन वाले कंडोम का उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में धड़ल्ले से होने लगा.

आधुनिक कंडोम में भारत का अहम योगदान

19वीं और 20वीं सदी में कंडोम को सरलीकृत किया गया. इस समय आविष्कारकों ने वाटरप्रूफ कपड़े, गुट्टा पेरका (पेड़ से प्राप्त लैटेक्स) और इंडियन रबर से कंडोम बनाने का प्रयास किया. भारतीय रबर का खास योगदान था लेकिन इसमें एक दिक्कत थी. शुरुआत पेड़ से प्राप्त रबर कंडोम मोटे और टूटने या झड़ने वाले होते थे. गर्म होने पर ये नरम और लचीले होते थे, लेकिन ठंडे होने पर कठोर और भंगुर हो जाते थे. इस कहानी को 1844 में वैज्ञानिक चार्ल्स गुडईयर Charles Goodyear ने सुलझा दिया. उन्होंने वल्कनीकृत रबर का पेटेंट कराया और पहला वल्कनीकृत रबर कंडोम 1855 में व्यापक रूप से बाजार में आ गया. इससे कंडोम की कीमत काफी कम हो गई और इससे कंडोम की पूरी कहानी बदल गई.

विश्व युद्ध के दौरान कंडोम की बिक्री में उछाल

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कंडोम की बिक्री में तेज उछाल आई. इसमें सैनिकों को युद्ध पर भेजने से पहले उन्हें कंडोम दिया जाता था क्योंकि अक्सर सैनिक दुश्मन देशों की महिलाओं के साथ यौन दुराचार करने में प्रवृत रहते थे. हालांकि शुरुआत में अमेरिका और ब्रिटिश सेना को नैतिकता का हवाला देते हुए कंडोम नहीं दिया जाता था लेकिन जब यौन जनित बीमारियों से सैनिकों की मौतें होने लगी तो द्वितीय विश्व युद्ध से पहले इन्हें भी कंडोम दिया जाने लगा.

1920 में आया लेटेक्स रबर

प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद कंडोम का नया प्रकार पेश किया गया. सन 1920 में लेटेक्स रबर का विकास हुआ, जिसने कंडोम को वल्कनीकृत रबर की तुलना में और भी पतला और अधिक टिकाऊ बना दिया. इसके अलावा इन्हें बनाना भी आसान था जिससे इसकी कीमत और कम हो गई। लेटेक्स कंडोम की शेल्फ लाइफ पांच साल थी, जो कि रबर कंडोम की तुलना में एक बड़ी सुधार थी, जिनकी गुणवत्ता केवल तीन महीने तक ही बनी रहती थी.

आधुनिक कंडोम 

आधुनिक कंडोम की तकनीकी लेटेक्स पर ही आधारित है लेकिन इसके रंग, रुप और डिजाइन में क्रांतिकारी परिवर्तन आ गए हैं. आज के कंडोम में ग्राफीन का इस्तेमाल किया जाता है जिससे कंडोम बेहद पतले, मजबूत और लचीलापन लिए होते हैं. इसमें स्किन-ऑन-स्किन जैसा अनुभव मिलता है.इन कंडोम की सतह पर सुपर-हाइड्रोफिलिक नैनोपार्टिकल्स चिपके होते हैं जो चिकनाई को बढ़ा देते हैं. कुछ नए कंडोमों में एसटीडी रोधी दवाएं, सून करने वाले एजेंट, या इरेक्शन को सपोर्ट करने वाली दवा भी कोटिंग की जाती है.


.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.

https://hindi.news18.com/news/lifestyle/trends-history-of-condoms-who-first-invented-know-story-of-the-condoms-ws-e-9668754.html

Hot this week

सिंघाड़े के आटे और कुट्टू के आटे में अंतर व्रत के लिए फायदे.

Food, व्रत के दिनों में सिंघाड़े के आटे...

Topics

spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img