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जब बात चाय की होती है तो ज़हन में सबसे पहले असम और दार्जिलिंग का नाम आता है, लेकिन अब उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के चाय बागान भी देशभर में अपनी खास पहचान बना रहे हैं. पहाड़ों की ऊंचाई, शुद्ध जलवायु और जैविक खेती के कारण कुमाऊं की चाय स्वाद और गुणवत्ता दोनों में अव्वल मानी जा रही है. यही वजह है कि इन चाय बागानों की चाय अब पूरे देश में पसंद की जा रही है और चाय प्रेमियों के लिए एक नया विकल्प बनकर उभर रही है.

उत्तराखंड का अल्मोड़ा सिर्फ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि अब यह चाय की खेती के क्षेत्र में भी अपनी एक अलग पहचान बना रहा है. यहां समुद्रतल से लगभग 1600 मीटर की ऊंचाई पर जैविक तरीकों से चाय उगाई जाती है. अल्मोड़ा की मिट्टी और मौसम चाय की खेती के लिए बेहद अनुकूल हैं. यहां उगाई गई चाय की पत्तियों में प्राकृतिक मिठास और एक खास खुशबू होती है. कई स्थानीय किसान और महिलाओं को इस चाय उत्पादन से रोजगार भी मिला है. अल्मोड़ा के कुछ बागानों में अब पर्यटकों को चाय चखने और बागानों की सैर करवाने की सुविधाएं भी दी जा रही हैं. यह अनुभव आपको प्रकृति और स्वाद के करीब ले जाएगा. वहीं यहां की चाय भारत के कोने-कोने तक पहुंच रही है.

बागेश्वर ज़िला प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन अब यहां के हरे-भरे चाय बागान भी लोगों को आकर्षित करने लगे हैं. यहां का कौसानी क्षेत्र खासतौर पर चाय उत्पादन का केंद्र बनता जा रहा है. हिमालय की चोटियों के ठीक सामने फैले ये बागान किसी पोस्टकार्ड से कम नहीं लगते. सुबह-सुबह की धुंध और ठंडी हवा में चाय की पत्तियां ओस से भीगी होती हैं, जो न केवल दृश्यात्मक रूप से सुंदर होती हैं, बल्कि स्वाद में भी बेमिसाल होती हैं. यहां से उत्पादित चाय की खुशबू इतनी खास होती है कि दूर-दूर से लोग इसे मंगवाते हैं. बागेश्वर के चाय बागानों ने न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल दिया है, बल्कि यह इलाका अब चाय पर्यटन के नक्शे पर भी उभर रहा है.

कौसानी को ‘भारत का स्विट्ज़रलैंड’ कहा जाता है और इसके खूबसूरत चाय बागान इसकी पहचान को और निखारते हैं. बर्फ से ढकी त्रिशूल, नंदा देवी और पंचाचूली की चोटियों के सामने फैले ये बागान किसी फिल्मी सीन जैसे लगते हैं. यहां उगाई जाने वाली चाय में वह प्राकृतिक मिठास होती है, जिसे एक बार पीने के बाद भुला पाना मुश्किल होता है. इन बागानों में ट्रैकिंग, फोटोग्राफी और लोकल टी टेस्टिंग का अनुभव पर्यटकों को काफी लुभाता है. कौसानी की ग्रीन टी और ब्लैक टी भारत के विभिन्न हिस्सों में निर्यात होती है और इसे स्वास्थ्यवर्धक चाय के रूप में काफी पसंद किया जाता है. यहां आकर पर्यटक न केवल चाय पीते हैं, बल्कि चाय बनने की प्रक्रिया को भी करीब से देख सकते हैं.

कुमाऊं के चंपावत ज़िले में स्थित चाय बागान अब धीरे-धीरे चाय प्रेमियों और पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं. यहां की खास बात है जैविक खेती. बिना रसायनों के, परंपरागत तरीकों से उगाई गई चाय न केवल स्वाद में उम्दा होती है, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है. इन बागानों में उगाई गई चाय की पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट्स की मात्रा अधिक होती है और टैनिक एसिड कम, जिससे यह हल्की और पचने में आसान होती है. चंपावत का शांत वातावरण और हरियाली चाय बागानों को एक खास रूप देती है, जो फोटोग्राफी और शांति की तलाश में घूमने वालों के लिए परफेक्ट स्पॉट है. यहां की लोकल चाय कैफे भी इस स्वाद को परोसने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

नैनीताल से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्यामखेत का चाय बागान एक शांत, सुंदर और बेहद कम भीड़भाड़ वाला स्थान है, जो हाल के वर्षों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. यहां फैले चाय के पौधे, चारों ओर घने जंगल, और दूर हिमालय की चोटियों का नज़ारा, यह सब मिलकर श्यामखेत को एक परफेक्ट टी-टूरिज्म डेस्टिनेशन बनाते हैं. यहां की चाय हल्की, सुगंधित और स्वास्थ्यवर्धक होती है. सुबह की धूप में बागानों के बीच घूमना और चाय की खुशबू में खो जाना किसी ध्यान साधना से कम नहीं है. श्यामखेत में स्थित चाय कारखाने भी लोगों को चाय की प्रोसेसिंग का लाइव अनुभव देते हैं. यहां से चाय लेकर जाना एक यादगार सौगात बन सकती है.
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