Tuesday, September 23, 2025
24.9 C
Surat

Rishi Panchami 2025 Katha Rishi Panchami Vrat Katha in hindi | ऋषि पंचमी संपूर्ण व्रत कथा, इसके पाठ से हर कष्ट से मिलती है मुक्ति


Last Updated:

Rishi Panchami Vrat Katha 2025: आज ऋषि पंचमी का व्रत किया जाएगा और यह व्रत करने से सभी प्रकार के स्त्री-पुरुष जन्य दोष, अनजाने पाप, मासिक अशुद्धि से हुए अपराध शुद्ध हो जाते हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि यदि …और पढ़ें

ऋषि पंचमी संपूर्ण व्रत कथा, इसके पाठ से हर कष्ट से मिलती है मुक्ति
Rishi Panchami Vrat Katha : भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी कहा जाता है. यह व्रत विशेषकर स्त्रियों के लिए ऋषि-मुनियों के प्रति श्रद्धा और अपने अज्ञानवश हुए दोषों को शुद्ध करने का दिन है. अगर इस दिन व्रत रखकर ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनते या पढ़ते हैं तो सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. यहां पढ़ें ऋषि पंचमी की संपूर्ण व्रत कथा.

ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Katha)
युधिष्ठिर ने प्रश्न किया हे देवेश! मैंने आपके श्रीमुख से कई व्रतों को श्रवण किया है. अब आप कृपा करके पापों को नष्ट करने वाला कोई उत्तम व्रत सुनावें. राजा के वचन को सुनकर श्री कृष्ण जी बोले-हे राजेन्द्र! अब मैं तुमको ऋषि पंचमी का उत्तम व्रत की कथा सुनाता हूं, जिसको धारण करने से समस्त पापों से छुटकारा मिलता है. हे नृपोत्तम, पूर्व समय में वृत्रासुर का वध करने के कारण देवराज इंद्र के उस पाप को 4 स्थानों पर बांट दिया. पहला अग्नि की ज्वाला में, दूसरा नदियों के बरसाती जल में, तीसरा पर्वतों में और चौथा स्त्री के रज में. उस रजस्वला धर्म में जाने अनजाने उससे जो भी पाप हो जाते हैं, उनकी शुद्धि के लिए ऋषि पंचमी व्रत करना उत्तम है.

श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि यह व्रत समान रूप से चारों वर्णों की स्त्रियों को करना चाहिए. इसी विषय में एक प्राचीन कथा का वर्णन करता हूं. सतयुग में विदर्भ नगरी में स्येनजित नामक राजा हुए. वे प्रजा का पुत्रवत पालन करते थे. उनके आचरण ऋषि के समान थे. उनके राज्य में समस्त वेदों का ज्ञाता समस्त जीवों का उपकार वाला सुमित्र नामक एक कृषक ब्राह्मण निवास करता था.

उनकी सती जयश्री बेहद पतिव्रता थी. ब्राह्मण के अनेक नौकर-चाकर भी थे. एक समय वर्षा काल में जब वह साध्वी खेती के कामों लगी हुई थी तब वह रजस्वला भी हो गई. हे राजन् उसे अपने रजस्वला होने का आभास हो गया लेकिन फिर भी वह घर गृहस्थी के कार्यों में ही लगी रही. कुछ समय के बाद दोनों स्त्री पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए. जय श्री अपने ऋतु दोष के कारण कुतिया बनी और सुमित को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में रहने के कारण बैल की योनी प्राप्त हुई. क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का और कोई अपराध नहीं था इस कारण इन दानों को अपने पूर्वजन्म का समस्त विवरण याद रहा. वे दानों कुतिया और बैल के रूप में रहकर अपने पुत्र सुमित के यहां पलने लगे. सुमित धर्मात्मा था और अतिथियों का पूर्ण सत्कार किया करता था. अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मण को जिमाने के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए.

उसकी स्त्री किसी काम से बाहर गई हुई थी कि एक सर्प ने आकर रसोईघर के बर्तन में विष उडेल दिया. सुमित की मां कुतिया के रूप में बैठी हुई यह सब देख रही थी अतः उसने अपने पुत्र को ब्रह्महत्या के पाप से बचाने की इच्छा से उस बर्तन को स्पर्श कर लिया सुमित की पत्नी से कुतिया का यह कृत्य सहा न गया और उसने एक जलती लकड़ी कुतिया के मारी. वह प्रतिदिन रसोई में जो जूठन आदि शेष रहती थी उस कुतिया के सामने डाल दिया करती थी. लेकिन उस दिन से क्रोध के कारण वह भी उसने नहीं दी.

तब रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया अपने पूर्व पति के पास आकर बोली- हे नाथ! आज मैं भूख से मरी जा रही हूं वैसे तो रोज ही मेरा पुत्र खाने को देता था मगर आज उसने कुछ नहीं दिया. मैंने सांप के विष वाले खीर के बर्तन को ब्रह्महत्या के भय से छूकर भ्रष्ट कर दिया था. इस कारण बहू ने मारा और खाने को भी नहीं दिया है. तब बैल ने कहा-है भद्रे! तेरे ही पापों के कारण मैं भी इस योनि में आ पड़ा हूं. बोझा ढोते ढोते मेरी कमर टूट गयी है.

आज मैं दिन भर खेत जोतता रहा. मेरे पुत्र ने भी आज मुझे भोजन नहीं दिया और ऊपर से मारा भी खूब है. मुझे कष्ट देकर श्राद्ध को व्यर्थ ही किया है. अपने माता पिता की इन बातों को उनके पुत्र सुमित ने सुन लिया. उसने उसी समय जाकर उनको भर पेट भोजन कराया और उनके दुःख से दुखी होकर वन में जाकर उसने ऋषियों से पूछा-हे स्वामी! मेरे माता पिता किन कर्मों के कारण इस योनि को प्राप्त हुए ओर किस प्रकार उससे छुटकारा पा सकते हैं. सुमित ने उन वचनों को श्रवण कर सर्वतपा नामक महर्षि दया करके बाले-पूर्व जन्म में तुम्हारी माता ने अपने उच्छृंखल स्वभाव के कारण रजस्वला होते हुए भी घर गृहस्थी की समस्त वस्तुओं को स्पर्श किया था और तुम्हारे पिता ने उसको स्पर्श किया था. इसी कारण वे कुतिया और बैल की योनि को प्राप्त हुए हैं.

तुम उन की मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो. श्री कृष्ण जी बोले-हे राजन! महर्षि सर्वतपा के इन वचनों को श्रवण करके सुमित अपने घर लौट आया और ऋषि पंचमी का दिन आने पर उसने अपनी स्त्री सहित उस व्रत को धारण किया और उस के पुण्य को अपने माता पिता को दे दिया. व्रत के प्रभाव से उसके माता-पिता दोनों ही पशु योनियों से मुक्त हो गए और स्वर्ग को चले गए. जो स्त्री इस व्रत को धारण करती है वह समस्त सुखों को पाती है.

authorimg

Parag Sharma

मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें

मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें

न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
homedharm

ऋषि पंचमी संपूर्ण व्रत कथा, इसके पाठ से हर कष्ट से मिलती है मुक्ति


.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.

https://hindi.news18.com/news/dharm/rishi-panchami-2025-katha-rishi-panchami-vrat-katha-in-hindi-ws-l-9555793.html

Hot this week

Aaj Ka Panchang, 23 September 2025 | Tritiya Tithi| Durga Puja 2025 | आज का पंचांग

Last Updated:September 24, 2025, 02:32 ISTAaj Ka Panchang,...

Topics

spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img