आजमगढ़: देशभर में भोलेनाथ के शिवलिंग अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग स्वरूपों में विराजमान हैं. काशी के बाबा विश्वनाथ और देवघर के बाबा बैजनाथ धाम का विशेष महत्व माना जाता है. उसी तरह आजमगढ़ जिले के लोगों के लिए बाबा भंवरनाथ के दर्शन-पूजन का विशेष महत्व है. शहर मुख्यालय से लगभग 3 किलोमीटर पश्चिम में स्थित बाबा भंवरनाथ का भव्य मंदिर स्थापित है. यह मंदिर शहर वासियों एवं आसपास के क्षेत्र में लोगों के लिए आस्था का विशेष केंद्र है. इस मंदिर में स्थापित भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग बहुत चमत्कारी माना जाता है. मान्यता है कि यहां पर भक्तों द्वारा मांगी गई हर मनोकामनाएं पूरी होती है.
1958 में बनकर तैयार हुआ था भंवरनाथ मंदिर
वैसे तो इस मंदिर का निर्माण 1951 में शुरू हुआ था और 13 दिसंबर 1958 में बनकर तैयार हुआ था. लेकिन मंदिर में विराजमान भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है. लोकल18 से बात करते हुए मंदिर के पुजारी गणेश गिरी ने बताया कि लगभग 500 वर्ष पहले यहां पर एक ऋषि अपनी गाय चाराने आते थे. इस स्थान पर जंगली घास हुआ करती थी. गाय चरते चरते जब इस स्थान पर पहुंचती, तो गाय का दूध अचानक यहां गिरने लगता था. हर रोज यहां पर गाय चराने आती और जैसे ही इस स्थान पर पहुंचती उसका दूध अचानक इस स्थान पर गिरना शुरू हो जाता था. ऋषि मुनि को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने आसपास के लोगों की मदद से स्थान पर खुदाई कराई.
पाताल लोक से प्रकट हुए महादेव
उस स्थान पर खुदाई करने के दौरान अचानक से भवरों का समूह निकलने लगा. इस स्थान पर गहरी खुदाई करने के दौरान पातालपुरी महाराज का शिवलिंग प्रकट हुआ, तभी से लोग यहां पर पूजन अर्चन करते हैं. क्योंकि खुदाई के दौरान इस स्थान से काफी संख्या में भंवरे निकले थे और बाद में बाबा प्रकट हुए इसीलिए इस स्थान का नाम भंवरनाथ पड़ा और यह मंदिर बाबा भंवरनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. यहां पर हर रोज हजारों श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के इस पातालपुरी स्वरूप का दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि यहां पर अपनी मनोकामनाएं मांगने से सारी इच्छा पूरी होती हैं.
हर सोमवार महाकालेश्वर के रूप में होता है श्रृंगार
भंवरनाथ मंदिर में पातालपुरी महादेव का प्रतिदिन श्रृंगार होता है, लेकिन यह श्रृंगार सोमवार को विशेष हो जाता है. क्योंकि हर सोमवार को भगवान भोलेनाथ का बाबा महाकालेश्वर के रूप में श्रृंगार किया जाता है. जिसका दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी संख्या मंदिर में एकत्रित होती है.
FIRST PUBLISHED : December 12, 2024, 08:51 IST
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