बहराइच: उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित मरीमाता शक्तिपीठ श्रद्धालुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र है. यह मंदिर बहराइच-लखनऊ राजमार्ग पर, सरयू नदी के तट पर स्थित है. हर साल नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. इसके अलावा, सोमवार और शुक्रवार को भी यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. मंदिर की मान्यता है कि जो भी भक्त मां के दरबार में श्रद्धापूर्वक सिर झुकाता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है.
बकरी की बलि देने की मान्यता
यह मंदिर विभिन्न धार्मिक मान्यताओं से समृद्ध है. यहां आने वाले श्रद्धालु नारियल, चुनरी, चांदी के मुकुट के साथ बकरी की बलि चढ़ाने की परंपरा निभाते हैं. माना जाता है कि मां मरीमाता के दरबार में बकरी की बलि चढ़ाने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है. यहां सालभर बकरी की बलि दी जाती है, परंतु नवरात्रि के दौरान हजारों बकरियों की बलि विशेष रूप से दी जाती है.
कैसे दी जाती है बकरी की बलि
मंदिर के पुजारी राम फेयर ने बताया कि बकरी की बलि से पहले श्रद्धालु बकरी की पांच परिक्रमा करते हैं. इसके बाद बकरी के माथे पर टीका लगाया जाता है और उसे माला पहनाई जाती है. बलि के लिए बकरी को मंदिर के दूसरी छोर पर स्थित घाट पर ले जाया जाता है, जहां उसकी बलि दी जाती है.
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मरीमाता मंदिर का इतिहास
सरयू नदी के तट पर स्थित मरीमाता का भव्य मंदिर आज श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख स्थल है. हालांकि, इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप नया है, परंतु इस स्थल की धार्मिक मान्यता काफी पुरानी है. गांव के बुजुर्गों के अनुसार, लगभग छह दशक पहले, यहां घना जंगल हुआ करता था. एक दिन, दो साधु नीम के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे. उन्हें सपने में पेड़ की जड़ के पास देवी दुर्गा की पिंडी दिखाई दी, जो मिट्टी में दबी हुई थी.
सुबह उठकर साधुओं ने आसपास के ग्रामीणों को बुलाया और मिट्टी हटवाई. जैसे ही मिट्टी हटाई गई, उन्हें एक प्राचीन पिंडी मिली. इस पिंडी को साफ कर नीम के पेड़ के नीचे स्थापित किया गया और पूजा-अर्चना शुरू की गई. धीरे-धीरे, यह स्थान एक शक्तिपीठ के रूप में विकसित हुआ और यहां मंदिर का निर्माण शुरू किया गया. भक्तों की आस्था और योगदान से मंदिर का स्वरूप समय के साथ भव्य होता गया.
FIRST PUBLISHED : October 11, 2024, 11:17 IST
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