Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha in hindi Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha | आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी संपूर्ण व्रत कथा, कथा के पढ़ने व सुनने से हर संकट दूर करते हैं गणेशजी
Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha: आज आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है और इस दिन विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी तिथि का व्रत किया जाता है. संकष्टी चतुर्थी व्रत की मूल शक्ति कथा में निहित है. जब इसे मंगलवार को किया जाता है, तब इसका प्रभाव और भी अधिक प्रबल हो जाता है, इसलिए इसे विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. इस कथा से पता चलता है कि गणेशजी का स्मरण करने से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं. देवताओं को जब कोई मार्ग नहीं सूझा, तो गणेशजी ने ही उन्हें मुक्ति दिलाई. यहां पढ़ें विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी की संपूर्ण व्रत कथा…
आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी संपूर्ण व्रत कथा (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha)
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान से पूछा हे कृष्णजी! मैंने सुना है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकटा चतुर्थी कहते हैं. हे जगदीश्वर! आप कृपा करके मुझसे विस्तार पूर्वक इस कथा का श्रवण कराएं. श्री कृष्णजी ने कहा कि प्राचीन काल में यही प्रश्न पार्वतीजी ने गणेशजी से किया था कि हे देव! आश्विन मास में किस प्रकार गणेशजी की पूजा की जाती हैं? इसे करने से क्या फल मिलता हैं? यह सुनकर गणेशजी ने कहा हे माता! सिद्धि की कामना रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की पूजा पूर्वोक्त विधि से करें.
श्रीकृष्ण – बाणासुर कथा: आश्विन मास की संकष्टी चतुर्थी को श्रीकृष्ण तथा बाणासुर की कथा के अनुसार, एक समय की बात है बाणासुर की कन्या उषा ने सुषुप्तावस्था में अनिरुद्ध का सपना देखा, अनिरुद्ध के विरह से वह इतनी अभिलाषी हो गई कि उसके चित को किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिल रही थी. उसने अपनी सहेली चित्रलेखा से त्रिभुवन के सम्पूर्ण प्राणियों के चित्र बनवाए. जब चित्र में अनिरुद्ध को देखा तो कहा – मैंने इसी व्यक्ति को सपना में देखा था. इसी के साथ मेरा पाणिग्रहण संस्कार भी हुआ था. हे सखी! यह व्यक्ति जहां कही भी मिल सके, खोज लाओ अन्यथा इसके वियोग में मैंने अपने प्राण त्याग दूंगी.
अपनी सखी की बात सुनकर चित्रलेखा अनेक स्थानों में खोज करती हुई द्वारकापुरी में आ पहुंची. चित्रलेखा राक्षसी माया जानती थी, उसने वहां अनिरुद्ध को पहचान कर उसने उसका अपहरण कर लिया और रात्रि में पलंग सहित अनिरुद्ध को उठाकर वह गोधूलि वेला में बाणासुर की नगरी में प्रविष्ट हुई. इधर प्रद्युम्न को पुत्र शोक के कारण असाध्य रोग से ग्रसित होना पड़ा. अपने पुत्र प्रद्यम्न एवं पौत्र अनिरुद्ध की घटना से कृष्णजी भी व्याकुल हो उठे. रुक्मिणी भी पौत्र के दुःख से दुःखी होकर बिलखने लगी और खिन्न मन से कृष्णजी से कहने लगी, हे नाथ! हमारे प्रिय पौत्र का किसने हरण कर लिया? अथवा वह अपनी इच्छा से ही कहीं गया है. मैं आपके सामने शोकाकुल हो अपने प्राण छोड़ दूंगी. रुक्मिणी की बात सुनकर श्रीकृष्णजी यादवों की सभा में उपस्थित हुए. वहां उन्होंने परम तेजस्वी लोमश ऋषि के दर्शन किए. उन्हें प्रणाम कर श्रीकृष्ण ने सारी घटना कह सुनाई.
श्रीकृष्ण ने लोमश ऋषि से पूछा कि, हे मुनिवर! हमारे पौत्र को कौन ले गया? वह कहीं स्वयं तो नहीं चला गया है? हमारे बुद्धिमान पौत्र का किसने अपहरण कर लिया, यह बात मैं नहीं जानता हूँ. उसकी माता पुत्र वियोग के कारण बहुत दुःखी हैं. कृष्ण जी की बात सुनकर लोमश मुनि ने कहा, हे कृष्ण! बाणासुर की कन्या उषा की सहेली चित्रलेखा ने आपके पौत्र का अपहरण किया हैं और उसे बाणासुर के महल में छिपा के रखा हैं. यह बात नारद जी ने बताई हैं.
आप आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकटा का अनुष्ठान कीजिए. इस व्रत के करने से आपका पौत्र अवश्य ही आ जाएगा. ऐसा सुनकर मुनिवर वन में चले गए. श्रीकृष्णजी ने लोमश ऋषि के कथन अनुसार विधि विधान के साथ व्रत किया और इस व्रत के प्रभाव से कृष्णजी बाणासुर को पराजित कर दिया. इस महा भीषण युद्ध में शिवजी ने भी बाणासुर की बड़ी रक्षा की फिर भी वह परास्त हो गया.
भगवान कृष्ण ने कुपित होकर बाणासुर की सहस्त्र भुजाओं को काट डाला. ऐसी सफलता का कारण चतुर्थी संकटा व्रत का प्रभाव ही था. श्रीगणेशजी को प्रसन्न करने तथा संपूर्ण विघ्न को हरने के लिए इस व्रत के सामान कोई दूसरा व्रत नहीं हैं.
श्रीकृष्ण ने कहा – हे राजन! संपूर्ण विपत्तियों के विनाश के लिए मनुष्य को इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति आती है और राज्याधिकारी होंगे. इस व्रत की महिमा का वर्णन बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं कर सकते. हे कुंती पुत्र! मैंने इसका अनुभव स्वयं किया है, यह मैं आपसे सत्य कह रहा हूं.