भारत में अघोरी यानि औघड़ बाबाओं के तेज गुस्से की कई कहानियां कही जाती हैं. कहा जाता है कि उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, जो खतरनाक भी होता है. उन्हें गुस्सा करना ठीक नहीं होता. तो आखिर औघड़ बाबाओं को क्यों ऐसा तेज गुस्सा आता है.
औघड़ बाबाओं को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है. शिव जितने शांत और सरल हैं, उतने ही रौद्र भी. औघड़ बाबा भी वैसे ही माने जाते हैं. उन्हें गलत बातों पर तुरंत तेज गुस्सा आ जाता है.
कहा जाता है कि काशी के राजा ने एक बार बाबा कीनाराम को दरबार में तलब किया। बाबा ने आने से इनकार कर दिया और कहा, “अगर राजा को मेरी जरूरत है, तो उन्हें खुद श्मशान में आना होगा।” राजा को विवश होकर उनके पास जाना पड़ा। इससे साफ जाहिर है कि बड़े बड़े राजा भी औघड़ बाबाओं की ताकत से घबराते थे. राजाओं को अघोरी बाबाओं के गुस्से का भी डर रहता था.
और क्या वजहें हो सकती हैं उनके क्रोध की
ये उनके तप और शक्ति के प्रभाव कारण भी होता है. औघड़ साधना में अत्यधिक ऊर्जा और प्राणशक्ति पैदा होती है. यह ऊर्जा नियंत्रित न हो तो गुस्से या उग्रता के रूप में प्रकट होती है.
वैसे भी औघड़ सीधी-सादी भक्ति नहीं करते, बल्कि “उग्र साधना” अपनाते हैं. जिसमें वो श्मशान में रहते हैं. मंत्र, तंत्र के जरिए साधना करते हैं. जिसमें हड्डियां और भस्म उनकी साधना में मूलरूप से शामिल होते हैं. उनका स्वभाव भी उसी उग्रता को दिखाता है.

औघड़ अक्सर समाज के नियमों को तोड़ते हैं. लोग उन्हें अजीब, अपवित्र या डरावना मानते हैं, जिससे टकराव होता है और औघड़ उग्र हो उठते हैं. उनका स्वभाव सीधा, सादा लेकिन एक झटके में उग्र हो सकता है.
झूठ और पाखंड पसंद नहीं करते
औघड़ बाबा बहुत ही सीधे-सादे और स्पष्टवादी होते हैं. उन्हें झूठ, पाखंड और दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं होता. जब वे इन चीजों को देखते हैं, तो उनका गुस्सा भड़क उठता है. ये गुस्सा एक तरह से समाज में फैले पाखंड के प्रति उनकी असहमति और विद्रोह है.
एक मान्यता यह भी है कि औघड़ बाबा जानबूझकर गुस्सा दिखाकर भक्तों या शिष्यों की परीक्षा लेते हैं. वे देखना चाहते हैं कि सामने वाला व्यक्ति कितना धैर्यवान है और उसकी श्रद्धा कितनी दृढ़ है. अगर व्यक्ति उनके गुस्से में भी डगमगाए बिना टिका रहता है, तो बाबा प्रसन्न होकर उस पर कृपा करते हैं.
औघड़ बाबा अपनी साधना के बल पर बहुत शक्तिशाली होते हैं. उनमें एक अद्भुत आत्मविश्वास होता है. यह शक्ति और आत्मविश्वास ही कभी-कभी गुस्से के रूप में प्रकट होता है, खासकर तब जब उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया जाता या उनके सिद्धांतों को चुनौती दी जाती है. वैसे ये एक आमधारणा भी है कि
औघड़ बाबा हमेशा गुस्से में रहते हैं और उन्हें तुरंत क्रोध आ जाता है.
बाबा कीनाराम और अहंकारी तांत्रिक
बनारस के औघड़ बाबा कीनाराम को इस क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध अघोरी साधु थे. एक बार एक अहंकारी तांत्रिक ने बाबा कीनाराम की परीक्षा लेने की सोची. उसने एक शक्तिशाली यंत्र बनाया और एक जलती हुई लोटी (अघोरीयों का भिक्षा-पात्र) बाबा के पास भेजी, ताकि वह उसे छू भी नहीं सकें. बाबा कीनाराम ने स्थिति भांप ली. उन्होंने न केवल उस लोटी को उठा लिया, बल्कि उसे वापस उस तांत्रिक के पास लौटा दिया. कीनाराम का तेज गुस्सा और शक्ति जब तांत्रिक तक पहुंची. तो वह अपनी ही शक्ति से भस्म हो गया.
काशी का औघड़ साधु और राजा का घमंड
वाराणसी में एक औघड़ साधु श्मशान में रहते थे. एक राजा ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया. साधु ने मना कर दिया और कहा: “राजसी भोजन अपवित्र है, श्मशान का भस्म ही मेरी शक्ति है.”
राजा ने को इस बात पर गुस्सा आ गया. उसने उन्हें अपमानित किया. औघड़ ने बस मुस्कुराकर शिवलिंग की ओर देखा और कहा, “शिव सब देख रहे हैं.” उसी रात राजा की तबीयत बिगड़ गई और राज्य में अकाल पड़ा. बाद में राजा श्मशान पहुंचा. औघड़ से क्षमा मांगी. तब जाकर संकट टला.
एक कथा ये भी है कि एक औघड़ साधु को कोई राजपुरोहित अपमानित कर रहा था. तब साधु ने बस अपनी भस्म झाड़ दी और कहा, “यह भस्म ही मेरा गहना है, जो इसे अपवित्र कहे, वही जल्द इसी भस्म में समा जाएगा.” कुछ ही समय बाद वह पुरोहित बीमार पड़ गया. लोग मानते हैं कि यह औघड़ के श्राप की शक्ति थी.
कैसी होती है उनकी रहस्यमयी साधना
औघड़ अक्सर रात को श्मशान में साधना करते हैं. कहते हैं कि वे मृत शरीर के पास बैठकर ध्यान करते हैं, भस्म शरीर पर मलते हैं. मंत्रों से आत्माओं से संवाद करने की कोशिश करते हैं. लोककथाओं में कहा गया है कि औघड़ साधु कभी-कभी मृत आत्माओं को “मोक्ष” दिलाने के लिए साधना करते हैं.
उनका जीवन श्मशान, भस्म, मांस, शराब, खून, मृत्यु जैसी वर्जनाओं से जुड़ा होता है. वे डर और घृणा को तोड़ते हैं. सामान्य लोग इसे चमत्कार या रहस्य मान लेते हैं. मान्यता है कि कठोर साधना से उन्हें भविष्य का अनुमान लगाने और किसी व्यक्ति की छिपी मनोस्थिति जानने की ताकत हासिल हो जाती है. उनके पास अदृश्य शक्तियों को अनुभव करने की क्षमता होती है. वे भूत-प्रेत और पितृलोक की शक्तियों से संवाद कर पाते हैं.
मृत्यु के बाद उनके शरीर का क्या होता है
कई बार वो खुद ही अपने शिष्यों को पहले से कह देते हैं कि किस श्मशान या घाट पर उनका दाह संस्कार होना चाहिए. अवधूत या औघड़ का अंतिम संस्कार अक्सर दफनाकर यानि समाधि बनाकर भी किया जाता है. खासकर जब उन्हें सिद्ध या गुरु-रूप में माना जाता हो. बनारस के क्रीमि कुंड मंदिर में बाबा कीनाराम की समाधि बनी हुई है. इसे औघड़ धाम भी कहते हैं.
कुछ औघड़ और अवधूत गंगा या अन्य पवित्र नदी के तट पर ही अपना शरीर छोड़ते हैं. उसके बाद शिष्यों द्वारा उनके शरीर को जल में समर्पित कर दिया जाता है. इसे “जल-समाधि” कहते हैं. मान्यता है कि यह आत्मा को तुरंत मुक्त करता है. उनकी मृत्यु को शोक नहीं बल्कि “शिव में मिलन” का उत्सव माना जाता है.
बाबा कीनाराम और लाश का मांस
यह किस्सा बाबा कीनाराम की अघोर साधना और समाज द्वारा लगाई गई बंदिशों को तोड़ने को दिखाता है. कहते हैं कि एक बार बाबा कीनाराम श्मशान में बैठे थे. एक लाश का मांस पका कर खा रहे थे. यह देखकर एक संत ने उनसे पूछा, “बाबा, आप यह क्या कर रहे हैं? यह तो पाप है!”
बाबा कीनाराम ने उस संत की ओर एक टुकड़ा बढ़ाते हुए कहा, “ले, तू भी खा.” संत ने घृणा से इनकार कर दिया. तब बाबा बोले, “तू अभी भी ‘पवित्र’ और ‘अपवित्र’ के चक्कर में फंसा हुआ है. जिसने इस शरीर को बनाया है, वही इस लाश में भी है. जब सबमें एक ही ईश्वर है, तो फिर भेद कैसा?” कहते हैं कि उस संत की आंखें खुल गईं.
दत्तात्रेय और उनके चौबीस गुरु
भगवान दत्तात्रेय को सभी सिद्धों और औघड़ बाबाओं का आदि गुरु माना जाता है. उनका जीवन ही एक महान किस्सा है. दत्तात्रेय से जब उनके गुरु का नाम पूछा गया, तो उन्होंने चौबीस गुरुओं की सूची बनाई. इनमें पृथ्वी, पानी, आकाश, सूरज, एक शिकारी, एक वेश्या, एक मछली, एक पिंजरे में बंद पक्षी आदि शामिल थे.
उन्होंने हर एक से कुछ न कुछ सीखा. पृथ्वी से सहनशीलता, सूरज से तपस्या, शिकारी से धैर्य, मछली से लालच से बचना, और पिंजरे में बंद पक्षी से यह सीख कि मोह के बंधन में फंसा व्यक्ति मुक्त नहीं हो पाता.