सिख धर्म में लंगर की प्रथा कई वर्षों पुरानी प्रथा है.गुरुनानकदेव जी ने लंगर की शुरुआत की थी.
Langar Ki Shuruat : सिख धर्म में लंगर की प्रथा कई वर्षों पुरानी प्रथा है. इस प्रथा की शुरुआत सिख धर्म में 15वीं शताब्दी में सिखों के गुरु श्री गुरुनानकदेव जी ने शुरू की थी. उस समय लंगर खिलाना एक क्रन्तिकारी कदम था. जिस समय समाज के हर वर्ग में छुआ-छूत, जाती-धर्म, ऊँच-नीच जैसी बुराइयां हो उस समय इस तरह की परंपरा को शुरू करना वाकई में एक बड़ा कदम था. गुरुनानकदेव जी ने लंगर के माध्यम से हर वर्ग, हर समुदाय, हर जाति, हर धर्म के लोगों को एक साथ एक जगह बैठाकर खाना खिला कर भेदभाव को ख़त्म करने की बहुत बड़ी कोशिश की थी. यहां तक कि गुरुनानक देव जी खुद भी लंगर में जाकर लोगों के साथ जमीन पर बैठकर खाना खाते थे. आइए जानते हैं इस विषय में विस्तार से सिख धर्म के अनुयाई होशंगाबाद निवासी अभिनव पंजाबी से.
अगर आपने सिख धर्म से जुड़ी किताबें पढ़ीं हो तो उनमें मालिक भागों और भाई लालो की कहानी का वर्णन मिलता है, गुरूजी ने मालिक भागों की रोटियों से खून निचोड़ कर दिखाया था. जो उनकी काली कमाई का प्रतीक थी. जिसमें गरीबों का खून मिला हुआ था और इसके विपरीत भाई लालों की रोटी से दूध निकला था, जिसे अमृत समान माना गया. यह उनकी मेहनत की कमाई से बनी रोटी थी. गुरूजी ने सिखाया कि मेहनत की कमाई का फल सदैव सुखमय होता है इसलिए हम सभी को ईर्ष्या और द्वेष से बचकर अपना जीवन यापन करना चाहिए.
गुरुनानकदेव जी ने ” “किरत करो और वंड छको ” का नारा दिया, जिसका अर्थ था खुद अपने हाथ से मेहनत करो, और सब में बांट कर खाओ” होता है तीसरी पातशाही गुरु अमरदास जी ने लंगर परंपरा को आगे बढ़ाया और पूरे भारत में इसका प्रचार किया. आज दुनिया का सबसे बड़ा लंगर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आयोजित होता है. इनके किचन में दिन रात लंगर तैयार होता है. आमतौर पर यहां प्रीतिदिन एक लाख लोगों का भोजन तैयार होता है. स्थानीय लोग लंगर में सेवा कार्य को गुरुदेव जी का आशीर्वाद मान कर अपनी सेवाएं देते हैं.
सिखों में लंगर को दो तरह से देखा जाता है, लंगर का मतलब होता है रसोई, एक ऐसी रसोई जहां बिना जाती धर्म के भेदभाव के हर व्यक्ति बैठ कर अपनी भूख मिटा सकता है. इसका दूसरा अर्थ बहुत व्यापक है उसके अनुसार बिना किसी जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव के हर व्यक्ति अपनी आत्मा की परमात्मा को पाने के लिए स्वभाविक चाह और भूख या ज्ञान पाने की इच्छा को मिटा सकता है. आज पूरी दुनिया में जहां भी सिख समुदाय के लोग रह रहे हैं, वहां उन्होंने इस लंगर प्रथा को बनाए रखा है और हर त्योहार, गुरुपुरब के मौके पर लंगर का आयोजन करते हैं.
FIRST PUBLISHED : October 30, 2024, 14:53 IST