गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
इस मंत्र का पहला अर्थ है – हम तीनों लोकों यानी पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस प्रकाशमान परमात्मा का ध्यान करते हैं, जिसने इस सृष्टि की रचना की है. वह परमात्मा हमें सद्बुद्धि दे और हमारे जीवन को सही दिशा की ओर प्रेरित करे.
दूसरे अर्थ के अनुसार, यह मंत्र हमें उस दुःखनाशक, तेजस्वी, पापनाशक और सुख देने वाले परमात्मा की ओर ले जाता है. जब इंसान अपने मन में इस मंत्र का जाप करता है, तो वह अपने भीतर उस शक्ति को अनुभव करता है, जो उसकी बुद्धि को सच्चाई और अच्छे कर्मों की ओर मोड़ देती है.
तीसरा अर्थ
तीसरे अर्थ में इस मंत्र के हर शब्द का विस्तार है. जैसे – ॐ सर्वरक्षक परमात्मा का प्रतीक है, भू: प्राणों का आधार है, भुव: दुखों को हरने वाला है, स्व: सुख का स्वरूप है. इसी तरह ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ का अर्थ है वह परम प्रकाशक शक्ति जो सबको प्रेरित करती है. ‘भर्गो’ शुद्ध विज्ञान का रूप है, ‘देवस्य’ यानी देवताओं का, और ‘धीमहि’ का मतलब है हम ध्यान करें. अंत में ‘धियो यो न: प्रचोदयात्’ कहता है कि वह परमात्मा हमारी बुद्धि को अच्छे कार्यों में प्रेरित करे.
गायत्री मंत्र को केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानसिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद शक्तिशाली माना गया है. कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति इस मंत्र का नियमित जाप करता है, तो उसके मस्तिष्क की तरंगों में सकारात्मक बदलाव आने लगता है. इससे मानसिक तनाव कम होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र ने इसी मंत्र की शक्ति के बल पर एक नई सृष्टि की रचना की थी. माना जाता है कि मंत्र के प्रत्येक अक्षर के उच्चारण से अलग-अलग देवताओं का आह्वान होता है. यही कारण है कि इस मंत्र का जप करने वाले व्यक्ति के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होने लगती है और उसके आसपास सकारात्मक वातावरण बन जाता है.
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https://hindi.news18.com/news/dharm/hindi-meaning-of-gayatri-mantra-ka-arth-know-its-power-also-ws-ekl-9547604.html