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बालाघाट में होती है ‘परछाई पूजा’, जहां कलश से जुड़ती है आत्माओं की दुनिया!

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Teej ki Parampara: बालाघाट जिले में मनाया जाने वाला तीज त्योहार पूर्वजों की स्मृति और श्रद्धा से जुड़ा एक अनूठा पर्व है. इसमें मिट्टी से बने कलश को मातृ-पितृ रूप मानकर पूजा जाता है. गेहूं की बालियां, महुआ और आम…और पढ़ें

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कलश की मांग बढ़ रही है.

हाइलाइट्स

  • बालाघाट में तीज त्योहार पूर्वजों की स्मृति से जुड़ा है.
  • मिट्टी के कलश की बढ़ती मांग से कुम्हारों को रोजगार मिलता है.
  • त्योहार में पारंपरिक पकवानों का विशेष महत्व है.

भारतीय संस्कृति की आत्मा लोक परंपराओं में बसती है, और बालाघाट की मिट्टी में हर त्योहार के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव जुड़ा है. यहां मनाया जाने वाला तीज त्योहार कोई साधारण पर्व नहीं, बल्कि पूर्वजों की स्मृति में रचा-बसा एक अद्वितीय अनुष्ठान है. हर साल अप्रैल और मई की तपती ऋतु में जब खेत सूने हो जाते हैं और आम की खुशबू हवाओं में घुलने लगती है, तब बालाघाट का समाज अपने पुरखों को स्मरण करता है. कलश के माध्यम से.

कलश में बसती है पूर्वजों की आत्मा
इस पर्व की खास बात यह है कि यहां कलश को केवल पूजन का पात्र नहीं, बल्कि मातृ-पितृ रूप में स्वीकारा जाता है. यह कोई सूखी रस्म नहीं, बल्कि एक ऐसा भाव है, जिसमें जीवनदायिनी प्रकृति और आत्मीय स्मृति दोनों का समावेश होता है. मिट्टी से बना यह कलश उस विरासत की तरह है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है. गेहूं की बालियां, महुआ, बोर, आम और पलसे के पत्ते कलश में सजाए जाते हैं. इनमें पूर्वजों का आत्मिक रूप माना जाता है. भोग अर्पण करते समय भावनाएं इतनी गहरी हो जाती हैं कि लगता है जैसे पुरखे वहीं कहीं पास बैठकर आशीर्वाद दे रहे हों.

इस अवसर पर हर घर में रसोई एक पूजा स्थल बन जाती है. खास व्यंजन जैसे सेवई, आम का पना, भजिया, पुड़ी, और उड़द के बड़े बनते हैं, जिनमें स्वाद से अधिक स्मृति और स्नेह होता है. त्योहार में न सिर्फ देवताओं, बल्कि मेहमानों का भी सम्मान होता है, क्योंकि यही वो पल हैं जब सामाजिक और पारिवारिक बंधन और मजबूत होते हैं.

तीज पर कलश की मांग
कलश की बढ़ती मांग ने इस त्यौहार को स्थानीय कुम्हारों के लिए रोज़गार का अवसर भी बना दिया है. मिट्टी को पीट-पीट कर उसमें आत्मा डालने वाले शिल्पकार अब फिर से अपने चाक पर जिंदगी गढ़ रहे हैं. चिकनी मिट्टी से बने ये कलश अब केवल पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि सामाजिक स्मृति का प्रतीक बन चुके हैं.

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