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Jinn in islam : मुस्लिम समाज में जिन्नातों की बातें सदियों से होती आई हैं. इनसे जुड़े कई मिथक समाज में पैठ कर चुके हैं. कहा जाता है कि इनमें कुछ हकीकत भी है. ऐसी ही एक चर्चा महिलाओं के खुले बालों के प्रति जिन्नों के कथित आकर्षण को लेकर होती है. इसका क्या सच है, Bharat.one ने इस बारे में अलीगढ़ के मौलाना से बात की.
अलीगढ़. मुस्लिम समाज में अक्सर यह चर्चा सुनने को मिलती है कि महिलाओं के खुले बालों पर जिन्नात का असर हो सकता है या वे उनसे प्रभावित हो सकती हैं. लेकिन क्या इस्लाम में वाकई ऐसा कोई कॉन्सेप्ट मौजूद है? पर्दे, हिजाब और अदृश्य मखलूक के संबंध में इस्लाम क्या कहता है? इन्हीं सवालों की तह तक जाने के लिए Bharat.one ने अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु चीफ मुफ्ती मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन से बात की. मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन बताते हैं कि इस्लाम में हर हुक्म के पीछे एक हिकमत और फायदा छुपा होता है. खासतौर पर औरतों के लिए पर्दा, हिजाब और चादर का हुक्म सिर्फ सामाजिक शालीनता के लिए नहीं, बल्कि अदृश्य दुनिया से सुरक्षा का भी एक जरिया माना गया है. मौलाना के मुताबिक, समाज में बहुत-सी ऐसी मख़लूकात मौजूद हैं जिन्हें इंसानी आंखें नहीं देख सकतीं, जैसे जिन्नात. ये जिन्नात दो तरह के होते हैं, एक नेक, जो अल्लाह की इबादत करते हैं और इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते. और दूसरे शरारती, जो लोगों को तंग करने और नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं.
इस उम्र वालों के लिए ज्यादा डेंजर
मौलाना इफराहीम बताते हैं कि खुले बाल और बेहयाई का माहौल शरारती जिन्नात को आकर्षित कर सकता है. हालांकि यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि खुले बालों पर जिन्न जरूर आ जाएगा, लेकिन यह एक इस्लामी मान्यता है कि बेहयाई और हिजाब की कमी से ऐसे खतरों की संभावनाएं बढ़ सकती हैं. इसी वजह से औरतों को पर्दे का हुक्म दिया गया है ताकि वे हर तरह की बुरी नजर और अदृश्य नुकसान से महफ़ूज़ रहें. मौलाना के मुताबिक, जिन्नात का असर ज्यादातर उस उम्र में होता है, जब लड़की या औरत बालिग हो चुकी हो. चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा. बचपन में भी असर की संभावना होती है, लेकिन बालिग होने के बाद यह ज़्यादा माना जाता है क्योंकि इसी उम्र में वह आकर्षण पैदा होता है जिसकी वजह से ऐसे शरारती जिन्न पास आने की कोशिश करते हैं.
कैसे छूटेगा पीछा
मौलाना इफराहीम बताते हैं कि जिन्नात अक्सर सुनसान जगहों, गंदे इलाकों, जंगलों, लंबे खाली रास्तों और पुराने या बंद पड़े घरों में रहते हैं. ऐसी जगहों से गुजरते समय एहतियात बरतने की हिदायत दी गई है. अगर किसी पर ऐसे असर का शक हो या डर महसूस हो, तो इस्लाम में इसका इलाज और बचाव भी मौजूद है. कुरआन की आयतें जैसे आयतुल कुर्सी, चारों कुल (सूरत अल-काफ़िरून, सूरत अल-इख़लास, सूरत अल-फ़लक़, सूरत अन-नास), और दुरूद शरीफ़ पढ़कर दम करना बताया गया है. मौलाना के अनुसार, इन चीज़ों को पढ़ने से अल्लाह की मदद मिलती है और हर तरह का बुरा असर खत्म हो जाता है.
Priyanshu has more than 10 years of experience in journalism. Before News 18 (Network 18 Group), he had worked with Rajsthan Patrika and Amar Ujala. He has Studied Journalism from Indian Institute of Mass Commu…और पढ़ें
Priyanshu has more than 10 years of experience in journalism. Before News 18 (Network 18 Group), he had worked with Rajsthan Patrika and Amar Ujala. He has Studied Journalism from Indian Institute of Mass Commu… और पढ़ें
