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Shradh ka Mahatva: हिंदू धर्म में श्राद्ध केवल पूर्वजों की पूजा नहीं बल्कि श्रद्धा, सम्मान और आत्मिक शांति का प्रतीक है. धर्मशास्त्रों में यह उल्लेख है कि जीवित व्यक्ति भी अपना श्राद्ध कर सकता है, जिससे मृत्यु …और पढ़ें
जीवित व्यक्ति का श्राद्ध
धर्मशास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि जीवित व्यक्ति भी अपना श्राद्ध कर सकता है. इसे “जीवित श्राद्ध” या “आत्मश्राद्ध” कहा जाता है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मृत्यु से पहले व्यक्ति अपने कर्म से आत्मा को शांति प्रदान करे और उसके बाद परिवार या वंशजों पर कोई बाधा न आए.
वंश समाप्त होने की स्थिति में, यदि कोई व्यक्ति अपने वंश का अंतिम पुरुष हो और उसके बाद कोई वंशज न हो, तो वह अपने जीवनकाल में ही श्राद्ध कर सकता है. मृत्यु का आभास होने पर, जब किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है, तब भी वह अपने जीते जी ही श्राद्ध करता है ताकि उसके जाने के बाद किसी प्रकार की बाधा न रहे. पिता या माता के कुल में कोई पुरुष न होने पर भी जीवित व्यक्ति को यह करने की अनुमति होती है. इसके अलावा, धार्मिक आस्था और आत्मिक शांति के कारण कुछ लोग जीवन में ही अपना श्राद्ध करते हैं.
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जीवित श्राद्ध का महत्व?
जीवित श्राद्ध करने का मुख्य उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और सद्गति है. यह कर्म व्यक्ति को जीवनकाल में ही शांति का अनुभव कराता है और सुनिश्चित करता है कि उसके जाने के बाद किसी पर बोझ न पड़े. इसे आत्मिक तैयारी भी माना जाता है, जो व्यक्ति को मृत्यु के अंतिम सत्य की याद दिलाता है और धर्म, सत्य और करुणा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है.