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जब भगवान सूर्य विश्राम करते हैं तब बिहार के अपराधियों को जेल भेजेंगे तेजस्वी यादव, जानिए क्या होता है खरमास?

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पटना. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने कहा है कि बिहार चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को आएंगे, इसके बाद महागठबंधन की सरकार का शपथ ग्रहण 18 नवंबर को होगा, फिर 26 नवंबर से 26 जनवरी के बीच तेजस्वी यादव सुनिश्चित करेंगे कि बिहार के सभी अपराधी जेल में हों. तेजस्वी यादव ने आगे कहा कि खरमास में एक-एक अपराधी को बिहार से साफ कर देंगे. तेजस्वी ने कहा कि अपराधी किसी भी जाति का हो या किसी भी धर्म का हो, सबको जेल भेजा जाएगा. दरअसल, बिहार चुनाव है और प्रचार अभियान जोरों पर है, आगामी 6 नवंबर और 11 नवंबर को मतदान भी होंगे और 14 नवंबर को परिणाम भी आएंगे. लेकिन, अपराधियों की सफाई के लिए तेजस्वी यादव ने अपने संबोधन में खरमास का जिक्र किया तो हमारी भी उत्सुकता बढ़ीि आखिर यह खरमास होता क्या है? खरमास कब से कब तक रहता है? आखिर खरमास क्यों कहा जाता है? खरमास धार्मिक मान्यता क्या है? खरमास में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? जाहिर है यह उत्सुकता हमारी हुई तो आपकी भी हो रही होगी… तो आइए इन सवालों का जवाब आगे जानते हैं.

खरमास क्या होता है?

हिंदू धर्म में खरमास को मलमास भी कहा जाता है. यह एक विशेष अवधि है जो ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है. दरअसल, यह समय सूर्य के गोचर से जुड़ा होता है और आध्यात्मिक साधना के लिए उत्तम माना जाता है. लेकिन, इस अवधि को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है.

खरमास कब से कब तक रहता है?

ज्योतिषीय गणना के अनुसार, खरमास वर्ष में दो बार आता है. जब सूर्य देव गुरु बृहस्पति की राशियोंधनु या मीन, में प्रवेश करते हैं.  यह अवधि सूर्य की गति मंद होने के कारण शुभ कार्यों के लिए अनुपयुक्त मानी जाती है. यह अवधि लगभग एक महीने तक चलती है.  खरमास हर वर्ष सूर्य के धनु राशि या मीन राशि में प्रवेश करने पर शुरू होता है. धनु खरमास तब होता है जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है (आमतौर पर 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक). मीन खरमास तब होता है जब सूर्य मीन राशि में प्रवेश करता है (आमतौर पर 14 मार्च से 13 अप्रैल तक). इसका अर्थ यह कि वर्ष में दो बार खरमास आता है-दिसंबर-जनवरी और मार्च-अप्रैल में.

आखिर खरमास क्यों कहा जाता है?

खरमास” शब्द संस्कृत के “खर” (गधा या क्रूर/दुष्ट/अशुभ या कठोर) और “मास” (महीना) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “दुष्ट मास” या “अशुभ महीना”. पौराणिक कथा के अनुसार, मार्कंडेय पुराण में वर्णित है कि सूर्य देव सात घोड़ों वाले रथ पर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं. एक बार घोड़े थक गए तो सूर्य ने गधों (खर) को रथ में जोता. गधों की मंद गति से सूर्य का तेज कम हो गया, इसलिए इस मास (अवधि) को “खरमास” कहा गया. ज्योतिष में यह सूर्य के धनु/मीन गोचर के कारण होता है, जहां उनका प्रभाव क्षीण माना जाता है. पुराणों में कहा गया है कि खरमास में शुभ कार्य करने से फल उल्टा होता है, इसलिए लोग इसे संकल्प और साधना का महीना मानते हैं.

सूर्य की तेजस्विता में कमी रहती है!

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब सूर्य देव धनु (गुरु की राशि) या मीन (फिर से गुरु की राशि) में प्रवेश करते हैं तो वह बृहस्पति ग्रह के घर में “विश्राम” करते हैं. इस दौरान सूर्य की तेजस्विता कुछ कम मानी जाती है, इसलिए यह समय मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ माना गया है. इसी कारण इसे “खरमास” या “मलमास” कहा जाता है. हिंदू धर्म के अनुसार, खरमास में कोई शुभ कार्य जैसेविवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण, नई खरीद-फरोख्त या नया व्यापार आरंभ करना वर्जित माना गया है. यह समय भक्ति, साधना, दान-पुण्य, ध्यान और आत्मसंयम का होता है.

खरमास की धार्मिक मान्यता क्या है?

हिंदू शास्त्रों (जैसे पुराण और ज्योतिष ग्रंथ) में खरमास को आध्यात्मिक उन्नति का समय माना जाता है. मान्यता है कि सूर्य देव अपने गुरु बृहस्पति की राशि में प्रवेश कर सेवा करते हैं, इसलिए उनका तेज मंद पड़ता है. इस दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं, क्योंकि ग्रहों की अनुकूल स्थिति न होने से फल प्राप्ति नहीं होती. लेकिन यह दान-पुण्य, पूजा-पाठ और तीर्थयात्रा के लिए श्रेष्ठ है.

खरमास में क्या करें, क्या नहीं करना चाहिए?

खरमास में मांगलिक कार्य बंद होते हैं, लेकिन आध्यात्मिक साधना के लिए उत्तम काल कहा गया है. खरमास के लिए वर्णित नियम पंचांग और शास्त्रों पर आधारित हैं, इसलिए खरमास आध्यात्मिक पुनरावलोकन का समय कहा जाता है. ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि इसे अवसर मानें, न कि बाधा. आगे तालिका में स्पष्ट किया गया है इस अवधि में क्या करना चाहिए और क्या नहीं.

क्या करना चाहिए (Dos) क्या नहीं करना चाहिए (Don’ts)
सूर्य देव को तांबे के लोटे से जल अर्पित करें (जल में कुमकुम, गुलाब का फूल डालें). शादी-विवाह, सगाई या नामकरण जैसे मांगलिक कार्य न करें.
भगवान विष्णु, शिव या सत्यनारायण कथा का पाठ/सुनना. गृह प्रवेश, मुंडन या उपनयन संस्कार न करें.
गरीबों/ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र या धन का दान दें. गौ सेवा करें. नया व्यवसाय, घर निर्माण या महंगी खरीदारी (जैसे गाड़ी) शुरू न करें.
तीर्थयात्रा, जप-ध्यान या भागवत कथा सुनें. तुलसी को जल दें. अनावश्यक यात्रा से बचें (जरूरी हो तो करें). किसी का अपमान न करें.
सूर्य मंत्र जपें: “ओम घृणि सूर्याय नमः”. तामसिक भोजन (मांस-मदिरा) का सेवन कम करें. विवादों से दूर रहें.

खरमास मतलब: आध्यात्मिक विश्राम काल

गुरु पुराण के अनुसार, इस मास में प्राण त्यागने पर सद्गति नहीं मिलती, इसलिए भीष्म पितामह ने महाभारत युद्ध में इंतजार किया था. खरमास सांसारिक मोह से मुक्ति देकर भक्ति पर जोर देता है और सूर्य-विष्णु पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. खरमास को आप “आध्यात्मिक विश्राम काल” कह सकते हैं-जब भौतिक कार्यों से विराम लेकर आत्मचिंतन और साधना पर ध्यान देने की सलाह दी जाती है.

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