How to prevent Diabetes: भारत को डायबिटीज कैपिटल ऑफ वर्ल्ड कहा जा रहा है. वर्तमान में 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को डायबिटीज है. लेकिन अगले कुछ सालों तक 15 करोड़ लोगों को डायबिटीज हो जाएगा. मुश्किल यह है कि भारत आधे से ज्यादा लोगों को उन्हें डायबिटीज है, इस बात की जानकारी भी नहीं रहती. डायबिटीज से भारत में हर साल हजारों लोगों की मौत होती है. डायबिटीज के लिए मुख्य रूप से लाइफस्टाइल में खराबी, अनहेल्दी आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी, तनाव, मोटापा और प्रदूषण जिम्मेदार हैं. लोग अधिक रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और अनहेल्दी फैट का सेवन कर रहे हैं, जबकि एक ही जगह बैठे रहते हैं. डायबिटीज जब जटिल हो जाए तो यह हार्ट, किडनी, लिवर, आंखें हर चीज पर असर करता है, इसलिए यह जरूरी है कि इस बीमारी को शरीर में घुसने ही न दें. इसके बारे में डॉक्टरों ने 7 तरह की आदतों को अपनाने के लिए कहा है.
इन 7 आदतों को अपना लें
2. 150 मिनट की एक्सरसाइज -एक्सरसाइज के कई फायदे हैं और टाइप 2 डायबिटीज़ के खतरे वाले लोगों के लिए यह इंसुलिन रेज़िस्टेंस को 40–50 प्रतिशथ तक कम कर देता है. नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन की समीक्षा के अनुसार सप्ताह में 150 मिनट मध्यम से तेज़ एरोबिक गतिविधि करने से टाइप 2 डायबिटीज़ में इंसुलिन रेज़िस्टेंस में महत्वपूर्ण सुधार होता है. एक्सरसाइज मांसपेशियों को ग्लूकोज़ का बेहतर उपयोग करने में मदद करता है, जिससे ब्लड शुगर स्तर स्वाभाविक रूप से कम होता है. इतना ही नहीं अगर आप सप्ताह में 5 दिन, रोज़ाना कम से कम 30 मिनट तेज़ चलें, तो यह आपके ब्लड शुगर स्तर में बड़ा फर्क डाल सकता है. लेकिन याद रखें नियमितता सबसे ज़रूरी है. लगातार शारीरिक गतिविधि से शरीर मेटाबॉलिक रूप से सक्रिय बना रहता है और लंबे समय में यह वज़न नियंत्रित रखने में भी मदद करता है.
3. वजन कंट्रोल करें- 5–10% तक वज़न घटाने से डायबिटीज़ का ख़तरा 58 प्रतिशत तक कम हो जाता है. डॉ.सुंधाशु राय कहते हैं कि एक स्टडी के अनुसार, सिर्फ 5–10% वज़न घटाने से डायबिटीज़ के ख़तरे में 58% तक की कमी आ सकती है. वज़न घटाने से इंसुलिन सेंसिटिविटी बेहतर होती है और पैंक्रियाज़ (जो इंसुलिन बनाता है) पर दबाव कम होता है. इसलिए, छोटे-छोटे और लगातार किए गए जीवनशैली में बदलाव, जैसे हेल्दी खाना खाना और रोज़ाना कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज करना— लंबे समय में सेहत के लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हो सकते हैं.
4. रिफाइंड अनाज की जगह साबुत अनाज – यह ब्लड शुगर स्पाइक्स को 25–30% तक कम करता है. एक स्टडी में पाया गया कि रिफाइंड ग्रेन की जगह साबुत अनाज खाने से ब्लड शुगर कंट्रोल करने में मदद मिलती है. साबुत अनाज में भरपूर मात्रा में फाइबर, विटामिन और मिनरल्स होते हैं, जो पाचन की गति को धीमा करते हैं और खाने के बाद अचानक ब्लड शुगर बढ़ने से रोकते हैं. इसके विपरीत, रिफाइंड ग्रेन जैसे सफेद ब्रेड और सफेद चावल में पोषक तत्व और फाइबर की कमी होती है, जिससे ग्लूकोज़ तेजी से बढ़ता है और शरीर की इंसुलिन प्रतिक्रिया पर दबाव पड़ता है. लंबे समय तक साबुत अनाज का सेवन HbA1c जैसे महत्वपूर्ण मार्कर्स को भी सुधारता है और ब्लड शुगर को स्वस्थ स्तर पर बनाए रखने में मदद करता है.
5. दालचीनी को डाइट में शामिल करें- रोज़ाना 1–6 ग्राम दालचीनी का सेवन इंसुलिन सेंसिटिविटी को 20% तक बढ़ा देता है. पीएलओएस में प्रकाशित एक स्टडी में डायबिटिक माउस मॉडल्स पर दालचीनी एक्सट्रैक्ट के असर की जांच की गई और पाया गया कि इससे इंसुलिन सिग्नलिंग में उल्लेखनीय सुधार हुआ और फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल में कमी आई. इसलिए, दालचीनी केवल आपके खाने में स्वाद बढ़ाने वाला मसाला ही नहीं है, बल्कि यह इंसुलिन सेंसिटिविटी को सुधारने में मदद करता है और टाइप-2 डायबिटीज़ को रोकने में सहायक हो सकता है.
6. 7 से 8 घंटे की नींद-खराब नींद स्वास्थ्य और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का एक बड़ा कारण है. डायबेट्स केयर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों की नींद की अवधि कम थी, उनमें टाइप-2 डायबिटीज़ होने का खतरा लगभग 40-50% अधिक था, उनकी तुलना में जो लोग 7 घंटे या उससे अधिक सोते थे. कारण यह है कि नींद की कमी भूख और इंसुलिन को नियंत्रित करने वाले हार्मोनों को बिगाड़ देती है, जिससे इंसुलिन रेज़िस्टेंस और ब्लड शुगर में वृद्धि होती है.
7. भोजन की मात्रा नियंत्रित करें – कम-कम कर ज्यादा बार खाने वाले भोजन ब्लड शुगर को स्थिर बनाए रखने में मदद करते हैं. डॉ. राय ने कहा कि बड़ी मात्रा में भोजन अक्सर ब्लड शुगर में अचानक वृद्धि का कारण बनते हैं. इसके विपरीत दिन में छोटे, संतुलित और अधिक बार खाने से ग्लूकोज़ का स्तर स्थिर रहता है. इसलिए भोजन की मात्रा को नियंत्रित करना ज़्यादा खाने से रोकता है और शरीर में इंसुलिन उत्पादन पर दबाव कम करता है. छोटे प्लेट का उपयोग करना, धीरे-धीरे खाना और भूख के संकेतों पर ध्यान देना भोजन की मात्रा नियंत्रित करने में मदद कर सकता है.
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