Last Updated:
Rishi Panchami Vrat Katha 2025: आज ऋषि पंचमी का व्रत किया जाएगा और यह व्रत करने से सभी प्रकार के स्त्री-पुरुष जन्य दोष, अनजाने पाप, मासिक अशुद्धि से हुए अपराध शुद्ध हो जाते हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि यदि …और पढ़ें

ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Katha)
युधिष्ठिर ने प्रश्न किया हे देवेश! मैंने आपके श्रीमुख से कई व्रतों को श्रवण किया है. अब आप कृपा करके पापों को नष्ट करने वाला कोई उत्तम व्रत सुनावें. राजा के वचन को सुनकर श्री कृष्ण जी बोले-हे राजेन्द्र! अब मैं तुमको ऋषि पंचमी का उत्तम व्रत की कथा सुनाता हूं, जिसको धारण करने से समस्त पापों से छुटकारा मिलता है. हे नृपोत्तम, पूर्व समय में वृत्रासुर का वध करने के कारण देवराज इंद्र के उस पाप को 4 स्थानों पर बांट दिया. पहला अग्नि की ज्वाला में, दूसरा नदियों के बरसाती जल में, तीसरा पर्वतों में और चौथा स्त्री के रज में. उस रजस्वला धर्म में जाने अनजाने उससे जो भी पाप हो जाते हैं, उनकी शुद्धि के लिए ऋषि पंचमी व्रत करना उत्तम है.
उनकी सती जयश्री बेहद पतिव्रता थी. ब्राह्मण के अनेक नौकर-चाकर भी थे. एक समय वर्षा काल में जब वह साध्वी खेती के कामों लगी हुई थी तब वह रजस्वला भी हो गई. हे राजन् उसे अपने रजस्वला होने का आभास हो गया लेकिन फिर भी वह घर गृहस्थी के कार्यों में ही लगी रही. कुछ समय के बाद दोनों स्त्री पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए. जय श्री अपने ऋतु दोष के कारण कुतिया बनी और सुमित को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में रहने के कारण बैल की योनी प्राप्त हुई. क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का और कोई अपराध नहीं था इस कारण इन दानों को अपने पूर्वजन्म का समस्त विवरण याद रहा. वे दानों कुतिया और बैल के रूप में रहकर अपने पुत्र सुमित के यहां पलने लगे. सुमित धर्मात्मा था और अतिथियों का पूर्ण सत्कार किया करता था. अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मण को जिमाने के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए.
तब रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया अपने पूर्व पति के पास आकर बोली- हे नाथ! आज मैं भूख से मरी जा रही हूं वैसे तो रोज ही मेरा पुत्र खाने को देता था मगर आज उसने कुछ नहीं दिया. मैंने सांप के विष वाले खीर के बर्तन को ब्रह्महत्या के भय से छूकर भ्रष्ट कर दिया था. इस कारण बहू ने मारा और खाने को भी नहीं दिया है. तब बैल ने कहा-है भद्रे! तेरे ही पापों के कारण मैं भी इस योनि में आ पड़ा हूं. बोझा ढोते ढोते मेरी कमर टूट गयी है.
तुम उन की मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो. श्री कृष्ण जी बोले-हे राजन! महर्षि सर्वतपा के इन वचनों को श्रवण करके सुमित अपने घर लौट आया और ऋषि पंचमी का दिन आने पर उसने अपनी स्त्री सहित उस व्रत को धारण किया और उस के पुण्य को अपने माता पिता को दे दिया. व्रत के प्रभाव से उसके माता-पिता दोनों ही पशु योनियों से मुक्त हो गए और स्वर्ग को चले गए. जो स्त्री इस व्रत को धारण करती है वह समस्त सुखों को पाती है.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
https://hindi.news18.com/news/dharm/rishi-panchami-2025-katha-rishi-panchami-vrat-katha-in-hindi-ws-l-9555793.html