Varaha Avatar : हिरण्याक्ष नाम का एक दैत्य था. उसे पूरी पृथ्वी पर शासन करने की इच्छा थी. इसलिए वह पृथ्वी को लेकर समुद्र में जाकर छिप गया. पृथ्वी को डूबता देख सभी देवी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि – हे भगवन्! आप पृथ्वी को डूबने से बचा लीजिए क्योंकि इस पर ही संपूर्ण मानव समाज को अपना जीवन बिताना है. अगर पृथ्वी नहीं होगी तो मानव सभ्यता नहीं बचेगी. इसलिए हे करुणानिधान! दीनों पर कृपा कर पृथ्वी को बचाइए. सभी देवताओं की पुकार सुन भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया. यह अवतार भगवान के अन्य अवतारों से बहुत अलग था. सभी देवी-देवताओं ऋषि-मुनियों ने उन्हें इस रूप में देखकर उनकी स्तुति की. साथ ही प्रार्थना की कि वह हिरण्याक्ष से पृथ्वी को छुड़ाकर उसका वध कर दें. ताकि जीवों को दैत्यों के अत्याचार सहने के लिए मजबूर न होना पड़े.
विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर समुद्र में छुपे हिरण्याक्ष को ढूंढा. जब उससे पृथ्वी लेने लगे तो उसने युद्ध के लिए भगवान वराह को ललकारा. दैत्य हिरण्याक्ष की ललकार सुनकर भगवान विष्णु को क्रोध आया. भगवान वराह और दैत्य हिरण्याक्ष में भीषण युद्ध छिड़ा. जिसके बाद उन्होंने हिरण्याक्ष का वध कर दिया. भगवान वराह समुद्र से पृथ्वी को अपने दातों पर रखकर बाहर ले आए और पृथ्वी की पुनर्स्थापना की. पृथ्वी को अपने मुख के अग्र भाग पर रखकर सोरों नगरी में प्रकट हुए.
Soron Shukar Kshetra: ऐसा तीर्थ जहां भगवान विष्णु ने अपने शरीर का किया त्याग, सूर्य-चन्द्रमा ने की तपस्या! जानें इसकी महिमा
पृथ्वी को किया पुनर्स्थापित : हिरणाक्ष्य राक्षस से भीषण युद्ध के बाद भगवान विष्णु अपने वराह स्वरूप में जब पृथ्वी को अपने अग्रदंतों पर रख कर प्रकट हुए तो पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के बाद उन्होंने सोरों नामक स्थान का चयन किया. अपने खुर से जमीन के कुछ हिस्से को खोद कर जल को स्तंभित किया. यह जल ही आदि गंगा कहलाया. उस जगह पर अपना व्रत करके पृथ्वी को पुनर्स्थापित किया एवं अपने शरीर का त्याग किया. तत्पश्चात् प्रभु स्वयं साकेत लोक चले गये.
Feng Shui Tips: बीमारी और आर्थिक तंगी से हैं परेशान, तो घर में रखें यह खास पौधा, कुछ ही दिनों में दिखने लगेगा बदलाव!
जादुई है आदिगंगा : प्रभु के द्वारा अपने शरीर का त्याग करने के पश्चात इस गंगा में जो भी व्यक्ति अपने मृत परिजनों का अस्थि विसर्जन करता है तो उस व्यक्ति की अस्थियां 72 घंटे के भीतर जल का स्वरूप ले लेती हैं. ऐसा पूरी पृथ्वी पर किसी अन्य तीर्थ पर नहीं होता है. यहां पर दूर प्रदेशों एवं अन्य देशों तक से लोग आकर अपने पितरों का अस्थि विसर्जन, पिंड दान, पितृदोष शांति एवं देवताओं का पूजन करते हैं.
भगवान वाराह (शूकर) के अवतार की बजह से ही इस पवित्र तीर्थ का नाम सोरों शूकर क्षेत्र है.
FIRST PUBLISHED : November 29, 2024, 14:27 IST
