Home Dharma शादी में पंडित जी कौन से पढ़ते हैं मंत्र? क्यों जरूरी है...

शादी में पंडित जी कौन से पढ़ते हैं मंत्र? क्यों जरूरी है यह मंत्रोच्चार, जानें इसका इसका मतलब और महत्व

0



मधुबनी. सनातन संस्कृति बहुत सारे मंत्रोच्चार होते हैं. हर रस्म के अलग-अलग मंत्र होते हैं लेकिन उन सबों में शादी के दौरान सबसे विशेष मंत्रोच्चार होता है. वह गोत्र अध्याय होता है. जिसमें पूर्वजों का एक जगह आवाहन करते हैं और शुभ आशीष प्राप्त करते हैं जो इस प्रकार हैं.

क्या है मंत्र और मतलब
शादी में मंत्रोच्चार– गोत्र अध्याय (जिस गोत्र के है) शक्ति वशिष्ठ प्ररासरेति प्रवरश्य अमुख (व्यक्ति का नाम) तृ श्रमण: प्रपोत्राय.

इस मंत्र का तात्पर्य होता है कि किसी भी वर को उसके पूर्वज चार पीढ़ी पहले परम पितामह से लेकर उसके पिता तक और वह खुद तक मंत्र के माध्यम से नाम लेते हैं, यही वधू को भी पंडित उसके परम पितामह से लेकर और उसे खुद तक मंत्रोच्चार के जरिए नाम लेते है. बता दें कि जिसमें अलग-अलग नाम होते हैं पूर्वजों के नाम के साथ अपने नाम को जोड़कर कन्या का दान होता है.

क्या है महत्व
मिथिला में शादी के दौरान बहुत सारे मंत्र बोले जाते हैं लेकिन सबसे विशेष गोत्र अध्याय होता है. यह जब बारात घर पर आती है फिर आठ पुरुष वर के साथ उखल-समाठ से मंत्रों के साथ धान कूटने की रस्म करते हैं. जिसके बाद कन्यादान का सबसे प्रमुख मंत्र होता है. वर पक्ष और वधू पक्ष दोनों इस मंत्र को तीन बार दोहराते हैं, और जब कन्यादान हो जाता है उसके बाद बहुत सारी रीति रिवाज होते हैं. लेकिन मिथिला में गोत्र अध्याय को उन सभी में सबसे ज्यादा प्रमुख माना जाता है. Bharat.one को गिरिधर झा बताते हैं कि शादी के दौरान वेदी पर वर वधू के पूर्वज (देव –पितर) को आवाह्न नहीं होगा, तब तक शास्त्रों के हिसाब से शादी नहीं होती है. खुले आसमान के नीचे मंत्रोच्चार कर शुभ आशीष प्राप्त करते हैं तब विवाह संपूर्ण माना जाता है. सनातन धर्म में यह मैथिल ब्राह्मण में हर घर में होती रही है.

FIRST PUBLISHED : December 26, 2024, 20:02 IST

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version