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Oral Rehydration Solution: क्या होता है असली ORS, जिसके लिए हैदराबाद की डॉ. शिवरंजनी ने लड़ी लंबी लड़ाई


Oral Rehydration Solution: हैदराबाद की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवरंजनी संतोष की जंग आखिर रंग लायी है. डॉ. शिवरंजनी चीनी युक्त पेय पदार्थों के खिलाफ लंबे समय से लड़ाई लड़ रही थीं, जिन्हें ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ओआरएस) बताकर गलत तरीके से बेचा जाता है. इसका नुकसान ये था कि दस्त से पीड़ित बच्चों को तथाकथित ओआरएस पेय दिए जाने के बावजूद गंभीर डिहाईड्रेशन का सामना करना पड़ता है. लेकिन अब इसमें एक बड़ा बदलाव आया है. भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि कोई भी खाद्य ब्रांड अपने उत्पादों पर ‘ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट’ या ‘ओआरएस’ शब्द का इस्तेमाल तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उनका फॉर्मूला विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा सुझाए गए मानकों का पूरी तरह से पालन न करता हो.

डॉ. शिवरंजनी संतोष का इस महीने आठ साल लंबा अथक अभियान आखिरकार अपने लक्ष्य तक पहुंच गया. 14 अक्टूबर, 2025 को FSSAI ने एक ऐतिहासिक एडवाइजरी जारी की जिसमें खाद्य और पेय कंपनियों को किसी भी उत्पाद के नाम, लेबल या ट्रेडमार्क पर ‘ORS’ (ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन) शब्द का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी गई. भले ही इसे प्रीफिक्स या सफिक्स के रूप में इस्तेमाल किया गया हो. डॉ. शिवरंजनी कहती हैं, “यह मेरी जीत नहीं है. यह लोगों की जीत है. यह माता-पिता की जीत है. हमने यह सुनिश्चित किया है कि भ्रामक लेबलों के कारण कोई भी बच्चा फिर से बीमार न पड़े.”

कब लिख सकते हैं ‘ओआरएस’
आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि फल-आधारित, गैर-कार्बोनेटेड या पीने के लिए तैयार पेय पदार्थों सहित किसी भी पेय के लिए ‘ओआरएस’ का उपयोग करना खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 का उल्लंघन है. साथ ही यह चिकित्सा वैधता की गलत धारणा बनाकर उपभोक्ताओं को गुमराह करता है. मेडिकल स्टोर्स में बेचे जाने वाले और मशहूर हस्तियों द्वारा समर्थित ये चमकीले पैकेज वाले पेय पदार्थ शरीर को पुनः हाइड्रेट करने का दावा करते थे, लेकिन इनमें चीनी की मात्रा बहुत अधिक थी. जो कभी-कभी चिकित्सकीय रूप से स्वीकृत मौखिक डिहाईड्रेशन समाधानों से दस गुना अधिक होती थी.

डॉ. शिवरंजनी कहती हैं, “यह मेरी जीत नहीं है. यह लोगों की जीत है.”

कानूनी नहीं भावनात्मक जीत
डॉ. शिवरंजनी के लिए यह सिर्फ एक कानूनी जीत नहीं थी, बल्कि यह एक गहरी भावनात्मक जीत थी. वह इंस्टाग्राम पर वायरल एक वीडियो में कहती हैं, “आठ साल हो गए जब मैंने अपनी जिद जारी रखी और अब मैं जीत गई हूं. अब किसी भी ज्यादा चीनी वाले पेय के लेबल पर ओआरएस नहीं लिखा होगा. अब से वे एक भी पेय नहीं बेच पाएंगे.” यह मामला लगभग एक दशक पुराना है. भारत भर की दवा दुकानों में ORSL और Rebalance with ORS जैसे नामों वाली रंग-बिरंगी बोतलें और टेट्रा पैक, वैध मेडिकल रीहाइड्रेशन सॉल्यूशन के साथ बेचे जाते थे. माता-पिता को ये दवाएं डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित ओआरएस के समान लगीं, जो दस्त के उपचार की जादुई औषधि है, जिसने विश्वभर में लाखों लोगों की जान बचाई है. हालांकि इन पेय पदार्थों में इस्तेमाल की सामग्री अलग थी.

डॉ. शिवरंजनी ने सरकार से क्षेत्रीय भाषाओं में राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने का आग्रह किया है. ताकि यह बताया जा सके कि असली ओआरएस की पहचान कैसे की जाए.

क्या है असली ओआरएस
डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार एक उचित ओआरएस में प्रति लीटर पानी में 2.6 ग्राम सोडियम क्लोराइड, 1.5 ग्राम पोटेशियम क्लोराइड, 2.9 ग्राम सोडियम साइट्रेट और 13.5 ग्राम डेक्सट्रोज होना चाहिए. एक उचित WHO-ORS में प्रति 100 मिलीलीटर में केवल 1.35 ग्राम ग्लूकोज होना चाहिए. जबकि कई पेयों में प्रति 100 मिलीलीटर में 8 से 12 ग्राम चीनी होती है, जबकि प्रति टेट्रा पैक में लगभग तीन से पांच चम्मच चीनी होती है. डॉ. शिवरंजनी ने पाया कि कई पेय पदार्थों में प्रति लीटर 120 ग्राम से अधिक चीनी होती है तथा उनमें इलेक्ट्रोलाइट का स्तर खतरनाक रूप से कम होता है, जिससे वे विशेष रूप से डिहाइड्रेटेड बच्चों के लिए हानिकारक हो जाते हैं. दवा की दुकानों, अस्पतालों और स्कूलों में केवल डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित ओआरएस के पैकेट, 4 ग्राम और 20 ग्राम के पैक ही उपलब्ध होने चाहिए.

किस तरह करें इस्तेमाल
डॉ. शिवरंजनी ने सरकार से क्षेत्रीय भाषाओं में राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने का आग्रह किया है. ताकि यह बताया जा सके कि असली ओआरएस की पहचान कैसे की जाए और उसका सही तरीके से उपयोग कैसे किया जाए. वह बताती हैं, “लोगों को यह जानना जरूरी है कि 4 ग्राम के पाउच को 200 मिलीलीटर पानी में और 20 ग्राम के पाउच को एक लीटर पानी में घोलना चाहिए. अगर आप इन्हें गलत तरीके से मिलाते हैं तो भी यह खतरनाक हो सकता है. हमें दवा की दुकानों, अस्पतालों, स्कूलों और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में हर जगह स्पष्ट निर्देशों की आवश्यकता है.” उन्होंने मशहूर हस्तियों और प्रभावशाली लोगों से भी अपील की है कि वे स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों का प्रचार करते समय जिम्मेदारी से काम लें.

मीठे पेय से बढ़ती है बीमारी
डॉ. शिवरंजनी ने कहा, “यदि आपका बच्चा बीमार है और आप मेडिकल स्टोर में ओआरएस लेने जाते हैं, जो जीवन बचाने के लिए है. लेकिन आपको मीठा पेय दिया जाता है, जो बीमारी को और बढ़ा देता है. तो एक अभिभावक के रूप में आपको कैसा लगेगा? उन्होंने कहा, “एक बाल रोग विशेषज्ञ होने के नाते बच्चों को ऐसी बीमारी से जूझते देखना, जिसे रोका जा सकता था. ये देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया. कोई किसी पेय पदार्थ पर इस तरह का लेबल कैसे लगा सकता है और उसे इतने धोखे से कैसे बेच सकता है?” डॉ. शिवरंजनी कहती हैं, “इनमें से कुछ उत्पादों में सुरक्षित मात्रा से आठ से दस गुना ज्यादा चीनी थी. शरीर को फिर से हाइड्रेट करने के बजाय ये दस्त को और बदतर बना देते हैं. बच्चों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है या उनकी हालत और भी बदतर हो जाती है.” 

100 में से 13 मौत दस्त से
इन जाली ओआरएस पेय पदार्थों का खतरा कोई अनजाना नहीं है. भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में दस्त मौत के प्रमुख कारणों में से एक है. इस आयु वर्ग में होने वाली हर 100 मौतों में से 13 दस्त के कारण होती हैं. डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित ओआरएस फॉर्मूले को घातक डिहाइड्रेशन को रोकने की क्षमता के कारण 20वीं सदी के सबसे महान सार्वजनिक स्वास्थ्य आविष्कारों में से एक माना गया है. लेकिन जब माता-पिता अनजाने में इसकी जगह चीनी वाले अन्य पदार्थ दे देते हैं, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं. डॉ. शिवरंजनी की निराशा तब और बढ़ गयी जब कंपनियों ने अपनी पैकेजिंग पर छोटे-छोटे डिस्क्लेमर छापने शुरू कर दिए, जैसे कि “दस्त के दौरान अनुशंसित नहीं है. कोई भी इसे पढ़ नहीं सकता. ये छोटे-छोटे डिस्क्लेमर थे जिनका उद्देश्य कानूनी तौर पर एक शर्त पूरी करना था, न कि जीवन की रक्षा करना. 

सोशल मीडिया पर लड़ी लड़ाई
डॉ. शिवरंजनी कहती है, “भारत में कितने लोग समझ पाते हैं कि डिस्क्लेमर का क्या मतलब होता है? हम ग्रामीण और कम साक्षर इलाकों में रहने वाले माता-पिता के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्हें उनके बच्चे के स्वास्थ्य की कीमत पर गुमराह किया जा रहा है.” 2018 तक डॉ. शिवरंजनी ने अपनी लड़ाई को ऑनलाइन रूप दे दिया. इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफार्मों का उपयोग करके माता-पिता को वास्तविक डब्ल्यूएचओ-ओआरएस पाउच और भ्रामक उच्च-चीनी पेय के बीच अंतर के बारे में शिक्षित करने के लिए. उनके अभियान ने गति पकड़ी, लेकिन प्रयास कमजोर साबित हुआ. डॉ. शिवरंजनी ने फैसला किया कि अब बहुत हो गया. सितंबर 2024 में उन्होंने तेलंगाना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, FSSAI और डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज और केनव्यू (जॉनसन एंड जॉनसन से अलग हुई कंपनी) सहित कई कंपनियों को प्रतिवादी बनाया गया.

अभियान को मिला जोरदार समर्थन
जब कानूनी कार्यवाही चल रही थी तब डॉ. शिवरंजनी के अभियान को एंडोक्राइन सोसाइटी ऑफ इंडिया, महिला बाल रोग विशेषज्ञ फोरम, हजारों अभिभावकों, पत्रकारों और स्वास्थ्य पेशेवरों का समर्थन मिला. इन सबने उनके संदेश को आगे बढ़ाया. वह गर्व से कहती हैं, “मुझे जनता का जबरदस्त समर्थन मिला. माता-पिता, डॉक्टर, पॉडकास्टर, पत्रकार, यहां तक कि JIPMER के मेरे प्रोफेसर सभी साथ आए. यह मेरी अकेले की लड़ाई नहीं थी. हमने मिलकर इसे संभव बनाया.” उनकी लगन रंग लायी, 14 अक्टूबर, 2025 को FSSAI ने आखिरकार अपना नवीनतम निर्देश जारी किया. जिसमें 2022 के प्रतिबंध की पुष्टि की गई और कंपनियों को सभी खाद्य और पेय उत्पादों पर ORS का उपयोग तुरंत बंद करने का आदेश दिया गया. वह कहती हैं, “जब कोई मां किसी दवाखाने में ओआरएस मांगने जाती है तो उसे असली चीज मिलनी चाहिए. ऐसा उत्पाद नहीं जो उसके बच्चे को नुकसान पहुंचाए. इसीलिए मैंने लड़ाई लड़ी और इसीलिए हम जीते.”


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https://hindi.news18.com/news/knowledge/what-is-real-ors-for-which-dr-shivranjani-fought-a-long-battle-ws-kl-9770022.html

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