अप्रैल का कालाष्टमी व्रत 20 अप्रैल दिन रविवार को है. इस दिन व्रत रखकर काल भैरव की पूजा करते हैं. जो लोग काल भैरव की पूजा करते हैं, उनको अकाल मृत्यु, रोग, दोष आदि से मुक्ति मिलती है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त के लिए भी काल भैरव की पूजा करते हैं. इस बार कालाष्टमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जिसमें आप के कार्य सफल होंगे. कालाष्टमी पर निशिता मुहूर्त में काल भैरव के मंत्रों की सिद्धि करते हैं. मंत्र जाप करने से काल भैरव की कृपा प्राप्त हो सकती है. दृक पंचांग के अनुसार, अप्रैल कालाष्टमी व्रत के दिन निशिता मुहूर्त 11:58 पी एम से देर रात 12:42 ए एम तक है, जबकि सर्वार्थ सिद्धि योग 11:48 ए एम से 21 अप्रैल को 05:49 ए एम तक है. कालाष्टमी पर आप काल भैरवाष्टक का पाठ करके काल भैरव की कृपा पा सकते हैं. आइए जानते हैं काल भैरव के मंत्र और काल भैरवाष्टक के बारे में.
अप्रैल कालाष्टमी व्रत 2025 पूजा मंत्र
1. ओम शिवगणाय विद्महे गौरीसुताय धीमहि तन्नो भैरव प्रचोदयात।।
2. ओम कालभैरवाय नम:
3. ओम भ्रां कालभैरवाय फट्
4. धर्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्।
द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये।।
भय, ग्रह दोष और रोग मुक्ति के लिए काल भैरव मंत्र
ओम ऐं क्लीं क्लीं क्लूं स: वं ह्रां ह्रीं ह्रूं आपदउद्धारणाय अजामल बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्ण शांति धन धान्य आकर्षणाय सर्व ऋण रोगादि निवारणाय ह्रीं ओम कालभैरवाय नम:
इस मंत्र का जाप करने से रोग, दोष, भय आदि तो मिटते ही हैं, काल भैरव की कृपा से धन, सुख, समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है. जिनको अकाल मृत्यु का डर हो या जो कर्ज में फंसे हुए हैं, उनको भी इस मंत्र का जाप करना चाहिए.
काल भैरवाष्टक पाठ
ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं,
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं,
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥1॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं,
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं,
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥2॥
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं,
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥3॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥4॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥5॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम्।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥6॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥7॥
भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥8॥
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं ते
प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम्॥9॥
॥इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम्॥
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