रामनगर. उत्तराखंड का एक छोटा सा गांव सुर्खियों में है. इस पर देशभर के इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं की नजर है. क्या खास है इसमें, आइये जानते हैं. रामनगर क्षेत्र के सीतावनी के पास चोपड़ा गांव में ऐसी रहस्यमयी शिलाएं और पत्थर हैं, जिन्हें ग्रामीण पांडव कालीन मानते हैं. हाल ही में राजस्व गांव घोषित हुआ यह क्षेत्र घने जंगलों और प्राकृतिक खूबसूरती के बीच अपनी ऐतिहासिक विरासत के कारण चर्चा में है. गांव के बीचोंबीच बिखरे कुछ पत्थरों पर अद्भुत नक्काशी दिखाई देती है. ग्रामीणों का मानना है कि ये शिलाएं उनके पूर्वजों को खुदाई में मिली थीं. इन पर बनी आकृतियां भगवान जैसी प्रतीत होती हैं. वर्षों से खुले में रखी ये मूर्तियां अब समय के साथ क्षतिग्रस्त हो रही हैं. ग्रामीण बताते हैं कि जब भी किसी ने इन पत्थरों को हटाने की कोशिश की, उसे किसी अनहोनी का सामना करना पड़ा, जिससे इन्हें अब कोई छूने की हिम्मत नहीं करता.
कत्यूरी राजवंश से कनेक्शन
पुरातत्व विभाग की एक टीम ने वर्ष 2021 में गांव का दौरा किया था, लेकिन अब तक कोई ठोस रिपोर्ट सामने नहीं आई है. इससे ग्रामीणों में नाराजगी है. उनका कहना है कि अगर इन शिलाओं का वैज्ञानिक अध्ययन और संरक्षण किया जाए, तो यह स्थान धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकता है. स्थानीय इतिहासकार गणेश रावत के अनुसार, ये शिलाएं वीरखंभ कहलाती हैं. इनका संबंध 10वीं से 12वीं शताब्दी के कत्यूरी शासनकाल से है. ये प्रतीकात्मक स्तंभ सीमाओं या भूमि पर अधिकार जताने के लिए बनाए जाते थे. उन्होंने इनकी गहन पुरातात्विक जांच और संरक्षण की मांग की है.
लोगों ने लगा रखी है टकटकी
वन विभाग भी इस क्षेत्र को संरक्षित करने की योजना बना रहा है. रामनगर वन प्रभाग के डीएफओ दिगंत नायक ने बताया कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण है और भविष्य में टूरिज्म सर्किट के रूप में विकसित किया जा सकता है. चोपड़ा गांव आज भले ही गुमनाम हो, लेकिन इसके गर्भ में छिपा इतिहास, अगर उचित संरक्षण मिले, तो यह उत्तराखंड के पर्यटन नक्शे पर एक नए ऐतिहासिक स्थल के रूप में उभर सकता है. ग्रामीणों को उम्मीद है कि सरकार और पुरातत्व विभाग इस धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में कदम उठाएंगे.