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शाकाहार होने बाद भी पूजा-पाठ और व्रत के दिन लहसुन-प्याज खाना क्यों है वर्जित? आखिर क्या है इसके पीछे वजह

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Why Avoid Lahsun Pyaz In Vrat: हिंदू धर्म में प्याज और लहसुन को तामसिक मानकर व्रत और पूजा में वर्जित किया गया है. क्योंकि ये मन को चंचल और साधना में बाधक बनाते हैं.

ऋषिकेश: भारतीय संस्कृति और परंपरा में भोजन को केवल पेट भरने का साधन नहीं माना गया है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा को प्रभावित करने वाला तत्व समझा गया है. हिंदू धर्म में भोजन को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है – सात्विक, राजसिक और तामसिक. सात्विक भोजन को शुद्ध, शांत और मन को नियंत्रित करने वाला माना गया है. राजसिक भोजन मन में उत्तेजना और तृष्णा उत्पन्न करता है, जबकि तामसिक भोजन आलस्य, क्रोध और नकारात्मक प्रवृत्तियों को बढ़ाता है. यही कारण है कि जब भी पूजा-पाठ, व्रत या धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, तब सात्विक भोजन को सर्वोत्तम माना जाता है. इस संदर्भ में यह प्रश्न अक्सर उठता है कि शाकाहार का हिस्सा होने के बावजूद प्याज और लहसुन को धार्मिक दृष्टि से वर्जित क्यों किया जाता है.

शाकाहारी होने के बाद भी क्यों व्रत में नहीं खाया जाता लहसुन प्याज 

Bharat.one के साथ बातचीत के दौरान पुजारी शुभम तिवारी ने बताया कि प्याज और लहसुन भले ही सामान्य जीवन में स्वास्थ्यवर्धक माने जाते हैं, लेकिन हिंदू शास्त्रों के अनुसार इन्हें तामसिक और कहीं-कहीं राजसिक भी माना गया है. इसका अर्थ यह है कि ये पदार्थ शरीर की ऊर्जा को नीचे की ओर खींचते हैं, मन में चंचलता और वासना बढ़ाते हैं तथा साधना के समय एकाग्रता में बाधा डालते हैं. व्रत और पूजा-पाठ का उद्देश्य होता है स्वयं को ईश्वर के समीप ले जाना और मन को निर्मल बनाना. यदि उस समय तामसिक भोजन किया जाए तो साधक का मन बार-बार भटक सकता है और उसका ध्यान सांसारिक इच्छाओं की ओर चला जाता है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश निकला तो देवताओं और असुरों में इसे लेकर बड़ा विवाद हुआ. भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत का वितरण शुरू किया. इस दौरान राहु और केतु नामक असुर धोखे से देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पीने लगे. सूर्य और चंद्र ने इसकी शिकायत की तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनका मस्तक काट दिया. कहते हैं कि राहु और केतु के शरीर से गिरे रक्त की बूंदों से प्याज और लहसुन का जन्म हुआ. इसी कारण इन्हें तामसिक और अशुद्ध माना गया और धार्मिक अनुष्ठानों में वर्जित कर दिया गया.इसके अलावा आयुर्वेद में भी प्याज और लहसुन को तीखे, उष्ण और उत्तेजक गुणों वाला माना गया है. ये शरीर की इंद्रियों को उत्तेजित करते हैं और क्रोध, आलस्य तथा कामवासना जैसी प्रवृत्तियों को बढ़ाते हैं. यही कारण है कि योगी, संत और साधु इनसे दूरी बनाकर सात्विक आहार पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि उनकी साधना में कोई विघ्न न आए. व्रत का उद्देश्य केवल भूखे रहना नहीं होता बल्कि आत्मसंयम और मन की शुद्धि पर ध्यान केंद्रित करना होता है. इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि व्रत के समय सात्विक आहार जैसे फल, दूध, दही, सब्जियां और अनाज का सेवन करें जिससे शरीर हल्का और मन स्थिर बना रहे.

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शाकाहार होने बाद भी पूजा-पाठ और व्रत के दिन लहसुन-प्याज खाना क्यों है वर्जित?

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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