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Cough Syrup Controversy: हमारा क्या कसूर… कफ सिरप पर डॉक्टरों का फूटा गुस्सा, कहा कंपनियां दोषी


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Cough Syrup Controversy : कफ सिरप विवाद पर डॉक्टरों की संस्था का गुस्सा पुलिस पर फूट पड़ा है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि कफ सिरप में हमारा क्या कसूर है. यह तो दवा बनाने वाली कंपनियों की गलती है.

Cough Syrup Controversy: हमारा क्या कसूर... कफ सिरप पर डॉक्टरों का फूटा गुस्साकफ सिरप विवाद पर IMA ने लिखा पत्र.

Cough Syrup Controversy : कफ सिरप विवाद पर डॉक्टरों की संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कड़ा विरोध दर्ज किया है. एक पत्र जारी कर आईएमए ने कहा है कि कफ सिरप विवाद में हमारा क्या कसूर है. इसके लिए जहां दवा बनाने वाली कंपनियों को दोषी ठहराना चाहिए, वहीं डॉक्टरों को गिरफ्तार किया जा रहा है. आईएमए ने डॉ. प्रवीण सोनी की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया है और कहा है कि यह डॉक्टरों वैधानिक अज्ञानता का परिचय है. आईएमए ने मांग की है कि इसके लिए दोषियों को सजा मिलनी चाहिए न कि डॉक्टरों को.

वैधानिक अज्ञानता का परिचय

रिपोर्ट के मुताबिक IMA का कहना है कि यह मामला अधिकारियों और पुलिस की कानूनी अनभिज्ञता (legal illiteracy) का उदाहरण है. असली दोषी दवा बनाने वाली कंपनी और निगरानी करने वाली एजेंसियां हैं न कि डॉक्टर. शनिवार को परासिया थाने में दर्ज एफआईआर में बाल रोग विशेषज्ञ (पेडियाट्रिशियन) और तमिलनाडु की श्रीसान फ़ार्मास्यूटिकल्स के डायरेक्टर्स के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. इन्हें भारतीय न्याय संहिता BNS की धारा 105 (गैर-इरादतन हत्या), 276 (दवा में मिलावट) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 27(A) के तहत मामला दर्ज किया गया है. IMA ने कहा कि डॉक्टर की गिरफ्तारी जल्दबाज़ी में की गई है जो इस बात का संकेत है कि जांच एजेंसियां अपनी नाकामियों से ध्यान हटाना चाहती हैं. यह ज़िम्मेदारी ड्रग्स रेगुलेटरी सिस्टम की है जो दवाओं की गुणवत्ता पर नज़र रखने में नाकाम रहा है.

कफ सिरप कैसे बन जाता है जहर

आईएमए ने अपने पत्र में लिखा है कि खांसी की दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाला फ़ार्मास्यूटिकल-ग्रेड ग्लिसरीन और प्रोपलीन ग्लाइकोल महंगा होता है, जबकि औद्योगिक-ग्रेड डीईजी और ईजी जैसे जहरीले रसायन सस्ते और देखने में समान होते हैं. अगर निर्माता और नियामक दोनों ही गुणवत्ता की जांच में चूक जाएं, तो सिरप में यह ज़हरीले केमिकल मिल सकते हैं, जिससे छोटे बच्चों में किडनी फेल हो सकता है और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है. यह पहले भी कई देशों में कई बार हो चुका है.2003 की मास हेल्कर रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में औषधि नियंत्रण व्यवस्था कमजोर ढांचे, कम टेस्टिंग लैब, दवा निरीक्षकों की कमी, असमान लागूकरण, विशेष प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी, डाटा बैंक न होने और सटीक जानकारी की अनुपलब्धता जैसी वजहों से प्रभावित है. इस मामले में सीडीएससीओ और एमपीएफडीए सिरप में डीईजी की मात्रा को जांचने में विफल रहे.

डॉक्टर असली नकली की पहचान नहीं कर सकते

पत्र में लिखा गया है कि दवा लिखने वाले डॉक्टर को यह पता करने का कोई तरीका नहीं होता कि कफ सिरप में मिलावट है या नहीं, जब तक कि मरीजों में खराब असर दिखाई न दे. इसलिए नियम इतने कड़े होने चाहिए कि ऐसी घटनाएं न हों. बहुत से लोग डॉक्टर की सलाह के बिना ही कफ सिरप खरीदते हैं. इसमें कभी-कभी मीठा लगने के कारण बच्चे जरूरत से ज्यादा कफ सिरप पी लेते हैं. ज्यादातर खांसी और ज़ुकाम बिना दवा के ही ठीक हो जाते हैं और डॉक्टर सिरप तभी लिखते हैं जब उनकी जांच उसे जरूरी समझे. डॉक्टर की गिरफ्तारी ने पूरे देश में चिकित्सा पेशे में डर पैदा कर दिया है.

मौत का जिम्मेदार कंपनियां

यह नकली दवा का मामला है, जैसा कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट की धारा 17बी में बताया गया है. दवा की मंजूरी, उसकी गुणवत्ता और सामग्री की जांच का पूरा काम दवा नियामक व्यवस्था के अंदर आता है. एक बार दवा मंजूर हो और बाजार में आ जाए, तो पंजीकृत डॉक्टर उसे लिखने के लिए अधिकृत होते हैं. ड्रग कंट्रोलर का फार्मेसियों को मंजूर दवा न बेचने का आदेश उनके अधिकार से बाहर है और ऐसा करना कानून के दायरे से बाहर शक्ति का इस्तेमाल है. आईएमए इस त्रासदी में नियामक प्रणाली की नाकामी और गलत प्रबंधन से चिंतित है. बच्चों की मौत का जिम्मा पूरी तरह निर्माता और प्राधिकरण पर है. डॉक्टर संगठन ने कहा कि चिकित्सा पेशे को डराना-धमकाना गलत है और इसका विरोध होगा.

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Lakshmi Narayan

Excelled with colors in media industry, enriched more than 19 years of professional experience. Lakshmi Narayan is currently leading the Lifestyle, Health, and Religion section at Bharat.one. His role blends in-dep…और पढ़ें

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