Last Updated:
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि, पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा महर्षि भृगु के पुत्र त्वष्टा के पुत्र थे. यही महर्षि भृगु बलिया नगर में स्थित भृगु आश्रम के प्र…और पढ़ें
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि, पौराणिक ग्रंथों (मत्स्य पुराण, पद्म पुराण और विष्णु पुराण) में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा महर्षि भृगु के पुत्र त्वष्टा के पुत्र थे. यही महर्षि भृगु बलिया नगर में स्थित भृगु आश्रम के प्रमुख ऋषि थे. आज भी भृगु आश्रम में स्थित उनकी समाधि के ठीक बगल में भगवान विश्वकर्मा जी की आदमकद मूर्ति बैठे अवस्था में स्थापित है. विश्वकर्मा की दादी दिव्या देवी दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री थीं, जिन्हें मृत्यु संजीवनी विद्या का ज्ञान था.
देवताओं से टकराई उनकी दादी
इतिहासकार के कहने के मुताबिक देवासुर संग्राम के समय जब दिव्या ने अपने पिता के मृत सैनिकों को जीवित कर दिया. देवताओं ने उन्हें मार डाला. इसके बाद महर्षि भृगु का पूरा परिवार ब्रह्मलोक से निकाल दिया गया. भृगु मुनि ने त्रिलोक परीक्षण के दौरान विष्णु को लात मारी थी. जिससे मुक्ति पाने के लिए उनको बलिया की पावन धरती मिली. जहां विश्वकर्मा भगवान भी आए.
विश्वकर्मा ने अप्सरा हेमा से प्रेम विवाह किया
इस कठिन समय में युवा इंजीनियर कहे जाने वाले विश्वकर्मा ने अप्सरा हेमा से प्रेम विवाह कर लिया. दोनों की एक पुत्री संज्ञा हुई. हालांकि, यह विवाह अधिक समय तक नहीं चला. इसके बाद सब कुछ छोड़कर विश्वकर्मा भगवान बलिया में अपने बाबा भृगु मुनि के पास आ गए. भगवान विश्वकर्मा ने बलिया आकर शिक्षा के साथ तपस्या भी किया. बगिया में भृगु के साथ विश्वकर्मा ने भी अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय बिताया है.