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Kafal fruit : ये उत्तराखंड का मशहूर का फल है, जो मार्च से जून के बीच पहाड़ों में पकता है. बाजार में खोजने पर हमेशा मिल जाएगा. इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है और यह विटामिन C और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है. यह फल पाचन सुधारता और शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. लोकगीत “काफल पाको, मैन न चाखो” इसकी पहचान है.

उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में खिलने वाला काफल (Myrica esculenta) सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि पहाड़ी लोगों की भावनाओं से जुड़ा एक एहसास है. यह छोटा, लाल और खट्टा-मीठा फल होता है, जो हिमालय के मध्यवर्ती क्षेत्रों—जैसे पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल और टिहरी—में पहाड़ियों की ढलानों और जंगलों में पाया जाता है.

काफल फल गर्मियों की शुरुआत में, मार्च से जून के बीच मिलता है. पहाड़ों में यह फल पककर लाल और खट्टा-मीठा हो जाता है. इस समय बच्चे और महिलाएं जंगलों में काफल तोड़ते हैं. काफल पहाड़ की गर्मियों की पहचान और लोगों की भावनाओं से जुड़ा स्वादिष्ट फल है.

काफल पहाड़ी लोकगीतों में खास स्थान रखता है। एक प्रसिद्ध गीत है—
“काफल पाको, मैन न चाखो, बुरे लग्यो मेरो मन!”
(काफल पक गए, पर मैं नहीं खा सकी, मेरा मन उदास हो गया). यह गीत पहाड़ की महिलाओं की भावनाओं और प्रकृति से जुड़ाव को दर्शाता है.

काफल का स्वाद खट्टा-मीठा और ताजगी भरा होता है. इसमें विटामिन C, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर तत्व पाए जाते हैं. यह फल लू से बचाता, पाचन सुधारता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. इसकी छाल से बना काढ़ा बुखार, गले के दर्द और संक्रमण में लाभकारी होता है.

जब काफल पक जाते हैं, तो पहाड़ी बाजारों में एक छोटे त्योहार जैसा माहौल बन जाता है. महिलाएं टोकरियों में इन्हें बेचती हैं, बच्चे “काफल ल्यो, काफल!” की आवाज लगाते हैं. यह दृश्य उत्तराखंड की जीवंत लोक संस्कृति का प्रतीक है.

काफल का पेड़ लगभग 10 से 15 मीटर ऊंचा होता है. इसकी छाल और पत्तियों में औषधीय तत्व पाए जाते हैं. स्थानीय लोग इसे आयुर्वेदिक उपचार में इस्तेमाल करते हैं. जंगलों में जब यह पेड़ फल से लद जाता है, तो पूरा वातावरण सुगंधित और रंगीन हो जाता है.

यह सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि बचपन की यादों, जंगल की खुशबू और लोकसंस्कृति से जुड़ा हुआ एहसास है. हर पहाड़ी व्यक्ति के दिल में काफल का नाम सुनते ही घर की यादें ताजा हो जाती हैं.

काफल का इतिहास हिमालयी क्षेत्रों से जुड़ा है, जहां यह फल प्राचीन काल से पहाड़ी जीवन और संस्कृति का हिस्सा रहा है. लोककथाओं और गीतों में काफल का उल्लेख मिलता है. उत्तराखंड के पारंपरिक समाज में इसे समृद्धि, प्रेम और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक माना गया है.
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