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गोड्डा में दिवाली मनाने की विशेष परंपरा, पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है हुक्का-चुक्की

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गोड्डा में पीढ़ियों से हुक्का-चुक्की की परंपरा निभाई जा रही है. उनका कहना है कि यह केवल एक खेल नहीं, बल्कि समृद्धि का प्रतीक संस्कार है. मान्यता है कि यह लकड़ी घर की सभी दरिद्रता को अपने अंदर सोख लेती है, और जब इसे जलाया जाता है तो दरिद्रता राख बनकर समाप्त हो जाती है.

गोड्डा. दिवाली के अवसर पर जहां एक ओर घरों में रोशनी, मिठाइयों और आतिशबाजी की धूम रहती है, वहीं गोड्डा में इस पर्व से जुड़ी एक अनूठी और सदियों पुरानी परंपरा “हुक्का–चुक्की” आज भी जीवित है. यह परंपरा जिले के कई हिस्सों में, विशेषकर महागामा क्षेत्र में बड़े ही उत्साह के साथ निभाई जाती है.

‘हुक्का रे चुक्की रे…………….’
स्थानीय मान्यता के अनुसार, हुक्का–चुक्की का खेल दीपावली की शाम को सभी घरों में दिए जलाने के बाद शुरू होता है. घर के आंगन में रखी सूखी लकड़ी को आग लगाई जाती है और फिर घर के पुरुष, बच्चे और युवक मिलकर एक स्वर में मंत्र बोलते हैं –
“हुक्का रे चुक्की रे, लक्ष्मी घर रे, दरिद्र बाहर रे.

दरिद्रता होती है समाप्त 
यह कहते हुए वे लकड़ी को लेकर घर के सामने एक स्थान पर इकट्ठा करते हैं और उसे सामूहिक रूप से जलाते हैं. इसके बाद लोग उस जले हुए लकड़ी के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और लगातार वही मंत्र दोहराते रहते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस प्रक्रिया से घर की दरिद्रता और नकारात्मकता समाप्त होकर देवी लक्ष्मी का आगमन होता है.

पीढ़ियों से निभाई जा रही है परंपरा 
महागामा निवासी ऋतिक जायसवाल ने बताया कि उनके परिवार में यह परंपरा पीढ़ियों से निभाई जा रही है. उनका कहना है कि यह केवल एक खेल नहीं, बल्कि समृद्धि का प्रतीक संस्कार है. मान्यता है कि यह लकड़ी घर की सभी दरिद्रता को अपने अंदर सोख लेती है, और जब इसे जलाया जाता है तो दरिद्रता राख बनकर समाप्त हो जाती है.

पितृ दोष होता है शांत 
वहीं, महागामा के पंडित सतीश झा बताते हैं कि हुक्का–चुक्की की लकड़ी में विशेष गुण होते हैं. यह किसी भी नकारात्मक ऊर्जा को जल्दी अपने अंदर समा लेती है. क्योंकि यह लकड़ी गंगा नदी के किनारे होती है. और दिवाली में हमारे पितृ दोष को शांत करने का भी दिन होता है. जिसे उल्का दहन कहा जाता है. और ग्रामीण क्षेत्र में इसे हुक्का चुक्की कहा जाता है. और इसी उल्का दहन से हमारे घर के पितृ को इस पवित्र लकड़ी के दिव्य ज्योति से मुक्ति दिलाया जाता है.

इसी कारण दिवाली की रात इसे जलाना शुभ माना जाता है. इससे घर के वातावरण की नकारात्मकता दूर होती है और नई ऊर्जा का संचार होता है. परंपरा के अनुसार, हुक्का–चुक्की की रस्म के बाद आतिशबाजी शुरू होती है. उसके बाद घर में प्रवेश करने से पहले सभी लोग अपने पैर धोते हैं और फिर मिठाइयों व पकवानों का आनंद लेते हैं.

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गोड्डा में दिवाली की विशेष परंपरा, पितृ दोष से मुक्ति करता है हुक्का-चुक्की


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