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बागेश्वर का कुकुड़ामाई ट्रेक धार्मिक और साहसिक पर्यटन के लिए बेहतरीन विकल्प है. यह ट्रेक 5-6 किमी का है और 3-4 घंटे में पूरा किया जा सकता है. मंदिर में ठहरने और खाने की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कुकुड़ामाई ट्रेक
हाइलाइट्स
- बागेश्वर का कुकुड़ामाई ट्रेक 5-6 किमी लंबा है.
- ट्रेक 3-4 घंटे में पूरा किया जा सकता है.
- मंदिर में ठहरने और खाने की सुविधाएं उपलब्ध हैं.
बागेश्वर: उत्तराखंड अपने ट्रेकिंग रूट्स के लिए देशभर में जाना जाएगा है. यहां गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों में प्राकृतिक सौंदर्य से भरे विभिन्न ट्रैक रूट्स हैं, जहां ट्रेकिंग करने पर हर ट्रैक का अनुभव ही अलग होता है. सोशल मीडिया के इस दौर में हर कोई ट्रेकिंग करके तस्वीरें अपलोड करना चाहता है. अगर आपको ट्रैकिंग का नया नया शौक चढ़ा है और आप सीखना चाहते हैं, या फिर ट्रेकिंग करने का प्लान बना रहे हैं, तो बागेश्वर का कुकुड़ामाई ट्रेक आपके लिए एक बेहतरीन ऑप्शन हो सकता है. यह ट्रैक एक धार्मिक स्थल भी है, लेकिन इसे साहसिक पर्यटन की दृष्टि से भी बढ़ावा दिया गया है.
ये मिलेंगी सुविधाएं
बागेश्वर के सीनियर ट्रैकर भुवन चौबे ने Bharat.one को बताया कि अगर आप ट्रैकिंग में शुरुआत करना चाहते हैं, तो यह ट्रैक केवल 5 से 6 किलोमीटर का है. इसमें आपको डेस्टिनेशन तक पहुंचने के लिए करीब 3 से 4 घंटे का समय लगेगा. मंदिर पहुंचकर आप सफाई से खाना बना सकते हैं और अपनी फैमिली के साथ इस ट्रैक का आनंद ले सकते हैं. अगर आप मंदिर में ठहरना चाहते हैं, तो वहां रुकने के लिए आश्रम की व्यवस्था भी उपलब्ध है. यह ट्रैक आपको धार्मिक और प्राकृतिक दोनों तरह के अनुभवों से भरपूर करेगा.
इस ट्रैक पर जाने के लिए आपको नीलेश्वर बाईपास वाली सड़क पर जाना होगा. वहां से प्राकृतिक रास्ता उपलब्ध है. पीडब्ल्यूडी कॉलोनी वाली सड़क, जहां नीलेश्वर बाईपास से मिलती है, वहीं से आपका ट्रैक शुरू होगा. यह ट्रैक हरे-भरे चीड़ के जंगलों से शुरू होगा और जैसे-जैसे ऊंचाई पर जाएंगे, आपको सुंदर बुरांश के पेड़ और कई फूल भी नजर आएंगे.
कुकुड़ामाई मंदिर की स्थापना
कुकुड़ामाई मंदिर नान्तिन बाबा की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा, मंदिर के लिए रवाईखाल क्षेत्र के खबडोली तक सड़क मार्ग भी बनाया गया है. सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर का निर्माण स्वामी मधनानंद सरस्वती ने सिद्धगिरी नान्तिन बाबा की आज्ञा से वर्ष 1945 में किया था. मंदिर में हैदराबाद कक्ष, दिल्ली कक्ष, इटावा कक्ष, कानपुर कक्ष आदि के नाम से कमरे भी बनाए गए हैं. मंदिर से थोड़ी दूर जंगल में आप खुद से खाना बना सकते हैं. इसके लिए बर्तन आपको मंदिर से मिल जाएंगे. साथ ही, पीने का पानी लेने के लिए आपको मंदिर से 700 मीटर नीचे जाना पड़ेगा.
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