श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का महत्व
शास्त्रों में इस स्तोत्र को बहुत प्रभावशाली बताया गया है. माना जाता है कि यह स्तोत्र माता लक्ष्मी के 108 नामों का संग्रह है, जिनका जाप करने से माता तुरंत प्रसन्न होती हैं. इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, शांति और सफलता आती है. यह स्तोत्र न सिर्फ धन संबंधित परेशानियों को दूर करता है, बल्कि मानसिक तनाव और नकारात्मक सोच को भी खत्म करता है.
क्यों करें इस दिन स्तोत्र का पाठ?
अनंत चतुर्दशी पर इस स्तोत्र का पाठ इसलिए भी खास माना गया है क्योंकि इस दिन की गई पूजा सीधा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी तक पहुंचती है. यह दिन एक प्रकार से जीवन के हर “अंत” को अनंत ऊर्जा देने का प्रतीक है. स्तोत्र का पाठ करते समय मन को शांत रखें और श्रद्धा से हर नाम का उच्चारण करें. अगर आप नियमित रूप से इसका पाठ नहीं कर सकते, तो कम से कम अनंत चतुर्दशी पर एक बार ज़रूर करें.
सुबह जल्दी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. घर के मंदिर में माता लक्ष्मी और विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर रखें. उन्हें फूल, धूप और दीप अर्पित करें. इसके बाद श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का उच्चारण करें. आप चाहें तो इसे पढ़ते समय बैकग्राउंड में शांत संगीत या भजन चला सकते हैं, जिससे ध्यान केंद्रित रहे.
किन लोगों को करना चाहिए यह पाठ?
-जो व्यक्ति आर्थिक तंगी से गुजर रहे हों
-जिनके काम समय पर पूरे नहीं हो रहे हों
-जो नौकरी या व्यवसाय में रुकावट का सामना कर रहे हों
-जो मानसिक शांति पाना चाहते हों
करुणाकर देवेश! भक्तानुग्रहकारक! ॥
ईश्वर उवाच
सर्वैश्वर्यकरं पुण्यं सर्वपाप प्रणाशनम् ॥
राजवश्यकरं दिव्यं गुह्याद्–गुह्यतरं परम् ॥
पद्मादीनां वरांतानां निधीनां नित्यदायकम् ॥
किमत्र बहुनोक्तेन देवी प्रत्यक्षदायकम् ॥
अष्टोत्तर शतस्यास्य महालक्ष्मिस्तु देवता ॥
अंगन्यासः करन्यासः स इत्यादि प्रकीर्तितः ॥
वंदे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां
भक्ताभीष्ट फलप्रदां हरिहर ब्रह्माधिभिस्सेवितां
सरसिज नयने सरोजहस्ते धवल तरांशुक गंधमाल्य शोभे .
ॐ प्रकृतिं, विकृतिं, विद्यां, सर्वभूत हितप्रदाम् .
वाचं, पद्मालयां, पद्मां, शुचिं, स्वाहां, स्वधां, सुधाम् .
अदितिं च, दितिं, दीप्तां, वसुधां, वसुधारिणीम् .
अनुग्रहपरां, बुद्धिं, अनघां, हरिवल्लभाम् .
नमामि धर्मनिलयां, करुणां, लोकमातरम् .
पद्मोद्भवां, पद्ममुखीं, पद्मनाभप्रियां, रमाम् .
पुण्यगंधां, सुप्रसन्नां, प्रसादाभिमुखीं, प्रभाम् .
चतुर्भुजां, चंद्ररूपां, इंदिरा,मिंदुशीतलाम् .
विमलां, विश्वजननीं, तुष्टिं, दारिद्र्य नाशिनीम् .
भास्करीं, बिल्वनिलयां, वरारोहां, यशस्विनीम् .
धनधान्यकरीं, सिद्धिं, स्रैणसौम्यां, शुभप्रदाम् .
शुभां, हिरण्यप्राकारां, समुद्रतनयां, जयाम् .
विष्णुपत्नीं, प्रसन्नाक्षीं, नारायण समाश्रिताम् .
नवदुर्गां, महाकालीं, ब्रह्म विष्णु शिवात्मिकाम् .
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराज तनयां श्रीरंगधामेश्वरीम् .
श्रीमन्मंद कटाक्ष लब्ध विभवद्–ब्रह्मेंद्र गंगाधराम् .
मातर्नमामि! कमले! कमलायताक्षि!
क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भगौरि!
त्रिकालं यो जपेत् विद्वान् षण्मासं विजितेंद्रियः .
देवीनाम सहस्रेषु पुण्यमष्टोत्तरं शतम् .
भृगुवारे शतं धीमान् पठेत् वत्सरमात्रकम् .
दारिद्र्य मोचनं नाम स्तोत्रमंबापरं शतम् .
भुक्त्वातु विपुलान् भोगान् अंते सायुज्यमाप्नुयात् .
पठंतु चिंतयेद्देवीं सर्वाभरण भूषिताम् ॥
॥ इति श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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