नई दिल्ली: हर साल की तरह इस बार भी दिवाली के बाद दिल्ली-NCR की हवा जहरीली हो चुकी है. आलम यह है कि कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 500 के खतरनाक स्तर को पार कर गया है. जो पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ रहा है. यह प्रदूषित हवा आम लोगों के लिए तो घातक है ही, लेकिन गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मे शिशुओं के लिए यह एक ‘साइलेंट किलर’ साबित हो रही है.
अजन्मे बच्चों को कैसे प्रभावित कर रहा है प्रदूषण?
डॉ.तरुण सिंह ने बताया कि प्रदूषण के बेहद सूक्ष्म कण (PM 2.5) इतने छोटे होते हैं कि वे सांस के जरिए आसानी से गर्भवती महिला के खून में मिल जाते हैं और प्लेसेंटा (गर्भनाल) को पार करते हुए सीधे गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच जाते हैं. यह बच्चे के विकास के लिए सबसे बड़ा खतरा है. डॉ.सिंह के अनुसार प्रदूषण के प्रभाव से कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं.
जन्म के समय कम वजन: प्रदूषण के कारण बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पाता, जिससे उसका वजन सामान्य से कम रह सकता है.
समय से पूर्व जन्म (प्रीमैच्योर डिलीवरी): जहरीली हवा गर्भ में सूजन पैदा कर सकती है, जिससे समय से पहले ही डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है.
जन्मजात विकृतियां: गर्भावस्था की पहली तिमाही में जब बच्चे के अंग बन रहे होते हैं, तब प्रदूषण का असर उसके शारीरिक और मानसिक विकास को रोक सकता है, जिससे जन्मजात विकृतियों का खतरा रहता है.
गर्भ में मृत्यु (स्टिलबर्थ): कुछ गंभीर मामलों में, अत्यधिक प्रदूषण के कारण गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु हो सकती है.
गर्भवती महिलाएं ऐसे करें अपना बचाव
डॉ.तरुण सिंह ने गर्भवती महिलाओं को इस जहरीले मौसम में विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी है. उनका कहना है कि कुछ आसान उपायों को अपनाकर गंभीर खतरों से बचा जा सकता है.
घर से बाहर निकलने से बचें: जब तक बहुत जरूरी न हो, घर से बाहर न निकलें. खासकर सुबह और शाम के समय, जब प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा होता है.
N95 मास्क का प्रयोग करें: अगर बाहर जाना ही पड़े, तो हमेशा अच्छी क्वालिटी का N95 मास्क पहनें, जो PM 2.5 कणों को रोकने में कारगर है.
एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल: घर और ऑफिस के अंदर की हवा को साफ रखने के लिए एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल जरूर करें.
खान-पान और स्वास्थ्य का ध्यान: गुनगुना पानी पिएं, नमक-गर्म पानी से गरारे करें और गले व नाक को साफ रखने के लिए भाप लें. अपनी डाइट में एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर फल और सब्जियां शामिल करें.
क्या प्रेग्नेंसी प्लानिंग से मिल सकता है समाधान?
डॉ.सिंह ने एक महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान दिलाया कि जो कपल्स फैमिली प्लानिंग कर रहे हैं, वे अगर संभव हो तो अपनी प्रेग्नेंसी को इस तरह से प्लान करें कि गर्भावस्था की पहली तिमाही (पहले 3 महीने) और अंतिम तिमाही (28वें हफ्ते के बाद) उन महीनों में न पड़ें जब दिल्ली में प्रदूषण चरम पर होता है (अक्टूबर से जनवरी). पहली तिमाही में बच्चे का शरीर बन रहा होता है और अंतिम तिमाही में भी स्थिति नाज़ुक होती है. हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि इस तरह की प्लानिंग हर किसी के लिए संभव नहीं है. इसलिए सबसे व्यावहारिक उपाय यही है कि गर्भावस्था का पता चलते ही महिलाएं प्रदूषण से अपना बचाव शुरू कर दें.
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