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मानसून में खुलता है इतिहास का दरवाज़ा, विंध्य की वादियां सुनाती हैं 5000 साल पुरानी दास्तां! – Madhya Pradesh News


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Rewa Tourist Places: मध्य प्रदेश की विंध्य वादियों में छुपा है एक 5000 साल पुराना रहस्यमयी संसार, जो खासकर मानसून में अपनी रहस्यमयी सुंदरता से मंत्रमुग्ध कर देता है. जानिए क्यों यह जगह इतिहास और प्रकृति प्रेमियों की पसंद बनती जा रही है.

पूर्ण शांति का अनुभव.

रीवा से 70 किमी दूर देऊर कोठार पहाड़ी अपने 5000 साल पुराने बौद्ध स्तूपों, शैलचित्रों और गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है. यहां आवाज का अद्भुत रिफ्लेक्शन सुनाई देता है. मौर्य कालीन अवशेष और ब्राह्मी लिपि में अंकित लेख इस स्थान को ऐतिहासिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाते हैं.

विंध्य की वादियों में बसा.

रीवा के पर्यावरण और इतिहास के जानकार डॉ. मुकेश एंगल बताते हैं कि प्रयागराज से लगभग डेढ़ घंटे और रीवा से 70 किलोमीटर दूर स्थित देऊर कोठार पहाड़ी 5000 साल पुरानी ऐतिहासिक विरासत को समेटे हुए है. समूचे भारत में यह स्थान अपने प्राचीन बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है. यहां आवाज का रिफ्लेक्शन लोगों को जादुई एहसास कराता है.

अद्भुत नजारा है.

रीवा जिले के देऊर कोठार में प्राचीन गुफाएं और शैलचित्र मौजूद हैं. बताया जाता है कि इन भित्ति चित्रों को आदि मानव ने उकेरा था. यह स्थान रीवा-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर कटरा से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. 1999-2000 के दौरान मध्यप्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा यहां उत्खनन कार्य किया गया था, जिसमें बौद्ध स्थापत्य के महत्वपूर्ण पुरावशेष मिले थे. इनमें स्तूप और विहार के स्पष्ट अवशेष पाए गए. इस ऐतिहासिक खोज का श्रेय डॉ. फणिकांत मिश्र और स्थानीय शोधकर्ता अजीत सिंह को जाता है.

दुनियाभर में पहचान मिली.

मौर्य कालीन शैलचित्र और स्तूप
प्रयागराज और रीवा दोनों से लगभग 70-72 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थल ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां के भित्ति चित्रों और शैलचित्रों की उम्र लगभग 5000 साल आंकी गई है, जो मौर्य काल के माने जाते हैं. वहीं, यहां मिले बौद्ध स्तूपों की उम्र लगभग 2000 साल की है. 1982 में इस जगह की पहली झलक मिली थी, जिसके बाद इसकी खोज शुरू हुई. 1999 के बाद इस ऐतिहासिक स्थल को दुनिया भर में पहचान मिली है.

आवाज का जादू है.

देऊर कोठार की सबसे अनूठी विशेषता यहां की गूंजती आवाजें हैं. यदि कोई गुफाओं के अंतिम छोर पर खड़े होकर वादियों की ओर मुंह करके जोर से बोलता है, तो कम से कम 8 मील दूर तक उसकी आवाज गूंजकर वापस सुनाई देती है. इसे ‘ईको इफेक्ट’ कहा जाता है. प्रकृति की इस विशेष बनावट के कारण यहां आने वाले पर्यटक इस अनुभव से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.

मौर्य काल से है संबंध.

मौर्य एवं शुंग काल के ये अवशेष ईसा पूर्व दूसरी और तीसरी शताब्दी के माने जाते हैं. शोध से पता चला है कि यह स्थल कभी एक बड़ा बौद्ध स्मारक रहा होगा, जहां बौद्ध भिक्षु दीक्षा लिया करते थे. यह प्राचीनकाल में एक व्यावसायिक मार्ग भी रहा होगा. इस स्थल का संबंध भरहुत और कौशांबी से भी रहा है.

पर्यटकों की पहली पसंद

यहां आदिमानव द्वारा निर्मित भित्ति चित्रों के अलावा तीसरी शताब्दी के एक विशाल मौर्यकालीन स्तूप के अवशेष भी पाए गए हैं. यहां कुल 40 स्तूपों के अवशेष मौजूद हैं. इनमें से ईंटों से निर्मित स्तूप क्रमांक-1 अत्यधिक महत्वपूर्ण है. यह स्तूप चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है, जिसके चारों ओर प्रदक्षिणा पथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. स्तूप पर ब्राह्मी लिपि में दानदाताओं के नाम भी अंकित हैं.

भगवान बुद्ध को समर्पित है.

स्तूप के पश्चिमी क्षेत्र में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित स्तंभ के कुछ टुकड़े मिले हैं. इनमें से एक पर ब्राह्मी लिपि में छह पंक्तियों वाला लेख मिला है, जो भगवान बुद्ध को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि यही स्तूप के पश्चिमी क्षेत्र का प्रवेश द्वार रहा होगा.

प्रकृति की गोद में बने है ये स्तूप.

यहां मौजूद बौद्ध स्तूप, शैलाश्रय और ब्राह्मी लिपि में अंकित दानदाताओं के नाम इस पूरे क्षेत्र को ऐतिहासिक रूप से और भी अधिक आकर्षक बनाते हैं. विशाल चट्टानें, हरे-भरे वन और दूर तक फैली हरियाली इस स्थल की सुंदरता को और बढ़ाते हैं. यह जगह इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है.

बारिश में मनोरम दृश्य.

बारिश के मौसम में देऊर कोठार की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं. यही कारण है कि यहां बरसात के मौसम में पर्यटक ज्यादा पहुंचते हैं. सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. यह बौद्ध स्तूप दो राज्यों के बीच स्थित है इसलिए यहां उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश दोनों जगह से शैलानी पहुंते हैं.

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मानसून में खुलता इतिहास का दरवाज़ा, वादियां सुनाती हैं 5000 साल पुरानी कहानी!


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