नवमी श्राद्ध तिथि: 15 सितंबर दिन सोमवार
नवमी तिथि समाप्त- 16 सितंबर, सुबह 1 बजकर 31 मिनट तक
कुतुप काल का मुहूर्त
रोहिणी मुहूर्त- दोपहर 12:58 से 01:47 मिनट तक
नवमी श्राद्ध अनुष्ठान तिथि- 15 सितंबर, दिन सोमवार

नवमी तिथि के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की नवमी तिथि को हुई हो. इसके अलावा, यह तिथि माता का श्राद्ध करने के लिए सबसे उपयुक्त है. यही कारण है कि इस तिथि को मातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं इस तिथि पर श्राद्ध करने से परिवार की मृतक महिला सदस्यों की आत्मा को शांति मिलती है. इस दिन किया गया श्राद्ध ऐसे पितरों की आत्मा को शांति देता है, जो असमय या अप्राकृतिक मृत्यु से गए हों. इसके अलावा इस दिन श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर्म करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
– जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि को हुई हो.
– जिन लोगों को मृत्यु तिथि याद न हो.
– हिंसा या हत्या से मारे गए लोग.
– विष या जहर से प्राण गंवाने वाले.
– गर्भपात या प्रसव के समय जिनकी मृत्यु हो गई हो.
– कम उम्र (अकाल मृत्यु) में मृत्यु को प्राप्त हुए लोग.
आज सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. अपने पितरों का नाम लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके संकल्प लें कि आप आज सप्तमी तिथि का श्राद्ध कर रहे हैं. पवित्र स्थान पर कुशा (दूब घास) बिछाएं. पिंडदान के लिए तिल, चावल और जल से अर्पण करें. चावल, जौ का आटा, तिल और शहद मिलाकर पिंड बनाएं. तिल मिश्रित जल अर्पित करते हुए ॐ पितृभ्यः स्वधा मंत्र का जाप करें. अब दोपहर के समय किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें. गाय, कुत्ते, कौए और जरूरतमंद को भोजन खिलाना भी श्राद्ध का ही हिस्सा माना गया है. अंत में पितरों से आशीर्वाद की प्रार्थना करें कि वे सदैव परिवार पर कृपा बनाए रखें